इमारतें
हमारे शहर की
बुजुर्ग जर्जर खस्ताहाल इमारतें.
कंपकंपाती हुई झुकी हुई.
फिर भी खड़ी हैं
दम साधे डर के साये में
कि कहीं आ न जाए
कोई तेज हवा का झोंका.
और ढह जाएँ वो
और उनका इतिहास
नहीं ...
मरने से नहीं डरतीं वो.
डरतीं हैं इतिहास बनने से
कि इस शहर में
कोई भी नहीं जीता
भूत में वर्तमान में
हर कोई जीता है भविष्य में
और इन इमारतों का कोई भविष्य नहीं.
Rachana ji,
जवाब देंहटाएंBahut sundar rachana,badhai.
भूत भविष्य और वर्तमान का सही ताल मेल होता तो दुनिया कुछ और होती!!!
जवाब देंहटाएंइमारतों का दर्द सटीक है!
हर कोई जीता है भविष्य में
जवाब देंहटाएंऔर इन इमारतों का कोई भविष्य नहीं.
बखूबी कह रही हैं ये जर्जर इमारतों का दर्द...बहुत सुन्दर...बधाई|
बुलन्दी का जीवन जी अन्त निहारती इमारतें।
जवाब देंहटाएंइस शहर में
जवाब देंहटाएंकोई भी नहीं जीता
भूत में वर्तमान में
हर कोई जीता है भविष्य में --
सही कहा , जीना तो वर्तमान में ही चाहिए ।
सुन्दर क्षणिका ।
मरने से नहीं डरतीं वो.
जवाब देंहटाएंडरतीं हैं इतिहास बनने से... chaahti hai ek bhavishy , bahut badhiyaa-
आपकी कविता में एकदम नई approach रहती है जो अच्छा लगता है.
जवाब देंहटाएंसच का आईना दिखाती आपकी रचना .......आभार
जवाब देंहटाएंबहुत ही बेहतरीन भावों का संगम ।
जवाब देंहटाएंरचना जी बधाई ,ज्वलंत प्रश्न..???
जवाब देंहटाएंभूत में जिया नही जा सकता ,
वर्तमान में जीना नही चाहते
भविष्य का कोई पता नही ....
फिर हम बूढी इमारतों को तो इतिहास ही बनना पड़े गा न....???
इतिहास नहीं बनना चाहतीं इमारतें ..आज कल तो मलबा बन कर रह जाती हैं ... वर्तमान को महत्त्व देती अच्छी प्रस्तुति
जवाब देंहटाएंहर कोई जीता है भविष्य में
जवाब देंहटाएंऔर इन इमारतों का कोई भविष्य नहीं.
बिलकुल सटीक बात।
सादर
जर्जर हुई इमारतें ..भले ही अपनी हालत बयां नहीं कर पाती ..पर सच कहा आपने भूत ओर भविष्य में जूझती रहती हैं ...
जवाब देंहटाएंबहुत सुन्दर.
जवाब देंहटाएंसच कह रही हैं आप ...स्थिति चिंताजनक है !
जवाब देंहटाएंशुभकामनायें आपको !
फिर भी खड़ी हैं दम साधे
जवाब देंहटाएंडर के साये में कि कहीं आ न जाए
कोई तेज हवा का झोंका.
और ढह जाएँ वो
बहुत ही सटीक बात कही है...
सच्चाई को बड़े खूबसूरती से शब्दों में पिरोया है! उम्दा रचना ! बेहद पसंद आया!
जवाब देंहटाएंकविता में निहित गंभीर भाव मन की संवेदना को स्पर्श कर गए !
जवाब देंहटाएंबधाई हो इतनी सुन्दर कविता के लिए !
कहीं हम सब भी इमारत तो नहीं..
जवाब देंहटाएंहर कोई जीता है भविष्य में
जवाब देंहटाएंऔर इन इमारतों का कोई भविष्य नहीं !
सही कह रही है आप हर कोई भविष्य के
सुनहरे सपने देखना चाहता है !
इस टिप्पणी को लेखक द्वारा हटा दिया गया है.
जवाब देंहटाएंरचना जी,
जवाब देंहटाएंइमारतों की कथा/व्यथा आप ने शब्दों में पूर्णतः ढाल दी है... कभी मैंने भी इन इमारतों के बदन पट चाकू से गोदे जाते प्रेमी-प्रेमिकाओं के नाम पर एक पोस्ट लिखी थी...
इमारतों में भी भेद-भाव, किस्मत, भाग्य जैसा कुछ होता है, तभी तो कोई ऐतिहासिक होने का दर्ज़ा पाकर स्वर्णिम भविष्य को उपलब्ध होती हैं और कोई खँडहर बनकर अतीत की यादें बनी रह जाती हैं..
बहुत ही सुन्दर कविता!!
उम्र के उस पडाव पर इमारत और मानव के जीवन में कोई अंतर नहीं होता.... क्या पता कौन से हवा का झोंका कब उड़ा ले जाय!!!!!
जवाब देंहटाएंsach kaha sab ko bhavishy ki chinta hai bina bahvishy ki neev taiyar kiye.
जवाब देंहटाएंकोई भी नहीं जीता
जवाब देंहटाएंभूत में वर्तमान में
हर कोई जीता है भविष्य में
Sach hai.... Bahut Sunder Kavita
बहुत खूब, सही बात कही है आपने
जवाब देंहटाएंइमारत कोई भी हो, कहीं न कहीं तो .........
रचना जी ,नमस्कार !
जवाब देंहटाएंभूत में जिया नही जा सकता
वर्तमान में आजकल जीना नही चाहते
भविष्य की किसी को ख़बर नही ....
तो हम पुरानी इमारतों को तो इतिहास
बनना ही है ...यही जिंदगी की सच्चाई है ..?
शुभकामनाएँ!
वाह....अनोखे से विषय पर लिखी अच्छी रचना.
जवाब देंहटाएंशुभकामनाएं.
bahut sundar kavy srijan ,,,,, shukriya rachna di
जवाब देंहटाएंएक खुबशुरत बेहतरीन रचना बधाई ....
जवाब देंहटाएंनए पोस्ट में स्वागत है ...
इतिहास बनने से हर कोई डरता है लेकिन बचना मुमकिन नहीं .........
जवाब देंहटाएंभविष्य की चिंता करते-करते वर्तमान यूं ही गुजर जाता है ...सुंदर अभिव्यक्ति
जवाब देंहटाएंबहुत ही सुन्दर प्रस्तुति है आपकी.
जवाब देंहटाएंइमारतों का दर्द उकेरती सुन्दर प्रस्तुति
के लिए आभार.
मेरे ब्लॉग पर आप आयीं और सुन्दर टिपण्णी भी की.इसके लिए भी आपका दिल से आभारी हूँ.
शिकायत तो निर्जीव इमारतों को भी हो सकती है .... बहुत खूब !
जवाब देंहटाएंहमारे शहर की बुजुर्ग जर्जर खस्ताहाल इमारतें. कंपकंपाती हुई झुकी हुई.
जवाब देंहटाएंफिर भी खड़ी हैं दम साधे डर के साये में
......सच का आईना दिखाती आपकी रचना
आदरणीया
जवाब देंहटाएंअब तो हर शहर की यही त्रासदी है.... त्रासदी को सही शब्दों में वयात करने का आभार
बहुत सुन्दर
वक़्त को परिभाषित करने का बिल्कुल ही नया बिम्ब.
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