रविवार, 1 अप्रैल 2012

समय का दर्द


समय का दर्द 
मैं समय हूँ
मैं बलवान हूँ,
बदलता रहता हूँ
घाव भर देता हूँ
कभी अच्छा, कभी बुरा
कभी किसी के लिए ठहरता नहीं
ये उपमाएं दी हैं मुझे, तुम ही लोगों ने
पर मैं क्या और कैसा हूँ
कोई नहीं जानता
मेरे सिवाय
न उठ जाये लोगों का विश्वास मुझसे
उतरने को उन पर खरा
क्या क्या न किया मैंने.
सच तो ये है कि मेरे भी दो चेहरे हैं
मैं अधीर हूँ
दूसरों के दर्द कम करते,
घाव भरते,
मैं स्वयं न भरने वाला
एक घाव हो गया हूँ
जिधर देखो
घाव ही घाव
दर्द ही दर्द
कहाँ-कहाँ, कैसे-कैसे
कितना-कितना भरूं
मैं घाव, दुःख, दर्द, परेशानियों का
अथाह सागर हो गया हूँ
मैं अब ठहरना चाहता हूँ
रुकना चाहता हूँ
थम जाना चाहता हूँ.

52 टिप्‍पणियां:

  1. वाह भाई वाह समय --

    सुना था की तुम गति / चाल बदलते रहते हो -

    पर आज तो गजब ही करने जा रहे हो--

    अच्छा ठहरो तो तनिक--

    रुक जा ।



    होते जब अनुकूल सब, सरपट दौड़ लगाय ।

    सम्मुख हो प्रतिकूलता, धीरे धीरे जाय ।

    धीरे धीरे जाय , धर्म अपना न छोड़े ।

    बढ़िया वेला पाय, ठहरते सदा भगोड़े ।

    तेरा हूँ पाबन्द, काल अन्तिम में सोते ।

    कैसे पाए ठहर, जहाँ में मेरे होते ??

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  2. समय शायद इतिहास ka दूसरा नाम भी है ... उत्कृष्ट

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  3. गहरी अभिव्यक्ति....समय हर अच्छे बुरे का साक्षी होता है.......

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  4. मैं अधीर हूँ
    दूसरों के दर्द कम करते,
    घाव भरते,
    मैं स्वयं न भरने वाला
    एक घाव हो गया हूँ
    बहुत ही गहरी वेदना ...
    बहुत सुन्दर शब्दों की माला....बहुत ही बेहतरीन और प्रशंसनीय प्रस्तुति....!

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  5. समय न थके इसी में हमारी भलाई है ...
    शुभकामना आपको !

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  6. बहुत सुन्दर!!!!

    सुना था समय बड़ा बलवान..........

    आज वो भी थक गया...वाह रे मानव....

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  7. समय घाव देता भी है , और घाव भरता भी वही है । समय के दो चेहरे हमेशा ही रहे हैं ।
    सुन्दर प्रस्तुति ।

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  8. किसी ने दर्द भरने वाले का ...दर्द भी जाना !
    आपने समय का दर्द पहचाना !
    शुभकामनाएँ!

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  9. उसे सब कुछ देखना है, बिना शिकायत किये।

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  10. मैं घाव, दुःख, दर्द, परेशानियों का
    अथाह सागर हो गया हूँ
    मैं अब ठहरना चाहता हूँ
    रुकना चाहता हूँ
    थम जाना चाहता हूँ


    ... यकीन करो मैं थक चला हूँ ....

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  11. आपको रामनवमी और मूर्खदिवस की हार्दिक शुभकामनाएँ!

    ----------------------------
    कल 02/04/2012 को आपकी यह पोस्ट नयी पुरानी हलचल पर लिंक की जा रही हैं.आपके सुझावों का स्वागत है .
    धन्यवाद!

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  12. समय रुक गया तो बहुत कुछ रुक जायगा .. शायद ये श्रृष्टि भी रुक जायगी ... उसे तो चलना ही होगा ...

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  13. समय के शरीर पर जख्म ही जख्म !!!!!!!

    मौलिक भावों वाली अच्छी कविता।

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  14. मैं घाव, दुःख, दर्द, परेशानियों का
    अथाह सागर हो गया हूँ

    सच्ची और सार्थक अभिव्यक्ति

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  15. समय के मनोभावों को सार्थकता से उकेरा है।

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  16. समय तो बलवान है ना , अगर वो कमजोर पड़ा तो इस उक्ति की जगह क्या लिख आजायेगा . आइये समय के हाथो को हम और सशक्त करें , यही मानवता के हित में होगा . सुँदर

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  17. सुन्दर प्रस्तुति, सुन्दर भावाभिव्यक्ति, बधाई.

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  18. बेहद सुंदर...कालचक्र रुक नहीं सकता पर व्यथित तो वह भी है...उसकी कौन सुने!

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  19. सच तो ये है कि मेरे भी दो चेहरे हैं
    मैं अधीर हूँ
    दूसरों के दर्द कम करते,
    घाव भरते,
    मैं स्वयं न भरने वाला
    एक घाव हो गया हूँ

    समय की पीड़ा .... और उसके दो चेहरे ... गहन अनुभूति ... और वक़्त ही है जो मरहम भी लगाता है ...

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  20. वाह ! बहुत ही सुन्दर ढंग से व्यक्त किया है समय के दर्द को..

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  21. समय की शिला पर खींचे चित्र कितने किसी ने बनाये किसी मिटाए ....... मर्मस्पर्शी चित्रण./

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  22. Bahut khoob....par samay kabhi nahee thahar sakta....ye uskee qismat nahee!

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  23. समय के महत्व को जो नहीं समझा वह समझो जीवन समर में चूक गया।

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  24. समय और नारी के बीच शायद यही समानता है ...सब कुछ झेलते हुए भी चलते जाना है .....नहीं तो सब ख़त्म ......बहुत सुन्दर मर्मस्पर्शी कविता !

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  25. samay par hi sab jeevan nirbhar hai samay anukool to sab kuch sahi yadi
    pratikool to sab takleefon ki jad.
    bahut achche bhaav bahut sundar prastuti.

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  26. बहुत सुन्दर प्रस्तुति......
    .... क्या बेहतरीन कविता है.

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  27. समय बड़ा बलवान!...समय के बारे में बहुत सुन्दर प्रस्तुति...आभार!

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  28. दूसरों के दर्द कम करते,
    घाव भरते,
    मैं स्वयं न भरने वाला
    एक घाव हो गया हूँ

    समय का दर्द....
    सुंदर कविता...
    सादर।

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  29. यह समय के हिसाब से हमारे लगातार अप्रासंगिक होते जाने की दास्तान है।

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  30. सार्थक एवं सटीक अभिव्यक्ति!!

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  31. मैं घाव, दुःख, दर्द, परेशानियों का
    अथाह सागर हो गया हूँ
    मैं अब ठहरना चाहता हूँ
    रुकना चाहता हूँ
    थम जाना चाहता हूँ.
    बहुत बढ़िया रचना,सुंदर अभिव्यक्ति,बेहतरीन पोस्ट,....

    MY RECENT POST...काव्यान्जलि ...: मै तेरा घर बसाने आई हूँ...

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  32. हर पहलू को उजागर किया है आपने.
    समय सबसे बड़ा मरहम भी होता है.

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  33. समय रुक जाये यह हम भी तो चाहते हैं कभी कभी । और कभी कभी लगता है कि समय ठहर सा गया है पर समय अपनी गति से चलता ही रहता है ।
    समय का दर्द समझा अपने वाह ।

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  34. जी,सुंदर रचना । समय तो सारे जख्म भर देता है और अपने साथ जिंदगी को नये अवसर देता है।

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  35. तुम रुक गए तो
    दुनिया खत्म हो जाएगी .....

    यूँ मत करना समय .....!!

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  36. वक़्त की व्यथा का बहुत सुन्दर चित्रांकन...बहुत प्रभावी अभिव्यक्ति...

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  37. वक्त अपनी गति से हमेशा आगे ही बढता रहेगा ..हमेशा ही

    जवाब देंहटाएं
  38. समय के माध्यम से इंसान की व्यथा की प्रभावशाली प्रस्तुति ....

    जवाब देंहटाएं
  39. मैं घाव, दुःख, दर्द, परेशानियों का
    अथाह सागर हो गया हूँ
    मैं अब ठहरना चाहता हूँ
    रुकना चाहता हूँ
    थम जाना चाहता हूँ..... बहुत ही गहरे भावो की अभिवयक्ति......

    जवाब देंहटाएं
  40. समय थक गया तो हम कहन जायेंगे ............

    जवाब देंहटाएं
  41. समय हर अच्छे बुरे का साक्छ होता है..
    समय हमारी सांसो के साथ चलता रहता है....
    समय पर बहुत ही अच्छी प्रस्तुति.....

    जवाब देंहटाएं

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