रविवार, 28 मार्च 2010

अहसास

सा




आशुतोष ने फिर

उषा का घूँघट उठाया है.

लजा के उसने भी

चेहरा तो दिखया है.

सुहागन हो गयीं दिशाएं सारी

सिंदूर यूँ सजाया है.

पर

ओस की बूंदों का आंचल

दूब के सर से भी तो

तूने ही हटाया है,

क्या बात है दिवाकर

कोई मलिन विचार आया है.

क्या भूल गया प्रतिद्वंदी घन को,

जो कुछ करने पे आ जायेगा,

दूब को चूनर ओढ़ा उषा को ले जाएगा.

मैं तो सदा हद में रही,

चाहे जितना भी ऊँची उड़ी.

तू भी जरा हद, बना ले अपनी

नहीं तो आदमी बन जाएगा.

आदमी बन जाएगा.


26 टिप्‍पणियां:

  1. nihavd mahsoos kar rahee hoo...................

    bahut bahut sunder abhivykti aur shavd -chayan........

    Aabhar................

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  2. rachna ji maja aa gaya apki ye rachna padh kar..wah kya thitholi hai...aur us par aashutosh ko aapki daant aur ghan ka darava dena...kya baat hai..aaj to kuchh hat ke lagi aapki rachna.

    pichhli baar apka blog nahi khul raha tha so rev.nahi de payi.

    जवाब देंहटाएं
  3. प्राकृतिक सौंदर्य के साथ आदमी पर तीव्र कटाक्ष भी.... सुन्दर रूपक सजाये हैं....खूबसूरत अभिव्यक्ति..

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  4. आपकी इस कविता ने मेरे शब्दागार में पड़े कुछ शब्दों पर जमी धूल झाड़ दी है. बहुत सुंदर.

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  5. सूर्य देवता ... संभाल जाओ ...
    अच्छा व्यंग है .... सुंदर भाव है रचना के ...

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  6. तू भी जरा हद, बना ले अपनी

    नहीं तो आदमी बन जाएगा.

    इन पंक्तियों में सब कुछ कह दिया रचना जी ।
    बहुत बढ़िया लगी ये रचना ।

    जवाब देंहटाएं
  7. प्राकृतिक सौंदर्य के साथ आदमी पर तीव्र कटाक्ष भी.... सुन्दर रूपक सजाये हैं....खूबसूरत अभिव्यक्ति..

    जवाब देंहटाएं
  8. सुन्दर शब्दों का खूबसूरत इस्तेमाल..."

    जवाब देंहटाएं
  9. उषा और निशा के अन्तरंग मिलन
    चन्दा और सूरज कि निकटता
    और
    आपकी इस मनभावन रचना के अनूठे शब्द
    सभी कुछ मिल कर
    एक लुभावना वातावरण सा छा गया है
    और उस पर एक आह्वान भी .....
    बहुत अच्छी नज़्म ....वाह

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  10. सुंदर अभिव्यक्ति मगर यह क्या लिख दिया आपने !

    तू भी जरा हद, बना ले अपनी
    नहीं तो आदमी बन जाएगा..!

    गोया आदमी कभी हद में नहीं रहता..!
    हाय, अब ये दिन रह गए सुनने को...!!
    अरे, आदमी ही तो है जो अपनी हद जानता है.
    यह अलग बात है कि अक्सर पार कर जाता है.
    ....सुंदर कटाक्ष के लिए बधाई।

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  11. क्या भूल गया प्रतिद्वंदी घन को,


    जो कुछ करने पे आ जायेगा,


    दूब को चूनर ओढ़ा उषा को ले जाएगा.

    मैं तो सदा हद में रही,


    चाहे जितना भी ऊँची उड़ी.

    तू भी जरा हद, बना ले अपनी


    नहीं तो आदमी बन जाएगा.


    आदमी बन जाएगा.
    waah kya khoob rachna hai ,shabd saare dil ko chhoo gaye .kamaal ka likhti hai aap .

    जवाब देंहटाएं
  12. रचना जी,
    आपके ब्लोग पर पहली बार आना हुआ... बहुत सुखद अनुभव रहा. आपकी रचनायें पढ कर लगा कि आप अवश्य ही साईंस की छात्रा रही हैं... हो सकता हैं मैं गलत भी हूं... पर साईंस के मूल मंत्रों की छाप आपकी रचनाओं में साफ़ झलकती है.
    लिखती रहें..

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  13. वाह वाह क्या बात है !एक साथ प्रकृति
    और आदमी दोनों की खबर !!!
    बेहतरीन ओजस्वी प्रस्तुती !

    जवाब देंहटाएं
  14. प्रकृति का मानवीयकरण हमको खूब भाया है

    और फिर इसमें निहित एक व्‍यंग भी समाया है
    वाह रचना जी, बहुत खूब,बहुत खूब

    हमको ये बहुत पसन्‍द आया है
    ...इतना सुन्‍दर रचना से रूबरू करवाने के लिये आपका बहुत आभार और बधाई।।

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  15. मैं तो सदा हद में रही,
    चाहे जितना भी ऊँची उड़ी.
    तू भी जरा हद, बना ले अपनी
    नहीं तो आदमी बन जाएगा.

    नसीहत देती हुई रचना बहुत बढ़िया लगी!

    जवाब देंहटाएं
  16. बहुत ख़ूबसूरत भाव और अभिव्यक्ति के साथ आपने शानदार रचना लिखा है जो काबिले तारीफ़ है!

    जवाब देंहटाएं
  17. "तू भी जरा हद, बना ले अपनी
    नहीं तो आदमी बन जाएगा."
    मेरे जैसे अब भी नासमझें तो कोई क्या करे. भिगोकर मारने के लिए धन्यवाद् - आदमी (हम)हैं ही इसी लायक.

    जवाब देंहटाएं
  18. PLZ VISIT RACHNA JI

    http://yuvatimes.blogspot.com/2010/03/blog-post_30.html

    ITS ME

    SANJAY BHASKAR

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  19. रचना जी आपके ये नये प्रयोग आपकी रचना को अलग व् विशिष्ठ स्थान देते है .....बहुत सुंदर.....!!

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  20. शुक्रिया
    वाह क्या वैज्ञानिक रचनायें करती हैं आप और तकनीकी लफ़्ज़ों का इतना ख़ूबसूरत इस्तेमाल ! .खूब !

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  21. वाह...अनूठी कल्पनायें...दूब को चूनर ओढ़ा उषा को ले जाएगा.

    जवाब देंहटाएं

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