दस्तक
याद है मुझे कहा था मैंने,
जी लूंगी, रह लूंगी अकेले,
पर किसी के मोह पाश में न बंधूगी.
कितने स्थान बदले कितने झूठ बदले.
निश्चिन्त हो गई.
कर जो लिया था इन्द्रियों पर नियंत्रण
अचानक
वज़न घटने लगा, असहज रहने लगी,
दस्तक पर जीने लगी, कुछ महसूस करने लगी.
रोम रोम से बातें करनें लगी.
रुग्ण देह ले कर फिरने लगी.
आखिर कब तक बचती.
हार गयी तुम्हारे प्रेम के,
रेडिओ धर्मी तत्वों के आगे.
ढूंढ़ रही हूँ तुम्हें इत उत,
तुम्हारे विकिरणों से छलनी देह लिए.
अब आ भी जाओ
बचा लो मुझे
सिर्फ अपने लिए.
ढूंढ़ रही हूँ तुम्हें इत उत,
जवाब देंहटाएंतुम्हारे विकिरणों से छलनी देह लिए.
अब आ भी जाओ
बचा लो मुझे
सिर्फ अपने लिए.
जीवन की अनुभूतियों को बहुत सजगता से अभिव्यक्त किया है आपने ..आपका आभार
वज़न घटने लगा, असहज रहने लगी,
जवाब देंहटाएंदस्तक पर जीने लगी, कुछ महसूस करने लगी.
kab aaoge ?
विकिरण का प्रभाव जाता नहीं ..
जवाब देंहटाएंबहुत अच्छी रचना ।
bahut sunder abhivykti.
जवाब देंहटाएंkuch hai jispar apna niyantran nahee :)
हर आहट पर ये लगता है कि तुम हो..साया कोई लहराए तो लगता है कि तुम हो...
जवाब देंहटाएंChahe jahaan bhi chhupo ishq le hi aayega.. jitna bhi na na karo ishq pa hi jayega... sach ko ek naye angle se dekhti ye rachna bhi behad pasand aayi :)
जवाब देंहटाएंबहुत ही सशक्त एवं भावपुर्ण रचना.... सुन्दर प्रस्तुति।
जवाब देंहटाएं...बहुत खूब। खुद से भागना हमेशा छलावा ही सिद्ध हुआ है।
जवाब देंहटाएंWeight loss ki baat sabse badhiya lagi...Pyaar ka radioactive effect saaf nazar aa raha hai nazm mein....aapki nazm radiate hoka ham par to asar kar gai :-)
जवाब देंहटाएंआपकी रचनात्मक ,खूबसूरत और भावमयी
जवाब देंहटाएंप्रस्तुति भी कल के चर्चा मंच का आकर्षण बनी है
कल (25-4-2011) के चर्चा मंच पर अपनी पोस्ट
देखियेगा और अपने विचारों से चर्चामंच पर आकर
अवगत कराइयेगा और हमारा हौसला बढाइयेगा।
http://charchamanch.blogspot.com/
आपके लेखन में मैं एक विशेषता पा रहा हूँ, वह यह है की आप अपनी रचना में प्रोद्योगिकी, विज्ञान तकनीकी आदि बिम्बों को बखूबी जोड़ लेती हैं इसीलिए आपकी रचना अपनी एक खास पहचान सफलतापूर्वक बना लेती है. इस खूबसूरत रचना में भी यही बात है.
जवाब देंहटाएंएक सशक्त अभिव्यक्ति। मन की नदी का निष्कर्ष।
जवाब देंहटाएंआपने जीवन की अनुभूतियों को बहुत सजगता से अभिव्यक्त किया है|धन्यवाद|
जवाब देंहटाएंप्रेम बिना जीवन सूना , ये पागल प्रेमी बोले । के आजा तेरी याद आई ---
जवाब देंहटाएंइस गाने की याद आ गई । बहुत सुन्दर रचना के लिए बधाई ।
नवीन विम्ब के साथ आपकी यह कविता वास्तव में मन में दस्तक दे रही है... विकिरण का विम्ब सर्वथा नवीन है...
जवाब देंहटाएंबहुत सुन्दर, भावपूर्ण कविता रचना जी। साधुवाद।
जवाब देंहटाएंस्तब्ध कर देने वाली रचना।
जवाब देंहटाएंबस इतना ही कहूंगा ....
अब तो अक्सर नज़र आ जाता है दिल आंखों में
मैं न कहता था कि पानी है दबाए रखिए
कौन जाने कि वो कब राह इधर भूल पड़े
अपनी उम्मीद की शम्ओं को जलाए रखिए
हार गयी तुम्हारे प्रेम के,
जवाब देंहटाएंरेडिओ धर्मी तत्वों के आगे.
ढूंढ़ रही हूँ तुम्हें इत उत,
तुम्हारे विकिरणों से छलनी देह लिए....
आंतरिक पीड़ा की सहज अभिव्यक्ति...
एक प्रेसी के दिल की हलचल को दर्शाती सुंदर रचना, धन्यवाद
जवाब देंहटाएंयह विकिरण दिखता नहीं,बींध देता है और इस बिंधे ह्रदय से निकली एक सशक्त कविता है..
जवाब देंहटाएंबचा लो मुझे सिर्फ अपने लिए ...
जवाब देंहटाएंइन्तजार को एक बहाना दे दिया ...
सुन्दर भावाभिव्यक्ति !
यह कुछ अलग सी लगी रचना ...शुभकामनायें !
जवाब देंहटाएंआपकी विज्ञान के प्रति प्रीत भी कुछ कम नहीं है, अकेला तो परमात्मा भी घबरा गया तभी तो रच डाला उसने यह प्रपंच !
जवाब देंहटाएंदस्तक पर जीना और कुछ महसूस करना रुग्ण देह, रेडियोधर्मी तत्व, विकिरणों से छलनी देह। , विरह विज्ञान और वेदना साहित्य का सम्मिश्रण
जवाब देंहटाएंआखिर कब तक बचती.
जवाब देंहटाएंहार गयी तुम्हारे प्रेम के,
रेडिओ धर्मी तत्वों के आगे.
...लाज़वाब अभिव्यक्ति...इंतज़ार के पलों की वेदना का बहुत सशक्त चित्रण..
बचा लो मुझे
जवाब देंहटाएंसिर्फ अपने लिए.
बेहतरीन शब्द रचना ।
ढूंढ़ रही हूँ तुम्हें इत उत,
जवाब देंहटाएंतुम्हारे विकिरणों से छलनी देह लिए.
अब आ भी जाओ
बचा लो मुझे
सिर्फ अपने लिए
umeed ko kabhi nahi chhodna chahte yahi wajah hai ki bachane ke prayas me lage rahte hai ,shayad tabhi jee bhi pate hai ,sundar rachna .
what a passion !!!
जवाब देंहटाएंसशक्त एवं भावपुर्ण रचना.... सुन्दर प्रस्तुति।
जवाब देंहटाएंबड़ी खूबसुरती से आपने तो प्रेम के साइन और सिमटम भी डिस्क्राइब कर दिए ..बड़ी यथार्त और भावुक कविता बनी... बधाई...
जवाब देंहटाएंapki rachna padh kar ek sher yaad aaya...
जवाब देंहटाएंaapki yaad me ye haal banaye baithe hain.
aapki jagah mobile ko sine se lagaye baithe hain.
bahut sunder abhivyakti.
कविता में नए प्रकार का बिम्ब का प्रयोग उसे और प्रभाशाली बना रहा है. चर्चा मंच के माध्यम से आप तक पहुचने का मौका मिला.
जवाब देंहटाएंढूंढ़ रही हूँ तुम्हें इत उत,
जवाब देंहटाएंतुम्हारे विकिरणों से छलनी देह लिए.
अब आ भी जाओ
बचा लो मुझे
सिर्फ अपने लिए.
atyant prabhavi panktiya
sunder
badhai
rachana
सुँदर बिम्बों वाली कविता , प्रेम की भौतिकी पढ़ा गयी .
जवाब देंहटाएंआंतरिक मनोभावों की बेहतरीन अभिव्यक्ति...
जवाब देंहटाएंधन्यवाद आपका, मेरे ब्लाग नजरिया को पसन्द कर उसे फालो करने के लिये । आभार सहित...
होनहार
प्रेम के रेडियोधर्मी तत्व
जवाब देंहटाएंअद्भुत
अकेलापन एक त्रासदी है.
जवाब देंहटाएंहार गयी तुम्हारे प्रेम के,
जवाब देंहटाएंरेडिओ धर्मी तत्वों के आगे.
ढूंढ़ रही हूँ तुम्हें इत उत,
तुम्हारे विकिरणों से छलनी देह लिए.
बहुत गहन बात ...मन की पीड़ा को बड़े मौलिक अंदाज़ में लिखा है ....सुन्दर अभिव्यक्ति
हार गयी तुम्हारे प्रेम के,
जवाब देंहटाएंरेडिओ धर्मी तत्वों के आगे.
ढूंढ़ रही हूँ तुम्हें इत उत,
तुम्हारे विकिरणों से छलनी देह लिए....
बहुत ही सशक्त एवं भावपुर्ण रचना.
क्या बात है रचना जी!
जवाब देंहटाएंबहुत सुन्दर रचना ...बधाई....
जवाब देंहटाएंज़बरदस्त भावनाओं से लबरेज़,स्तब्ध कर देने वाली प्यारी काव्यात्मक अभिव्यक्ति.
जवाब देंहटाएंढूंढ़ रही हूँ तुम्हें इत उत,
जवाब देंहटाएंतुम्हारे विकिरणों से छलनी देह लिए....
वाह बहुत सुन्दर बिम्ब। भावमय सुन्दर रचना के लिये बधाई।
प्रेम में विरह की पराकाष्ठा का भाव पूर्ण चित्रण करती ....आकुल मन की व्याकुल रचना
जवाब देंहटाएंवहा वहा क्या कहे आपके हर शब्द के बारे में जितनी आपकी तारीफ की जाये उतनी कम होगी
जवाब देंहटाएंआप मेरे ब्लॉग पे पधारे इस के लिए बहुत बहुत धन्यवाद अपने अपना कीमती वक़्त मेरे लिए निकला इस के लिए आपको बहुत बहुत धन्वाद देना चाहुगा में आपको
बस शिकायत है तो १ की आप अभी तक मेरे ब्लॉग में सम्लित नहीं हुए और नहीं आपका मुझे सहयोग प्राप्त हुआ है जिसका मैं हक दर था
अब मैं आशा करता हु की आगे मुझे आप शिकायत का मोका नहीं देगे
आपका मित्र दिनेश पारीक
वहा वहा क्या कहे आपके हर शब्द के बारे में जितनी आपकी तारीफ की जाये उतनी कम होगी
जवाब देंहटाएंआप मेरे ब्लॉग पे पधारे इस के लिए बहुत बहुत धन्यवाद अपने अपना कीमती वक़्त मेरे लिए निकला इस के लिए आपको बहुत बहुत धन्वाद देना चाहुगा में आपको
बस शिकायत है तो १ की आप अभी तक मेरे ब्लॉग में सम्लित नहीं हुए और नहीं आपका मुझे सहयोग प्राप्त हुआ है जिसका मैं हक दर था
अब मैं आशा करता हु की आगे मुझे आप शिकायत का मोका नहीं देगे
आपका मित्र दिनेश पारीक
याद है मुझे कहा था मैंने,
जवाब देंहटाएंजी लूंगी, रह लूंगी अकेले,
पर किसी के मोह पाश में न बंधूगी. ....
दिल के हाथों कई बार दिमाग हार जाता है ....
आपके नए प्रयोग रचना में रोचकता भर देते हैं .....
रचना जी प्रेम रेडियोधर्मी होता है ये मुझे पता न था ... खैर अब तो लगता है बिलकुल परमाणु उर्जा संयंत्र के अंदर घुस गया हूँ ...:)
जवाब देंहटाएंबढ़िया नए बिम्ब ... अच्छा लगा !
याद है मुझे कहा था मैंने,
जवाब देंहटाएंजी लूंगी, रह लूंगी अकेले,
पर किसी के मोह पाश में न बंधूगी. ....
बहुत खूब
पहली बार आपके पोस्ट पे आया अच्छा लगा..... बहुत सुन्दर विचार..
जवाब देंहटाएंआपको मेरी तरफ से हार्दिक शुभकामनाएं...
पहली बार आपके पोस्ट पे आया अच्छा लगा..... बहुत सुन्दर विचार..
जवाब देंहटाएंआपको मेरी तरफ से हार्दिक शुभकामनाएं...
पहली बार आपके पोस्ट पे आया अच्छा लगा..... बहुत सुन्दर विचार..
जवाब देंहटाएंआपको मेरी तरफ से हार्दिक शुभकामनाएं...
पहली बार आपके पोस्ट पे आया अच्छा लगा..... बहुत सुन्दर विचार..
जवाब देंहटाएंआपको मेरी तरफ से हार्दिक शुभकामनाएं...
ek sunder rachana............
जवाब देंहटाएंjai baba banaras.............................
रचना जी आपकी इस रचना की जितनी तारीफ की जाये कम होगी.. बहुत शानदार भाव और सुन्दर शब्द...
जवाब देंहटाएंदुनाली पर देखें
चलने की ख्वाहिश...
sundar rachna
जवाब देंहटाएंrachna ji
जवाब देंहटाएंbilkul saty likha hai aapne ham dambh to bharte hain kabhi -kabhi is baat ka par ek vaqt aisa hi aatahai jablagta hai ki apne priy ke paas lout jaao.
ढूंढ़ रही हूँ तुम्हें इत उत,
तुम्हारे विकिरणों से छलनी देह लिए.
अब आ भी जाओ
बचा लो मुझे
सिर्फ अपने लिए.
bahut hi samvedan sheel panktiyan yatharta purn.
bahut bahut badhai
poonam
आखिर कब तक बचती.
जवाब देंहटाएंहार गयी तुम्हारे प्रेम के, रेडिओ धर्मी तत्वों के आगे.
ढूंढ़ रही हूँ तुम्हें इत उत,
तुम्हारे विकिरणों से छलनी देह लिए.
वाह! निराला अंदाज समर्पण का .
रेडियो धर्मिता प्रेम में भी होगी मालूम न था.
इसीलिए कहतें है शायद
'प्रेम का रोग बड़ा बुरा '
उफ़ कितनी शिद्दत है इस चाहत में समर्पण और चाहत की इंतिहा को समेटा है चंद शब्दों में ऐसा लगता है कहीं ना कहीं जैसे रचनाकार ने अपने आप को शब्दों में पिरो दिया है ..
जवाब देंहटाएंबहुत अच्छी रचना ..आपका आभार
जवाब देंहटाएं