द्वन्द
आज आमाशय की तंग गलियों में
जठर का रिसाव रोज़ की अपेक्षा थोडा कम है.
प्राण वायु व कलुषित वायु की कलह से उपजे,
वायु के बुलबुले
जठराग्नि को हवा दे रहे हैं.
फलतः मेरु द्रव में मद्धम - मद्धम
स्पंदन की अनुभूति हुई है,
जो मस्तिष्क द्रव से मिल,
मेरु- मस्तिष्क द्रव में,
अनायास ही कोलाहल में परिणित हुआ है,
और अब मस्तिष्क पटल पर,
कुछ पीली, सफ़ेद तरंगों के
उद्दीपन का फैलाव,
शरीर में एक अजीब सी
नवजात हलचल को जन्म दे रहा है,
क्या ये,
किसी घातक रोग की विलक्षणता के लक्षण हैं.
या
किसी के प्रेम के अनुमोदन का ज्वर
और उसकी मौन स्वीकृति की
उदघोषणा से पहले का
मानसिक द्वन्द.
(प्राण वायु - ओक्सीज़न, कलुषित वायु- कार्बन डाई ऑक्साइड, मेरु द्रव-स्पाइनल फ्लुइड, मस्तिष्क द्रव-सेरेब्रल फ्लुइड, मेरु - मस्तिष्क द्रव---सेरेब्रो- स्पाइनल फ्लुइड)
Wow Incredible! biology and emotions ka unique combination. I had never ever read such kind of poetry earlier...God bless you! keep writing
जवाब देंहटाएंबाइयालजी को बिंब बना कर लिखी रचना ... अच्छी लगी ..
जवाब देंहटाएंमानसिक द्वन्द के लिए अनूठे बिम्ब..कमाल..
जवाब देंहटाएंआज कुछ नया नया सा है।
जवाब देंहटाएंप्रेम अनुभूति को इस तरह अभिव्यक्त करना --क्या आप बायोलोजी की छात्र रही हैं।
वैसे जठर का अर्थ नहीं बताया --शायद असिड ?
बहुत सुन्दर रचना ।
bhavarth samajh aaya shavdarth nahee.........:)
जवाब देंहटाएंagalee var se hum jaise south me rahane walo ke liye.
abhivykti bha gayee..........
पाठको की सुबिधा के लिए कुछ बायोलोजिकल टर्म्स अंग्रेजी में भी लिख रही हूँ
जवाब देंहटाएंआमाशय = Stomach
जठर = Bile
जठराग्नि = Acidity
प्राण वायु = Oxygen
कलुषित वायु = Carbon dioxide
मेरु द्रव-स्पाइनल फ्लुइड, Spinal Fluid
मस्तिष्क द्रव - Cerebral Fluid
मेरु - मस्तिष्क द्रव - Cerebrospinal fluid
उद्दीपन = Stimulus
बहुत सुन्दर रचना ।
जवाब देंहटाएंआज आमाशय की तंग गलियों में
जवाब देंहटाएंजठर का रिसाव रोज़ की अपेक्षा थोडा कम है.
प्राण वायु व कलुषित वायु की कलह से उपजे,
वायु के बुलबुले
जठराग्नि को हवा दे रहे हैं.
bahut shaandaar prastuti ,man ko sparsh karte rahe bhav w shab ,ati sundar likha hai ,mahila divas ki badhai sweekaare .
इतने नये बिम्बों का एक साथ प्रयोग देख कर यह कवि मन प्रसन्न हो गया । ऐसे प्रयोगों का मैं स्वागत करता हूँ ।
जवाब देंहटाएंरचना जी, ये कविता बहुत ज्ञानवर्धक अहसास से लबरेज है.
जवाब देंहटाएंआज आमाशय की तंग गलियों में
जवाब देंहटाएंजठर का रिसाव रोज़ की अपेक्षा थोडा कम है.
ये पंक्तियाँ आज मुझे थोडा गुदगुदा रही है...
Unique Thoughts और द्वंद्व !
रचना मैम
जवाब देंहटाएंअंतर्राष्ट्रीय महिला दिवस की शुभकामनायें...... !
बहुत शानदार रचना........बधाई.....
समृद्ध हिंदी भाषा में लिखी कविता बहुत ही मोहक है
arey baap rey itni kalisht hindi...sir k upar se ja rahi he ye biology....lekin end k shabd pyar aur dwand se kuchh kuchh dwand jaga aur english to hindi version bhi padh dala...pata nahi kitna samajh aaya...kya kahu ab???:) :)
जवाब देंहटाएंadbhut sanyojan
जवाब देंहटाएंclinical lab mein hriday mei upjee
जवाब देंहटाएंtrangit samvednaaoN ka sooksham avlokan....
should it be termed as a
spandan-'culture'-test.....!!
report should be made available at the disposal of the mind...
and treatment...
s.o.s. !
रचना जी प्रेम से उपजे मानसिक दुअन्द को शारीरिक बदलावों के बिम्ब से रच्ना घडना शायद ये अद्भुत प्रयोग है। आचँभित हूँ। अमाशय की तंग गलियाँ--- वाह और जठराग्नि, प्राण्वायू, लगता है पूरे शारीरिक क्रिया कलाप ही संवेदनाओं से त्र्स्त है। बधाई अतिउत्तम रचना के लिये।
जवाब देंहटाएंअद्भुत - अकल्पनीय
जवाब देंहटाएंविज्ञान की भाषा में कविता ....कुछ नया प्रयोग .....अच्छा लगा .....!!
जवाब देंहटाएंवाह ! कौन कहता है कि,
जवाब देंहटाएंहिंदी में वैज्ञानिक भाषा प्रयोग नहीं होता है !
अछूते बिम्बों के प्रयोग ने कविता में ताजगी ला दी है !
बहुत बहुत बधाई हो !महिला दिवस कि बधाई !!!
bahut shaandaar prastuti ,man ko sparsh karte rahe bhav w shab ,ati sundar likha hai
जवाब देंहटाएंBibon sayonjan kar bhavpurn anoothi rachna ke liye badhi...
जवाब देंहटाएंबहुत बढ़िया,
जवाब देंहटाएंकुंवर जी,
किसी के प्रेम के अनुमोदन का ज्वर
जवाब देंहटाएंऔर उसकी मौन स्वीकृति की
उदघोषणा से पहले का
मानसिक द्वन्द.
Wah...kya kamal hai!
अद्भुत सुन्दर रचना! आपकी लेखनी को सलाम!
जवाब देंहटाएंआपकी टिप्पणी के लिए आपका आभार....आपने विज्ञानं और प्रेम के कैसे एक धागे में पिरो दिया....??? गजब ....!!!
जवाब देंहटाएं---डिम्पल
विज्ञान ज्ञान को कविता में इतनी खूबसूरती से प्रस्तुत कर दिया है कि मैं निशब्द हूँ...
जवाब देंहटाएंबहुत ही सुन्दर !
दो बार पढ़ी/ अर्थ समझा..शब्द कठीन हैं मगर रचना अनूठी बन गयी है..
बधाई.
बहुत सुन्दर लिखा...बेहतरीन रचना !!
जवाब देंहटाएं______________
"पाखी की दुनिया" में देखिये "आपका बचा खाना किसी बच्चे की जिंदगी है".
भीषण.
जवाब देंहटाएंमस्त !!!
जवाब देंहटाएंबहुत शानदार रचना........बधाई.....
जवाब देंहटाएंअल्ला अल्ला आपके मौजूं चित्र!!!!
जवाब देंहटाएंचित्र बाद में खुला
जम गए थे जो लफ्ज़ कभी सीने में मेरे,
जवाब देंहटाएंउनको बहाने के आज सौ बहाने मिले..
kya gazab dhaya hai is pooree rachanane! Baar, baar padhneko man karta hai..
जो आप मेल न करती तो इस अद्भुत रचना(रचना की रचना) से वंचित ही रह जाता मैं। ब्लौग-जगत की एक ये भी अजब विडंबना है कि हम इसमें पत्रिकाओं की तरह पुराने पन्नों को पलट कर कम ही देखते हैं...
जवाब देंहटाएंअनूठा प्रयोग है कविता का ये। कम-से-कम मैंने तो इन बिम्बों का इस तरह्से प्रयोग होते नहीं देखा है...यही कवि की मेहनत और लगन भी है कि लीक से हटकर कुछ नया लिखना। जहां तक कुछ टिप्पणिकारों ने हिंदी के जटिल शब्दों के प्रयोग की बाबत बात की है...तो हम एक बचपन से हिंदी मिइडियम स्कूल में पढ़े-लिखे हैं...जीवविज्ञान और वनस्पतिविज्ञान के तमाम सिलेबस इन्हीं शब्दों से अटे पड़े थे।
एक नये ढ़ंग की कविता के लिये बधाई मैम....शरद कोकास जी ने भी तो कह दिया है।
यह बिलकुल अलग ही चीज है...डॉ हो क्या रचना जी ...???
जवाब देंहटाएं:-))
आपकी लेखनी को सलाम!
जवाब देंहटाएंapki kuch rachnao ko dobara padhnae ka man karta hai..
जवाब देंहटाएंवैज्ञानिक शब्दावली(टर्म) का ऐसा विलक्षण प्रयोग शायद ही कोई कर सकता है....वाह...
जवाब देंहटाएंभाव भाषा शब्द चयन...सब बेजोड़...बहुत ही सुन्दर रचना...