परिवर्तन या स्थाइत्व
पिछली कविता की व्यथा
कल सागर को क्या सुना दी
कल सागर को क्या सुना दी
मेरी बात समाप्त होने से पहले ही
हाहाकार कर चीत्कार उठा वो
भिगो गया मुझे नख शिख
बोला,
परिवर्तन के लिए मुझे बाध्य करेगा जो
मिटा दूँगा उसे, समाहित कर लूँगा अपने में
मैं भयभीत हो भागने को आतुर हुई.
सो बोल उठा,
ये तो बस एक ही पहलू है
नदी तो शांत, सौम्य, मृदुल और मीठी होती है
संस्कारी पुरुष, धर्म गुरु, साध्वी, माताएं आती हैं यहाँ.
करते हैं वे आचमन, आराधना, अर्चना और स्नान.
धुल जाते है पाप,
हो जाता है शांत चित्त.
और मैं..., मैं..हूँ.
"मेचो मैन" "लेडीज़ किलर"
न जाने कितनी ही नदियाँ, उनकी धाराएँ,
कल कल का नाद लिए मीलों का सफर तय कर
मुझमें समाहित होने को आतुर होती हैं.
मुझमें समाहित होती हैं.
अनगिनत बिकनी बालाएं नमकीन होने को,
नमक इश्क का चखने को
खिंची चली आती हैं मेरी ओर.
फिर परिवर्तन क्यों और कैसा?
लौट आई मैं
शायद हर कोई बाध्य नहीं है परिवर्तन को.
मात्र दुर्बल और असहाय ही विवश
किए जाते हैं...
या हो जाते हैं ?
नदी और सागर के माध्यम से की गई बहुत प्रभावशाली अभिव्यक्ति ....शुभकामनाएँ ।
जवाब देंहटाएंवाह............
जवाब देंहटाएंअद्भुत...
बेहद प्रभावशाली रचना.....
सादर.
बिल्कुल नई सोच के साथ नई कविता ।
जवाब देंहटाएंयदि सब अच्छा ही अच्छा हो रहा हो तो बदलने का दिल किसका करता है ।
अंतिम पंक्तियों में कड़वी सच्चाई है ।
दबाना कहें या परिवर्तन .... पर अन्दर ज्वालामुखी होती है, जो असली परिवर्तन लाती है
जवाब देंहटाएंयह रचना एक परिवर्तन का ही स्वरुप है या विरोध या निःसहाय स्वीकृति या उद्वेलित प्रश्न !
बलशाली परिवर्तित नहीं होते..
जवाब देंहटाएंपरिवर्तन तो विनीत और सरल लोगों के लिए होता है...
बहुत ही प्रभावशाली रचना...
आपकी कवितायें काफी समय से पढ़ रहा हूँ.. शायद ही कोई छूटी हो.. हर कविता एक नए अन्दाज़ में, एक नयी बात कहती है, एक नयी सोच को जन्म देता है.. यह कविता तो नदी और सागर के बिम्बों के सहारे परिवर्तन की एक नयी परिभाषा रचती है!!
जवाब देंहटाएंनदी और सागर के संदर्भमें....बहुत सुन्दर रचना...बधाई!
जवाब देंहटाएंकभी कभी परिवर्तन इतना सूक्ष्म होता है की खुद कों भी पता नहीं चलता ... शायद सागर के साथ भी ऐसा ही कुछ है ...
जवाब देंहटाएंप्रशंसनीय प्रस्तुति....शुभकामनाएँ
जवाब देंहटाएंप्रभावशाली रचना !
जवाब देंहटाएंसागर और नदी के प्रतीकों में बहुत गहरे भावों को प्रश्न बना कर खड़ा कर दिया है.
जवाब देंहटाएं,बेहतरीन और प्रशंसनीय प्रस्तुति !
जवाब देंहटाएंMY RECENT POST...काव्यान्जलि ...:गजल...
सागर बल शाली है सो न बदलना चाहे तो उसकी मर्जी...पर नदी को तो बदलना ही होता है हर मौसम में, हर मोड़ पर...प्यास बुझानी हो तो नदी ही काम आती है.
जवाब देंहटाएंदोनों ही आवश्यक, बारी बारी..
जवाब देंहटाएंनदी-नाले उस सागर की चिंता करें भी क्यों जिसके पास इतना कुछ है फिर भी वह चिंतित है अपने अस्तित्व में थोड़े-बहुत परिवर्तन की बात मात्र से। जो जहां है,जितना है जिसके पास,उसी में खुश रहे,हाए, सागर को भी नसीब नहीं हुआ यह!
जवाब देंहटाएंशायद हर कोई बाध्य नहीं है परिवर्तन को
जवाब देंहटाएंमात्र दुर्बल और असहाय ही विवश
किए जाते हैं
या हो जाते हैं
सटीक बिंब के माध्यम से सत्य की अभिव्यक्ति।
सटीक बिंब...सुन्दर अभिव्यक्ति ...
जवाब देंहटाएंकविता में प्रयुक्त बिंब थोड़े कठिन हैं समझने को। फिर भी परिवर्तन को सही माना जा सकता है।
जवाब देंहटाएंprabhavshali bimbo dwara sateek abhivyakti.
जवाब देंहटाएंhats off.
प्रभावशाली रचना.....
जवाब देंहटाएंबहुत ही सार्थकता लिए सशक्त अभिव्यक्ति ।
जवाब देंहटाएंसोचने को विवश करती है कविता...सचमुच क्या परिवर्तन निर्बल..दमित लोगों को की ही कोशिश का नतीजा है..
जवाब देंहटाएंप्रभावशाली रचना
सुन्दर, ख़ूबसूरत भावाभिव्यक्ति .
जवाब देंहटाएंकृपया मेरे ब्लॉग meri kavitayen की 150वीं पोस्ट पर पधारने का कष्ट करें तथा मेरी अब तक की काव्य यात्रा पर अपनी प्रति क्रिया दें , आभारी होऊंगा .
दुर्बल और असहाय समय के साथ स्वयं को बदलते रहते हैं. कुछ मजबूरी के साथ, कुछ विवेक के साथ. सुंदर कविता.
जवाब देंहटाएंप्रभावशाली रचना के लिए बधाई !
जवाब देंहटाएंशुभकामनायें !
सागर का अपने पर इतना घमंड ...ये तो सही नहीं हैं ....परिवर्तन ही इस संसार का नियम हैं
जवाब देंहटाएंप्रभावशाली रचना.
जवाब देंहटाएंआखिर में बहुत अच्छा सवाल पूछा है आपने...परिवर्तन के लिए असहाय और दुर्बलों को ही क्यों बाध्य किया जाता है?
जवाब देंहटाएं...जवाब सभी के शायद अलग अलग होंगे...लेकिन यह रचना बहुत ही उत्तम है....बधाई!
अद्भुत रचना सागर और नदी का एक सटीक और सजीव चित्रण भींगा गया काव्य की लहरों में, बधाई कल्पना के इस नए आयाम को.
जवाब देंहटाएंअद्भुत रचना सागर और नदी का एक सटीक और सजीव चित्रण भींगा गया काव्य की लहरों में, बधाई कल्पना के इस नए आयाम को.
जवाब देंहटाएंlajabab rachana ke liye abhar Rachana ji ...vakai bahut achchha likh rahi hain ap.
जवाब देंहटाएंअनगिनत बिकनी बालाएं नमकीन होने को,
जवाब देंहटाएंनमक इश्क का चखने को
खिंची चली आती हैं मेरी ओर.
फिर परिवर्तन क्यों और कैसा?
लौट आई मैं
शायद हर कोई बाध्य नहीं है परिवर्तन को.
बाध्य कर दिया आपने चिन्तन के लिए....
अपनी कविता के माध्यम से कुछ न कुछ चिन्तनीय छोड़ जाती हैं आप,
यह परिवर्तन को उगाना है..
अति सुन्दर ..हार्दिक बधाई..
जवाब देंहटाएंsach kaha parivartan durbal aur nisahay logo ki hi majboori hai shayad..shaktishali nhi badalna chahta....very unique poem :)
जवाब देंहटाएंमत भेद न बने मन भेद - A post for all bloggers