चारों तरफ फैला दुःख अवसाद और क्षोभ. रिश्तों पर ढ़ीली होती पकड़. अतीत के धूमिल होते पल क्षिन. वर्तमान में उन्हें एक बार फिर जी लेने की प्रबल उत्कंठा. कभी शब्दों के माध्यम से होती रचना की अभिव्यक्ति. कभी रचना के माध्यम से अभिव्यक्त होते कुछ शब्द.
रविवार, 13 नवंबर 2011
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सुबह-सुबह बिलकुल लेमन-टी के जैसी बेजोड़ कविता !
जवाब देंहटाएंab is chay ki kya baat hai...
जवाब देंहटाएंवाह बहुत सुंदर. ताज़गी भरी कविता.
जवाब देंहटाएंचकित हूं, इस शानदार कविता को पढ़कर।
जवाब देंहटाएंताजा चाय की तरह ताजगी भरी कविता
जवाब देंहटाएंलेमन टी की ताजगी से भरी कविता
जवाब देंहटाएंwaah rachna jee.../
जवाब देंहटाएंआपकी अद्भुत कल्पना और अनुपम बिम्ब प्रयोग आवाक कर देता है... चमत्कृत कर देता है...
जवाब देंहटाएंसादर बधाई....
इतनी रोमांटिक चाय !
जवाब देंहटाएंग़ज़ब !
बेहतरीन ।
बेहतरीन!
जवाब देंहटाएं----
कल 14/11/2011को आपकी यह पोस्ट नयी पुरानी हलचल पर लिंक की जा रही हैं.आपके सुझावों का स्वागत है .
धन्यवाद!
निम्बू की चाय के समान ताज़गी दे रही है यह कविता .. :):) बहुत सुन्दर भावपूर्ण रचना
जवाब देंहटाएंरचना जी ,बधाई
जवाब देंहटाएंआप की चाय का सब स्वाद ले रहें है ....
आप मेरी गजल का स्वाद लें मेरे ब्लॉग पर !
शुभकामनायें !
sundar rachana ko badhayi ji
जवाब देंहटाएंअच्छी रचना ..बहुत सुंदर
जवाब देंहटाएंवाह सुबह की ताजगी जैसे चाय में घुल के आ गई ...
जवाब देंहटाएंअति सुन्दर , बधाई.
जवाब देंहटाएंताजगी से भरपूर रचना!
जवाब देंहटाएंइस रोमांटिक चाय के स्वाद के तो कहने ही क्या।
जवाब देंहटाएंइस चाय का आनंद ही कुछ और है...
जवाब देंहटाएंइस टिप्पणी को लेखक द्वारा हटा दिया गया है.
जवाब देंहटाएंशहद के दो बूंद सी उसमें मिलती तुम्हारी सांसें
जवाब देंहटाएंनीबूं की फांक से तुम्हारे अधर
मैं ... खिल उठी ,सुनहरी हो गयी.
वाह!
इन खट्टे होते होंठों और मीठे होते मन को मुबारकबाद
बहुत अच्छी कृति !
जवाब देंहटाएंअच्छी चाय बनायीं है आपने !
लीक से हटकर ,लेकिन बहुत सुंदर कविता .
जवाब देंहटाएंTaaza :)
जवाब देंहटाएंrachna ji
जवाब देंहटाएंkya rachna karti hain! kammal hai aapki lekhni.
bahut hi sundar
bahut bahut badhai
poonam
Aprateem rachana hai!
जवाब देंहटाएंएकदम ताजगी और बेहतरीन शब्दों से रचित कविता ।
जवाब देंहटाएंवाह ....
जवाब देंहटाएंक्या बात है रचना जी .....
आपकी ये नई नई खोज आश्चर्य चकित कर जाती है ...
बहुत सुंदर .....
ओफ्फोह!! बिलकुल ताजगी भरी कविता!! आपकी कविता में ये नयापन तो हमेशा ही देखा है.. आज नयेपन के साथ ताजगी भी है!!
जवाब देंहटाएंप्रेन शहद से है बनी नीबू वाली चाय.
जवाब देंहटाएंभूरी आँखें तैरती जादू वाली चाय.
सुंदर व चमत्कारिक अभिव्यक्ति.
इस रचना की संवेदना और शिल्पगत सौंदर्य मन को भाव विह्वल कर गए हैं। बिम्बों का अनूठा प्रयोग आकर्षित करता है। सबकुछ मिला कर एक स्वादिष्ट चाय की तरह।
जवाब देंहटाएंआह ....ताज़गीपूर्ण रचना
जवाब देंहटाएंबेहतरीन!!
जवाब देंहटाएंक्या बात है, बहुत खूब, बहुत खूब
जवाब देंहटाएंचाय के इस रूप के बारे में पहले भी कभी सोचा गया था क्या ! बहुत ही सुन्दर...
जवाब देंहटाएंis chai ko pee kar aanad aa gaya
जवाब देंहटाएंक्या कहना है इस चाय का..बहुत खूब. बड़े दिनों बाद इतनी सुन्दर रचना पढ़ी.
जवाब देंहटाएंआपका शुक्रिया!
रचना जी बहुत ताजगी भरी सुंदर रचना...बधाई...
जवाब देंहटाएंमेरे नई में पोस्ट आपका स्वागत है.
अद्भुत ताजगी लिए हुए रचना
जवाब देंहटाएंनीरज
चाय का यह अंदाज़ अच्छा लगा...
जवाब देंहटाएंचाय सी ताजगी भरी कविता..सुन्दर
जवाब देंहटाएंअद्भुत...एक नवीन ताज़गी..
जवाब देंहटाएंwah kya baat hai ye khatti-meethi chay alag hi swad de gayi.
जवाब देंहटाएंचाय की तारीफ में मेरे भी दो शब्द ' वाह ' !
जवाब देंहटाएंचाय की लज्ज़त के संग में प्यार का टच भी दिखा.
जवाब देंहटाएंअनगिनत बिम्बों में रचना जी मुझे सच भी दिखा.
और सच ये है कि आप बहुत अच्छा लिखती हैं ,रचना जी .पढ़कर मज़ा आ जाता है.
वाह . बधाई इस बेहतरीन कविता की.
बहुत कुछ पठनीय है यहाँ आपके ब्लॉग पर-. लगता है इस अंजुमन में आना होगा बार बार.। धन्यवाद !
जवाब देंहटाएंis chay ka koi jod nhi bejod chay hai.bhut achchi kvita chay ke sath.thanks.
जवाब देंहटाएंताजा चाय की, ताजगी भरी कविता.....
जवाब देंहटाएंनीबूं की फांक से तुम्हारे अधर और मैं
जवाब देंहटाएंAchchhi rachna
नीबूं की फांक से तुम्हारे अधर और मैं
जवाब देंहटाएंAchchhi rachna
यह तो अदभुत अनुपम रचना है, रचना जी.
जवाब देंहटाएंसुन्दर से भावों से दीक्षित.
आपके पोस्ट पर आकर अच्छा लगा । मेरे नए पोस्ट शिवपूजन सहाय पर आपका इंतजार रहेगा । धन्यवाद
जवाब देंहटाएंखुशबू और ताज़गी से भरी बेमिसाल कविता! बधाई!
जवाब देंहटाएंtazagi bhari chai....aur sundar ehsas..
जवाब देंहटाएंइक
जवाब देंहटाएंअलग-सी ताज़गी
अलग-सी खुशबू
अलग-सा आनंद लिए हुए
मनोहारी रचना ... वाह .
जवाब देंहटाएं♥
आदरणीया रचना दीक्षित जी
सस्नेहाभिवादन !
आप भी न बस ! क्या नगीने जड़ती हैं !
गोल दानेदार शरारत/ चाय के पानी-सी उबलती मेरी सांसें / शहद के दो बूंद-सी तुम्हारी सांसें/ नीबूं की फांक से तुम्हारे अधर
वाह वाह वाऽऽह !
इस बेमिसाल बिंब-विधान से रूबरू हो'कर कौन खिल कर सुनहरी न हो जाएगा रचना जी ?
बहुत पसंद आई यह रचना भी :))
बधाई और मंगलकामनाओं सहित…
- राजेन्द्र स्वर्णकार
उफ़्फ़ क्या रचना है ! बस जी कर रहा है पढ़ते जाऊँ अनवरत चाय के ऊष्मा मानिंद। उफ़्फ़ क्या लिखती हैं आप ! और क्या कहूँ...उफ़्फ़, यह चाय।
जवाब देंहटाएंबहुत खूब...
जवाब देंहटाएंi have begun to visit this cool site a few times now and i have to tell you that i find it quite good actually. keep the nice work up! =)
जवाब देंहटाएंमजा आ गया.... और मुझे याद भी आ गया कि मैंने दूध गरम किया था चाय बनाने के लिए...
जवाब देंहटाएंधन्यवाद... हा हा