शहीद का वतन
जहाँ की खुशबू,हवा और जुबाँ से हम महकते हैं
जिसकी हिफाज़त को हम धरम ईमान कहते हैं
सीने में जहाँ शहीद होने के अरमान रहते हैं
जिसके नाम पे हम, आज भी नाज़ करते हैं
उसी को शहीद का वतन कहते हैं !
पिता की आँखों मे जहाँ आंसू न बसते हैं
माँ की दवाई को पैसे न बचते हैं
पेंन्शन को दौड़ दौड़, मेरी बेवा के पांव न थकते हैं
खाने को कभी जहाँ पकवान न पकते हैं
हाँ! उसी को मेरी जाँ शहीद का वतन कहते हैं
ताबूत से जहाँ मेरे पैसे छनकते हैं
बेवा की पेंन्शन से प्याले छलकते हैं
न करो घर से बेघर, बीबी बच्चे कगरते हैं
घर वाले जहाँ जी जी के मेरे रोज मरते हैं
उसी को शहीद का वतन कहते हैं ??
(यह फोटोग्राफ मलेशिया की राजधानी कुआला-लूम-पुर के शहीद स्मारक का है)
उचित तो नही है किसी की टिप्पणी को कांट छांट करना .......... पर कुछ लोग जो अपने आपको कुछ बड़ा समझते हैं वो इस बात को नही समझेंगे .........
जवाब देंहटाएंबिलकुल नहीं.
जवाब देंहटाएंअजीब वाकया है रचना जी।
जवाब देंहटाएंहमने तो कभी सोचा भी नहीं था की टिपण्णी को भी काटा छांटा जा सकता है।
वाकई सही नहीं है।
नहीं टिप्पणी यदि आपत्तिजनक नहीं है तो उसमें काट-छांट एकदम गलत है. फिर आपकी टिप्पणी तो तमाम नई जानकारियां दे रही थी. अब इन्हीं जानकारियों को आप अपने ब्लॉग पर पोस्ट करें तो हम सब लाभ उठायें.
जवाब देंहटाएंRachnane antarmukh kar diya..
जवाब देंहटाएंGantantr diwas kee anek shubhkamnayen!
किसी की टिपण्णी में काट छांट उचित नहीं...
जवाब देंहटाएंआपकी रचना बेहद पसंद आई...
गणतंत्र दिवस की शुभकामनायें
रचना जी आपने तो दिलो दिमाग को निचोड़ दिया. सच में आज हमारे देश के हालात ऐसे ही है.
जवाब देंहटाएंबहुत अच्छी कविता..
वाह बहुत ही सुन्दर ! आपको और आपके परिवार को गणतंत्र दिवस की हार्दिक शुभकामनायें!
जवाब देंहटाएंAApki kriti marmik hai...aapne jis ghatna ka jikr kiya usse aapko thes pahunchna laazmi hai....lekin mansikta ko badalna bahut mushkil hota hai.....har insaan ka cheezo ko dekhne ka apna nazariya hota hai...aapse request hai ki aap Shaheed-e-azam bhagat singh par ek post likhe....ham padhna chaahte hai unke baare mein....aur aisi baaton se dukhi mato ho
जवाब देंहटाएंdesh ke haalat ko darshati aur bhavpoorn rachna ,gantanra divas ki badhai .
जवाब देंहटाएंbahut hee sundar rachna..badhai
जवाब देंहटाएंटिप्पणी का वैसे कई बार पता भी नहीं चलता...अच्छा होता जो आप लिंक भी दे देतीं। खैर इसी बहाने आपने कविता बड़ी अच्छी पढ़वायी है।
जवाब देंहटाएं"बेवा की पेंन्शन से प्याले छलकते हैं" जाने कितने वाकिये आंखों के सामने घूम आये हैं। अपने कुछ बेहद करीब दोस्तों की शहीद होने के बाद उस घर-घर की कहानी...
आप सभी लोगों का मेरी इस पोस्ट पर प्रतिक्रिया के लिए धन्यवाद देना चाहती हूँ. मैंने ये पोस्ट इसलिए लिखी थी मैं ये बताना चाह रही थी की शहीदों के साथ या उनके नाम के साथ कोई राजनीती अच्छी नहीं लगती. मैं ना तो किसी को नीचा दिखाने या अपने को बड़ा दिखाना चाहती थी.
जवाब देंहटाएंआपकी रचना बेहद पसंद आई...
जवाब देंहटाएंरचना जी,
जवाब देंहटाएंप्रणाम,
आज अचानक गौतम जी का फोन आया मेरे पास ...और उन्होंने मुझे आपके बारे में बताया...
सचमुच मैं बहुत हैरान हो गयी...मैंने अनजाने ही आपको आहत किया और मुझे पता भी नहीं चला...
आपने पोस्ट भी लिख दी और मैं जान भी नहीं पाई..
खैर...मैं आपकी बात समझ सकती हूँ...आपको ज़रूर ऐसा लगा होगा....लेकिन जिस टिपण्णी से मेरी पोस्ट का सम्मान बढ़े उसे काटने-छाँटने का क्या अवचित्य हो सकता है भला...??
आपकी बातों से मेरा मान ही बढ़ता ....आपका योगदान अमूल्य होता मेरी पोस्ट के लिए....
आप शायद नहीं जानती हैं लेकिन टिपण्णी बॉक्स की एक सीमा है...अगर आप सीमा से अधिक शब्द उसमें टंकित करेंगी तो वो नहीं लेता है या फिर काट-छाँट कर देता है...आप यह ख़ुद एक बार फिर देख सकती हैं....मैं स्वयं इसकी शिकार हो चुकी हूँ...लम्बी टिपण्णी मुझे दो-तीन बार में देना पड़ा ......पार्ट १- पार्ट-२ करके....और मुझे विश्वास है ..इस घटना का एक मात्र जवाब यही है और कुछ नहीं...
हाँ अगर आप , अपनी टिपण्णी देखने के बाद एक और टिपण्णी दे कर वहीँ उलाहना दे देतीं तो शायद आपको यह पोस्ट लिखने की ज़रुरत नहीं पड़ती...
बस इतना ही कहूँगी...कि मैं आपसे उम्र में भी छोटी हूँ और अनुभव में भी और लेखन में भी ....लेकिन इतनी छोटी नहीं हूँ कि इतनी ओछी हरकत करूँ...आशा है आपने मुझे क्षमा कर दिया होगा...
रचना जी,
जवाब देंहटाएंमैं माफ़ी चाहती हूँ फिर से आई हूँ..कुछ और बातों के लिए आपको आश्वस्त करने के लिए...कि आपकी उन चंद पंक्तियों के अलावा मेरे पास कुछ भी नहीं आया है...इसलिए आप इस डर को अपने मन से निकाल दीजियेगा कृपा करके कि उसपर लिखी बातों (पता, सन्दर्भ, नाम ) का मैं कोई बेजा फायदा उठा सकती हूँ...यह हो नहीं सकता है, मैं चाहूँ तब भी क्योंकि मेरे पास आपकी ऐसी कोई टिपण्णी आई ही नहीं..जो आई वही मैंने प्रस्तुत किया है...
अगर आपको अपनी अभी प्रकाशित टिपण्णी से किसी भी तरह कि कोई आत्मग्लानी, अपमान या क्षोभ महसूस हो रहा है..तो उसे हटाना आपके अधिकार में है ही...मैं बुरा नहीं मानूँगी.....आपकी भावनाओं का पूरा आदर करुँगी...
फिर एक बार आपसे यही अनुरोध है..कि आप अपने मन से इस बात को जितनी जल्दी हो सके निकाल बहार कीजिये कि मैंने आपकी टिपण्णी काट-छांट की है...यह संभव भी नहीं है....technicaly ..हो सकता है ऐसा किया जा सकता हो...लेकिन मुझे विश्वास है बहुत ताम-झाम की ज़रुरत होगी....और मेरे पासकहाँ टाइम है....अगर में कोई टिपण्णी पसंद नहीं करती तो मैं उसे प्रकाशित ही नहीं करती और टिपण्णी देने वाले को लिखित रूप से बता देती हूँ अपनी पोस्ट पर की मैं इसे प्रकाशित नहीं कर रही हूँ....कई बार कर चुकी हूँ ऐसा....ये मेरे लिए नई बात नहीं है.....लेकिन काट-छाँट ...आज तक नहीं किया....
अदाजी ने टिप्पणी की काट छंट की हो ऐसा संभव तो नहीं लगता ...और मन में ऐसी कोई शंका हो तो दूसरे कमेन्ट या मेल से पूछ लिया जाना चाहिए ...बजाय इसके की आहत होकर पोस्ट ही लिख दी जाए ...
जवाब देंहटाएंकविता आपकी बहुत ही अच्छी लगी ....कुछ देर से पढ़ पायी ....!!
हम कई बार अपने किसी मित्र की पोस्ट पर कोई टिपण्णी करते हैं..और जब कहते हैं के इसमें से फलां गलती को ठीक कर दो..
जवाब देंहटाएंतो हमें जवाब मिलता है के काट-छांट टिपण्णी में संभव नहीं होती...कृपया स्वंयं ही सुधार कर दोबारा भेजिए...
ज्यादा तो नहीं पता हमें...लेकिन शायद टिपण्णी में काट छांट संभव ही नहीं होती.....
वैसे भी गूगल महाराज का कोई ठीकाना नहीं है रचना जी....
इसमें जैसी मर्जी तकनिकी समस्या कभी भी..किसी के साथ भी आ सकती है....
हम भुक्तभोगी हैं...
आपकी रचना बेहद पसंद आई...
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