ख्वाब
झलती रही पंखा साँझ सारी शाम,
रात बोझिल हुई चुप चाप सो गई.
मुंह ढांप के कुहासे की चादर से,
हवा गुमनाम जाने किसकी हो गई.
चाँद ने ली करवट, बांहों में थी चांदनी,
रूठी, छूटी, छिटकी, ठिठकी वो गई.
बदली के आंचल की उलझने की हठ,
आकाश की कलँगी भिगो गई.
बादल के बाहुपाश में आ कर दामिनी,
मन के सारे गिले शिकवे भी धो गई.
राग ने रागिनी को धीमे से जो छुआ,
वो बही, बह के कानों में खो गई.
आँखों में ख्वाब के अंकुर ही थे फूटे,
सुबह नमक की खेती के बीज बो गई.
सज संवर के पंखुरियों पे बैठी थीं जो,
आज वो ओस की बूंदें भी रो गईं.
मन की गठरी है आज भी बहुत भारी,
पर हाय मेरी किस्मत उसको भी ढो गई.
रात बोझिल हुई चुप चाप सो गई.
मुंह ढांप के कुहासे की चादर से,
हवा गुमनाम जाने किसकी हो गई.
चाँद ने ली करवट, बांहों में थी चांदनी,
रूठी, छूटी, छिटकी, ठिठकी वो गई.
बदली के आंचल की उलझने की हठ,
आकाश की कलँगी भिगो गई.
बादल के बाहुपाश में आ कर दामिनी,
मन के सारे गिले शिकवे भी धो गई.
राग ने रागिनी को धीमे से जो छुआ,
वो बही, बह के कानों में खो गई.
आँखों में ख्वाब के अंकुर ही थे फूटे,
सुबह नमक की खेती के बीज बो गई.
सज संवर के पंखुरियों पे बैठी थीं जो,
आज वो ओस की बूंदें भी रो गईं.
मन की गठरी है आज भी बहुत भारी,
पर हाय मेरी किस्मत उसको भी ढो गई.
वाह जी बढ़िया
जवाब देंहटाएंशुभप्रभात :))
जवाब देंहटाएंमन की गठरी है आज भी बहुत भारी,
पर हाय मेरी किस्मत उसको भी ढो गई.
सबके एक से हालात .... !!
आप को लोहड़ी की हार्दिक शुभकामनाएँ.... :))
बेहतरीन ग़ज़ल.
जवाब देंहटाएंचाहो न चाहो - ज़िन्दगी गुजर ही जाती है
जवाब देंहटाएंबहुत बढ़िया .
जवाब देंहटाएंसुन्दर तस्वीर से मेल खाती सुन्दर रचना।
मन का गहरा बोझ उठाये,
जवाब देंहटाएंजीते रहते प्रतिदिन थोड़ा।
behtreen har bar kii tarah
जवाब देंहटाएं
जवाब देंहटाएंआँखों में ख्वाब के अंकुर ही थे फूटे,
सुबह नमक की खेती के बीज बो गई.
बहुत खूबसूरत पंक्तियाँ .... सुंदर प्रस्तुति
बहुत प्यारी रचना...
जवाब देंहटाएंमकर संक्रांति की ढेर सारी शुभकामनाएं..
अनु
राग ने रागिनी को धीमे से जो छुआ,
जवाब देंहटाएंवो बही, बह के कानों में खो गई...
बहुत खूब ... मधुर रचना ... हर छंद मन में उतर जाता है ... भावमय रचना ... लोहड़ी की बधाई ...
आपकी कविताओं से अलग... मगर एक बात कॉमन है.. यह कविता भी एक पेंटिंग की तरह लग रही है!! बहुत सुन्दर!!!
जवाब देंहटाएंआपकी कविताओं से अलग... मगर एक बात कॉमन है.. यह कविता भी एक पेंटिंग की तरह लग रही है!! बहुत सुन्दर!!!
जवाब देंहटाएंमन की गठरी है आज भी बहुत भारी,
जवाब देंहटाएंपर हाय मेरी किस्मत उसको भी ढो गई.
...गठरी कितनी भी हो भारी, आखिर उसको ढोना ही पड़ता है...बहुत सुन्दर प्रस्तुति..
सुन्दर प्रस्तुति |
जवाब देंहटाएंशुभकामनायें ||
sundar rachna..
जवाब देंहटाएंmakar sakranti ki shubhkamnaaye.
बहुत सुंदर !
जवाब देंहटाएंआँखों में ख्वाब के अंकुर ही थे फूटे
सुबह नमक की खेती के बीज बो गयी...~ख्वाबों का अंजाम अक्सर यही होता है...
मन की गठरी है आज भी बहुत भारी,
पर हाय मेरी किस्मत उसको भी ढो गई...~शायद... यही है ज़िंदगी...
~सादर!!!
आँखों में ख्वाब के अंकुर ही थे फूटे,
जवाब देंहटाएंसुबह नमक की खेती के बीज बो गई.
यही है एक हकीकत ज़िन्दगी की …………बहुत सुन्दर
मन की गठरी है आज भी बहुत भारी,
जवाब देंहटाएंपर हाय मेरी किस्मत उसको भी ढो गई.
शायद यही मेरी किस्मत है,या जिन्दगी हकीकत,,
बहुत उम्दा अभिव्यक्ति,,,बधाई रचना जी,,,,
recent post : जन-जन का सहयोग चाहिए...
अति सुंदर ........ मन के भावों की गहरी अभिव्यक्ति
जवाब देंहटाएंWaah, waah! bahut khoob, bahut sundar:-)
जवाब देंहटाएंमन की उदास परतों को उधेड़ती है यह रचना नया रूपकात्मक भेष भरे .बढिया बिम्ब ,सशक्त अभिव्यक्ति अर्थ और विचार की .संक्रांति की मुबारकबाद .आपकी सद्य टिप्पणियों के लिए
जवाब देंहटाएंआभार .
मुबारक मकर संक्रांति पर्व .
वाह ... बहुत ही उम्दा प्रस्तुति
जवाब देंहटाएंवाह ! लाजवाब लिखा है रचना जी आपने..
जवाब देंहटाएंसुबह नमक की खेती के बीज बो गयी,क्या बात है बहुत ही सुन्दर।
जवाब देंहटाएंआँखों में ख्वाब के अंकुर ही थे फूटे,
जवाब देंहटाएंसुबह नमक की खेती के बीज बो गई.
बहुत खूबसूरत पंक्तियाँ . सुंदर प्रस्तुति
वाह .बहुत सुन्दर
वाह बहुत खूब ...मन की घुटन को शब्द मिल गए
जवाब देंहटाएंबड़ी प्यारी खुशनुमा सी कविता है,
जवाब देंहटाएंमूड खुशगवार कर गयी .
राग ने रागिनी को ...
जवाब देंहटाएं..बहुत खूब।
सुन्दर सुकोमल रचना... है आपकी
जवाब देंहटाएंराग ने रागिनी को धीमे से जो छुआ,
वो बही, बह के कानों में खो गई.
वाह!
क्या खूब कहा है
utam-***
जवाब देंहटाएंआँखों में ख्वाब के अंकुर ही थे फूटे,
जवाब देंहटाएंसुबह नमक की खेती के बीज बो गई.
man ki udasi ko behad khoobsurati se ukera hai aapne..
बहुत ही खूबसूरत ।
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