मुन्तज़िर
(1)
आज फिर सब मेरी आँखों के सामने से गुजरा
वही सर्द मौसम वही ज़र्द चेहरा.
खुशियाँ पुरबहार पर हवाओं पर पहरा
यहीं आके कभी वसंत था ठहरा.
कभी यहीं पर बंधा था
मेरे सर जीत का सेहरा.
आज यहीं है खौफ
और मौत सा कुहरा
जिसे देख कर मेरा जिस्म है सिहरा.
(2)
लम्बे होने लगे आज फिर ये मौत के साए,
इन बेबाक आँखों में ये बेखौफ से आये.
ये शबनमी बिछौना अब दर्द की दास्तान हो गया,
ये मखमली चदरा आज शरीरे कफ़न हो गया.
(3)
मेरे दर पे आने से पहले दस्तक दिया करो,
जब तक मैं न कहूँ यूँ ही खड़े रहा करो.
तुम कोई हवा तो नहीं कि जब चाहो आया जाया करो,
तुम तो मेरी साँस हो कभी तो रुक भी जाया करो.
Rachna ji...
जवाब देंहटाएंDard kyon hai dikh raha...
Chhhay teri har nazm main...
Har tarf khushian hi khushian...
Dekh lo tum vazm main...
Gum ke tufan aaj beshak...
Aa rahe tere kareeb...
Door khushian bhi khadi hain...
Ban ke teri hi rakeeb....
Bhavpoorn krutiyan...
Deepak Shukla..
कौन रुका है,
जवाब देंहटाएंसाँसे भी तो,
आती और,
चली जाती हैं।
एक दर्द भरे अहसास को भवुक अभिव्यक्ति देती यह रचना मन को स्पर्श करती है।
जवाब देंहटाएंअभिव्यक्ति मन को स्पर्श करती है।
जवाब देंहटाएंतुम कोई हवा तो नहीं कि जब चाहो आया जाया करो तुम तो मेरी साँस हो कभी तो रुक भी जाया करो.
जवाब देंहटाएंभावुक अभिव्यक्ति...
तुम कोई हवा तो नहीं कि जब चाहो आया जाया करो,
जवाब देंहटाएंतुम तो मेरी साँस हो कभी तो रुक भी जाया करो.
इन पंक्तियों का काव्य सौंदर्य अनूठा है, अनुपम है।
सभी कविताएं बहुत ही अच्छी लगीं।
तुम तो मेरी साँस हो, कभी तो रुक जाया करो...
जवाब देंहटाएंसारी बातों का निचोड़ इन पंक्तियों में समा गया, वाह !!!!
आज किसी अलग मूड में लिखी है यह रचना ।
जवाब देंहटाएंशायद फिर कोई दर्द उभर आया है ।
तुम तो मेरी साँस हो कभी तो रुक भी जाया करो।
इसका आशय समझ नहीं आया रचना जी । साँस भी भला कभी रूकती है ।
वाह रचना जी...
जवाब देंहटाएंबहुत खूसूरत गज़ल...
दर्द में डूबी अहसासों से भरी रचना ....
जवाब देंहटाएंमेरे दर पे आने से पहले दस्तक दिया करो,
जब तक मैं न कहूँ यूँ ही खड़े रहा करो.|
शुभकामनाएँ!
Gazabkee rachana hai!
जवाब देंहटाएंरचना जी ये भी आपकी एक सुंदर कविता है .
जवाब देंहटाएंसुन्दर सारगर्भित रचना अच्छी लगी रचना जी .
जवाब देंहटाएंबहुत ही खूबसूरत भावो की माला गूंथी है।
जवाब देंहटाएंमनोभावों की ज़बरदस्त अभिव्यक्ति है आपकी कविता में.
जवाब देंहटाएंदर्द की अप्रतिम अभिव्यक्ति!
जवाब देंहटाएंantas ke bhaavon ko shabdo se sashakt chitrit kiya hai.
जवाब देंहटाएंvery nice poetry;;;
जवाब देंहटाएंpadh kar dil bag-bag ho gaya..
"मेरे दर पे आने से पहले दस्तक दिया करो, जब तक मैं न कहूँ यूँ ही खड़े रहा करो;
जवाब देंहटाएंतुम कोई हवा तो नहीं कि जब चाहो आया जाया करो,
तुम तो मेरी साँस हो कभी तो रुक भी जाया करो"
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सुन्दर रचनायें और हृदयस्पर्शी पंक्तियाँ.
वाह ...बहुत ही बढि़या।
जवाब देंहटाएंमौत सा कुहरा, मौत के साये...दर्द और कफन ये कुछ नयी सी कहानी कहते हैं...अंतिम बंद बहुत सुंदर बन पड़ा है, आभार!
जवाब देंहटाएंये कौन सा मंज़र देख आई हैं आप ? मौत के साये और कफ़न की बात ?
जवाब देंहटाएंमौत तो आनी है आएगी
इंतज़ार है जिसका
उसके आने से शायद
साँस ही रुक जायेगी ... :):)
बहुत मर्मस्पर्शी...एक एक पंक्ति दर्द को जीवन्त करती हुई...बहुत भावपूर्ण प्रस्तुति...
जवाब देंहटाएंbahut hi khoobsurat rachna hai ,shukriyaan ,kai mahino door rahi sabse aur bahut kuchh chuk gayi .
जवाब देंहटाएंबहुत ही भावपूर्ण प्रस्तुति है आपकी.
जवाब देंहटाएंसुन्दर सारगर्भित रचना अच्छी लगी
सुन्दर भाव एवं अभिव्यक्ति के साथ शानदार ग़ज़ल लिखा है आपने! बधाई!
जवाब देंहटाएंमेरे नये पोस्ट पर आपका स्वागत है-
http://ek-jhalak-urmi-ki-kavitayen.blogspot.com/
http://seawave-babli.blogspot.com/
बहुत सुंदर रचना. बधाई...
जवाब देंहटाएंमेरी नई पोस्ट....
सब कुछ जनता जान गई ,इनके कर्म उजागर है
चुल्लु भर जनता के हिस्से,इनके हिस्से सागर है,
छल का सूरज डूब रहा है, नई रौशनी आयेगी
अंधियारे बाटें थे तुमने, जनता सबक सिखायेगी,
आपका स्वागत है
अन्तर को स्पर्श करती अभिव्यक्ति....
जवाब देंहटाएंसादर..
bahut khub...umdaa
जवाब देंहटाएंतुम कोई हवा तो नहीं कि जब चाहो आया जाया करो,
जवाब देंहटाएंतुम तो मेरी साँस हो कभी तो रुक भी जाया करो.
लाज़बाब कर दिया...इन पंक्तियों ने...बहुत सुन्दर
मेरी नई पोस्ट की चंद लाइनें पेश है....
जवाब देंहटाएंजहर इन्हीं का बोया है, प्रेम-भाव परिपाटी में
घोल दिया बारूद इन्होने, हँसते गाते माटी में,
मस्ती में बौराये नेता, चमचे लगे दलाली में
रख छूरी जनता के,अफसर मस्ती के लाली में,
पूरी रचना पढ़ने के लिए काव्यान्जलि मे click करे
यहीं आके कभी वसंत था ठहरा.
जवाब देंहटाएंकभी यहीं पर बंधा था
मेरे सर जीत का सेहरा.
सुंदर पंक्तियाँ
कुछ कार्यालयीन व्यस्तता के कारण "संवेदना के स्वर" खामोश पड़ा है.. चैतन्य जी की व्यस्तता देखें कब टूटेगी.. वैसे हमारे बीच चर्चा चलाती रहती है और मैं उन्हें बताता भी रहता हूँ इन हलचलों के बारे में..
जवाब देंहटाएंआपकी यह कविताएं एक जीवन दर्शन प्रस्तुत करती है... एक यथार्थ, एक सच.. और सच का एक ऐसा रूप जो नया है, नवीन है और दिखता है एक नए आयाम की तरह!!
ये मखमली चदरा आज शरीरे कफ़न हो गया.
जवाब देंहटाएंक्या बात है बहुत सुंदर
क्या बात है रचना जी कुछ पन्तियाँ बहुत सुंदर लगी,...बेहतरीन पोस्ट .....
जवाब देंहटाएंमेरी नई पोस्ट की चंद लाइनें पेश है....
नेता,चोर,और तनखैया, सियासती भगवांन हो गए
अमरशहीद मातृभूमि के, गुमनामी में आज खो गए,
भूल हुई शासन दे डाला, सरे आम दु:शाशन को
हर चौराहा चीर हरन है, व्याकुल जनता राशन को,
पूरी रचना पढ़ने के लिए काव्यान्जलि मे click करे
आपका पोस्ट पर आना बहुत ही अच्छा लगा मेरे नए पोस्ट "खुशवंत सिंह" पर आपका इंतजार रहेगा । धन्यवाद ।
जवाब देंहटाएंदर्द भरी प्रभावशाली क्षणिकाएँ । शुभकामनाएँ ...
जवाब देंहटाएंbahut khoob .ab blog par aapse hi poochhkar aayen ya swayam aa jaya karen ?
जवाब देंहटाएंसदा की तरह दिल को छूती रचना।
जवाब देंहटाएंतुम तो मेरी साँस हो कभी तो रुक भी जाया करो.
जवाब देंहटाएंexceelent
A topic near to my heart thanks, ive been wondering about this subject for a while.
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