रविवार, 6 जनवरी 2013

फुर्सत

फुर्सत



कटी हैं रातें मेरी ऐसी अक्सर
पलक से पलक न मिली.
तन्हा भटकती रही नींद सारी रात
इक नर्म बिछावन न मिली.
मन के अज्ञातवास में सब कुछ था
न मिली तो एक मैं न मिली.
रखा था बंद करके मुठ्ठियों को बहुत
किस्मत की लकीरें न मिलीं.
मुश्किलें गुजरीं हैं हम पे भी ऐसी ऐसी
कहीं आकाश कहीं धरती न मिली.
हर दम पाया है मंजिल को इतना दूर
पहुँच पाऊं ऐसी सूरत न मिली.
बढ़ाया है जब जब कदम मैंने
हवा पानी ओ मिटटी न मिली.
बन तो जाऊँ अर्जुन मैं भी
हाय पर वो मछली न मिली.
वो जो बैठा है थाम के डोर मेरी
छोड़ दे एक पल फुर्सत न मिली.

36 टिप्‍पणियां:

  1. सुन्दर भाव. पूर्णता शायद कभी हासिल नहीं होती.

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  2. ये बैचैनी क्यूँ सुकून की राह मिले जहां आप हों और आपके सपनों का संसार हो ....

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  3. मुश्किलें गुजरीं हैं हम पे भी ऐसी ऐसी
    कहीं आकाश कहीं धरती न मिली.
    हर दम पाया है मंजिल को इतना दूर
    पहुँच पाऊं ऐसी सूरत न मिली
    निशब्द हूँ !!

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  4. Waah, waah, waah

    Ban to jaaun arjun, par machali na mili.....bahut sundar

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  5. जीवन में रिक्तिताएं यूँ ही कचोटती रही है - भाव-प्रवण प्रस्तुति

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  6. बन तो जाऊं अर्जुन मैं भी , हाय पर वो मछली न मिली --
    जाने कितनी प्रतिभाएं अवसर की तलाश में ख़त्म हो जाती हैं।
    दुखती रग की सुन्दर रचना ।

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  7. Kal ki raat meri bhi aise hi kati.. na jaagi hi thi, na so hi saki...

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  8. दिल ढूंढ़ता है वही फुर्सत के पल..

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  9. हर दम पाया है मंजिल को इतना दूर पहुँच पाऊं ऐसी सूरत न मिली. कभी-कभी कितना मुश्किल होता है कुछ पाना..
    भावपूर्ण रचना...

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  10. कृष्णा की डोरी जटिल, बाँध गया मन मोर ।

    ज्यों ज्यों खोलूं गाँठ को, त्यों त्यों कसती डोर ।।

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  11. सुकून की एक घडी भी मुश्किल होती है मिलना ...
    चाहतों का सिलसिला बना रहता है ...

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  12. मुश्किलें गुजरीं हैं हम पे भी ऐसी ऐसी
    कहीं आकाश कहीं धरती न मिली.
    हर दम पाया है मंजिल को इतना दूर
    पहुँच पाऊं ऐसी सूरत न मिली

    rachana ji lajbab prastuti ke liye sadar aabhar .

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  13. बहुत सुंदर रचना जी !
    'कभी ख्वाब तो कभी नींद न मिली....
    हो जाऊँ बेखुद... वो सुकूँ की घड़ी न मिली...'
    ~सादर!!!

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  14. बढ़िया प्रासंगिक प्रस्तुति .

    प्रतिबद्ध जीवन का कसाव मुखरित है रचना में ,एक पल अपना न हुआ ,मैं ,मैं न हुआ ,बुरा न हुआ

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  15. बन तो जाऊँ अर्जुन मैं भी हाय पर वो मछली न मिली.

    बहुत बढ़िया उम्द्दा प्रस्तुति ....

    recent post: वह सुनयना थी,

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  16. सुन्दर भाव लिए अनुपम रचना..शुभकामनाएं..

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  17. वह छोड़ देगा तो भी फुर्सत नहीं मिलेगी..हाँ कुछ पलों का विश्राम अवश्य मिल सकता है..बहुत गहरे भाव और सहज प्रवाह लिए सुंदर रचना..

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  18. आदर्णीय रचना जी आपकी कविता बहुत सुन्दर है |नववर्ष मंगलमय हो |

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  19. बन तो जाऊँ अर्जुन मैं भी
    हाय पर वो मछली न मिली... गहरी बात

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  20. बहुत उत्कृष्ट मर्मस्पर्शी रचना..हरेक पंक्ति अंतस को छू जाती है..

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  21. बन तो जाऊँ अर्जुन मैं भी
    हाय पर वो मछली न मिली.
    वो जो बैठा है थाम के डोर मेरी
    छोड़ दे एक पल फुर्सत न मिली.



    इसी अदम्य प्यास का नाम रचना है...रचनाकारों की यह प्यास, खुदा करे कभी न बुझे..
    कहिए आमीन! आमीन अमीन..

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  22. मन के अज्ञातवास में सब कुछ था
    न मिली तो एक मैं न मिली.

    क्या बात...बहुत सुन्दर

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  23. जिन्दगी के इस दौड़ में सब कुछ हासिल नही होता बहुत कुछ पाने की वस आशा ही रह जाती है।बहुत ही बेहतरीन और भावपूर्ण प्रस्तुती,धन्यबाद।
    भूली-बिसरी यादें

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  24. tamaam umr guzar gayi kuch apne man ki si paane ko....aah magar kuchh bhi na mila.

    bahut khoobsurat, samvedansheel prastuti.

    NAV VARSH KI HARDIK SHUBHKAAMNAYEN.

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  25. मुश्किलें गुजरीं हैं हम पे भी ऐसी ऐसी
    कहीं आकाश कहीं धरती न मिली.
    हर दम पाया है मंजिल को इतना दूर
    पहुँच पाऊं ऐसी सूरत न मिली

    ak peeda ki nirantrata .....abhar ...rachana bahut khoobsoorat aur bhavpoorn lagi .

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  26. वो जो बैठा है थाम के डोर मेरी छोड़ दे एक पल फुर्सत न मिली.

    रब्ब ने थामी तो है ......:))

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  27. शुक्रिया आपकी ताज़ा टिपण्णी का .


    अभी तो और भी रातें सफर में आयेंगी चरागे शब मेरे महबूब ,संभाल के रख .

    ज़िन्दगी ज़िंदा दिली का नाम है मुर्दा दिल क्या ख़ाक जियेंगे .

    गिरतें हैं शह सवार(शाही घोड़े की सवारी करने वाले ) ही मैदाने जंग में वह तिफ़्ल(जीव आत्मा ,प्राणि ) क्या जो रेंगे के घुटनों के बल चले .

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  28. जिंदगी की आपाधापी में फुर्सत कहाँ ..
    बहुत बढ़िया ..

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  29. बहुत सही कहा आपने ..
    सार्थक रचना ...
    सादर !

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