राष्ट्रवादी
भ्रष्टाचार की कोख में
सांसों की डोर थामे
एक नया जीवन
कभी अनिच्छा,
कभी मात्र एक इच्छा
कई बार संस्कारो की उबकाई
कहीं सत्ता की अनिद्रा
कहीं सत्ता में ही निद्रा
कभी धन का अपच,
कहीं लालच की मितली
कही अनकही सुगबुगाहट
भाग्य की करवट
भ्रष्टाचार के लहू से
सिंचित नव जीवन
जन्म होता है
राष्ट्रवादी विध्वंस
राष्ट्रवादी भ्रष्टाचार
राष्ट्रवादी हिंसा का
जानती हूँ मैं
पर शायद अनभिज्ञ है वो
सत्य से
कि अभिशप्त है वो कोख
एक राष्ट्रवादी न जनने को।
शुभप्रभात :))
जवाब देंहटाएंपर शायद अनभिज्ञ है वो
सत्य से
कि अभिशप्त है वो कोख
एक राष्ट्रवादी न जनने को।
सामयिक सार्थक रचना !!
सादर !!
आज कल के हालात को बयाँ करती बहुत ही सार्थक रचना।
जवाब देंहटाएंप्रभावी प्रस्तुति ||
जवाब देंहटाएंगणतंत्र दिवस की शुभकामनायें-
well written Rachna jee
जवाब देंहटाएंसमय को बयां करती रचना । पर उम्मीद पे दुनिया कायम है, कहीं न कहीं इस अंधेरे की कोख से फूटेगी उजाले की किरन । गणतंत्र दिवस मंगलमय हो ।
जवाब देंहटाएंकैसे भी देश में हालात हो जाएँ,
जवाब देंहटाएंगणतंत्र दिवस की शुभकामनायें ।
सच कहा आपने, प्रभावी रचना..
जवाब देंहटाएंbehad sundar rachnaa... aaj kee stithi aur mere man ke shabd ...jinhen aapne piro diya ...adbhut ...Sadar
जवाब देंहटाएंवन्दे मातरम ...
जवाब देंहटाएंशुभकामनायें !
वर्तमान सामाजिक-राजनैतिक परिदृश्य को रेखांकित करती सार्थक रचना -गणतंत्र दिवस की शुभ- कामनाये
जवाब देंहटाएंकि अभिशप्त है वो कोख
जवाब देंहटाएंएक राष्ट्रवादी न जनने को।
सामयिक और सार्थक रचना,,,,
गणतंत्र दिवस की हार्दिक शुभकामनाए,,,
recent post: गुलामी का असर,,,
रचना अच्छी है मगर कोख कभी अभिशप्त नहीं होती.काश आप कोख किजगाह कुछ और लिख देतीं
जवाब देंहटाएंमन की टीस......
जवाब देंहटाएंशुभकामनायें!
बहुत प्रभावपूर्ण..रचना..गणतंत्र दिवस की हार्दिक शुभकामनाए,,,
जवाब देंहटाएंक्षुब्ध मन की अभिव्यक्ति...क्षुब्ध होना स्वभाविक है गणतंत्र दिवस की हार्दिक शुभकामनाएँ !!
जवाब देंहटाएंजनता है राष्ट्रवादी तभी तो हम जिंदा और आज़ाद हैं
जवाब देंहटाएंगणतंत्र दिवस की शुभकामनायें...... सहमत हूँ....सुंदर पंक्तियाँ
जवाब देंहटाएंबहुत सुन्दर पक्तियां.
जवाब देंहटाएंराष्ट्रवाद के बाद कहीं राष्ट्रवादी कविता का भी 'कॉपीराईट' रिजर्व न हो जाए।
जवाब देंहटाएं(gandhivichar.blogspot.com)
सशक्त व प्रभावशाली रचना ,,,,
जवाब देंहटाएंसादर !
सार्थक संदेश!
जवाब देंहटाएंजब हर काम में भ्रष्टाचार होगा तो कोई कैसे बच पाएगा ... अभिशाप भी फलित होगा ... विचारणीय रचना
जवाब देंहटाएंयथार्थ
जवाब देंहटाएंबहुत बढ़िया सार्थक प्रस्तुति ...
जवाब देंहटाएंपर शायद अनभिज्ञ है वो
जवाब देंहटाएंसत्य से
कि अभिशप्त है वो कोख
एक राष्ट्रवादी न जनने को।
....आशा फिर भी यही है कि कभी तो जन्मेगा कोई राष्ट्रवादी उस कोख से...बहुत सुन्दर और सार्थक रचना..
देश के मौजूदा हालात ऐसे ही हैं..पर सच्चे राष्ट्रवादी क्या अब भी नहीं हैं..हम और आप..जैसे हजारों..
जवाब देंहटाएंसार्थक रचना!!
जवाब देंहटाएंबहुत प्रभावशाली रचना! पढ़ते-पढ़ते ही राष्ट्र की होती हुई दुर्दशा से बदबू आने लगी.....
जवाब देंहटाएं~सादर!!!
सच को बयां करती सार्थक रचना..
जवाब देंहटाएंराष्ट्रवादी विध्वंस राष्ट्रवादी भ्रष्टाचार राष्ट्रवादी हिंसा का जानती हूँ मैं
जवाब देंहटाएं...सच कहा आपने, रचना दी
मन को झकझोरती है ये रचना ... सामयिक रचना ...
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