आहट
हर दिन की शुरुआत होती है,
आवाजों से...
घंटी की घनघनाहट...
कूड़े वाला, ढूधवाला, गाड़ी साफ करने वाला.
काम वाली की आहट.
बर्तनों की खनखनाहट...
पास से गुजरती रेलगाड़ी
और उसकी झनझनाहट...
बारह बजते बजते
शांत सा होने लगता है सब कुछ,
फिर रसोई में
कुकर की सनसनाहट...
मिक्सी की मिमियाहट...
चकले बेलन की चिचियाहट...
तीन बजे जब शरीर पलंग को छूता है
शरीर के अंगों से आती थरथराहट...
अनसुनी कर देती हूँ
फिर शाम पार्क से
आती हवा की सरसराहट...
क्रिकेट खेलते बच्चों की किटकिटाहट...
सैर करती महिलाओं की खिलखिलाहट...
लोरी गाती माँ की गुनगुनाहट...
कितना शोर, कितनी आवाजें आती हैं
इस घर में, सारा दिन, सब कहते हैं
रात को जब बिस्तर से लगती हूँ
आती हैं मन से तरह तरह की आवाजें
सुनती हूँ, समझती हूँ, समझाती हूँ,
सहलाती हूँ, पुचकारती हूँ और चुप करा देती हूँ.
क्योंकि माहिर हूँ मैं इस काम में,
पर कभी जिद्द पर अड़ जाती हैं.
कुछ आवाजें
आँखों के रस्ते बाहर आती हैं
फैल जाती हैं पूरे कमरे में,
न जाने घर में
किसी को क्यों नहीं सुनाई देती हैं
ये आवाजें मेरे सिवाय ?