रविवार, 10 जनवरी 2010

प्रताड़ना

प्रताड़ना




कितने जनम और लूँ मैं

कब तक मौन सहूँ मैं

मैं वही, रंगमंच वही,

वाद, विवाद, संवाद, प्रतिवाद, अपवाद वही,

वेदना,संवेदना, भेदना, कुरेदना, वही,

तहरीर, तकरीर, तहकीर, तदवीर वही

पीर, तकदीर, तस्वीर वही

बदला है कुछ, तो बस इक किरदार

पिछला जन्म

पति और प्रताड़ना

वर्तमान

पिता और प्रताड़ना

क्या अग.....ला...... जनम ?

पुत्र औ .........?

पौत्र औ .............?


प्रपौत्र औ .......प्रताड़ना?



तहरीर - दस्तावेज़,   तहकीर- अपमान, तिरस्कार,   तदवीर - प्रयत्न,  तकरीर- कथन

32 टिप्‍पणियां:

  1. नारी मन और प्रतारना का जैसे जानम जानम का रिश्ता है ........... हमेशा से अधीन ........बहुत ही संवेदनशील रचना .........

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  2. कहीं गहरे जख्मों को कुरेदती रचना।
    शब्दों का एकदम अलग प्रयोग अच्छा लगा।
    प्रताड़ना की सुन्दर अभिव्यक्ति।

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  3. नारी की स्थिति का सटीक वर्णन किया है......अच्छी रचना....बधाई

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  4. door tak sochti nari afsos ki apni durgati hi soch pati hai. is se hi pata chalta hai ki nari kitni prataadna seh rahi hai aur kitna garal pi rahi hai zindgi me.

    dard bhari rachna.

    जवाब देंहटाएं
  5. --तहरीर, तकरीर, तहकीर, तदवीर वही
    पीर, तकदीर, तस्वीर वही
    बदला है कुछ, तो बस इक किरदार
    पिछला जन्म
    ------
    संवेदनशीलता दर्शाती एक अच्छी कविता.
    नारी की स्थिति कभी बदलेगी नहीं..
    ऐसा ही प्रतीत होता है.

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  6. कई प्रश्न उठाये आपने रचना जी .....पर इनका जवाब तो मेरे पास भी नहीं है ....शायद समाज के पास हो .....जिसने औरतों के लिए रेखाएं खिंची हैं .....!!

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  7. बहुत सुंदर शब्द और भाव, धीरे धीरे ही सही लेकिन सामाजिक बदलाव से लग तो रहा है कि ऐसा नहीं होगा फिर भी ईश्वर से विनती करूँगा कि:
    क्या अग.....ला...... जनम ?
    पुत्र औ .........?
    पौत्र औ .............?
    प्रपौत्र औ .......प्रताड़ना?
    वो दिन कभी न आये.

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  8. har janam ki peeda me ghulti hui aur anupras alankaar se sushobhit rachna kafi achchhi lagi ,kuchh to badli hai aage bhi unnti hoti rahe .

    जवाब देंहटाएं
  9. दुनिया की आधी आबादी का दर्द अपने जिस गंभीरता से उकेरा है........वो लाजबाब है.......सुन्दर रचना

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  10. रचना जी, दीनदयाल शर्मा का नमस्कार ,
    मेरी एक कविता है...... समर्पण
    जिसका अंतिम पैरा है
    ......नारी !
    तुझे हर रूप में
    पड़ा है
    कड़वा घूँट पीना
    फिर भी-
    छोड़ा नहीं है तुने
    बार बार जीना...
    इस कविता पर यही बात फिट बैठती है.

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  11. एक संवेदनशील व्यक्ति जब समाज के अनुभव और अपने अंतर्मन के भावों को शब्द देता है तो कुछ ऐसी ही रचना अवतरित होती है.

    प्रभावशाली चित्रण किया है आपने..

    - सुलभ

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  12. आज ही किसी अन्य पोस्ट पर आपकी एक लम्बी और सारगर्भित टिप्पणी पढ़ा.
    और ऐसा महसूस हुआ की इस ब्लॉगजगत की भीड़ में अक्सर कुछ अच्छे रचनाशील व्यक्तियों के ब्लॉग तक पहुंचना आसन नहीं होता. मुझे सदैव ऐसे लोग आकर्षित करते हैं जो कविता, ग़ज़लों एवं अन्य रचनाये लिखते है और अन्य स्थानों पर इमानदार टिप्पणी कर अच्छे सन्देश भी देते हैं.

    आजकल ब्लोगरी के लिए समय कम मिलता है. आपके ब्लॉग को मार्क कर लिया है. आगे से आता रहूँगा.

    शुक्रिया
    - सुलभ

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  13. ये तस्वीरें कहां से लाती हैं मैम? एकदम से सटीक बैठती हैं तमाम रचनाओं के संग...

    कुछ अच्छे बिम्ब समेटे हुये और सब कुछ कह डालते हुये....

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  14. रचना जी देर से आ पाने के लिए क्षमा .. बहुत ही सुन्दर अभिव्यक्ति .. लेकिन इस प्रताडना को एकांगी भाव से न देखिये .. आज के इस दौर में या इतिहास में अधिसंख्य मानव समाज /स्त्री पुरुष दोनों/ किसी न किसी कारण से किसी न किसी रूप में प्रताडित ही रहा है .. सो आज एक समय है हमारे पास इस प्रताडना के मूल में उतर कर इसे देखेने का .. आखिर वरदान जैसा जीवन इस कदर शापित क्यों हुआ ..हो रहा है .. आपके पास स्पष्ट और गहरा चिंतन है इसे विकास दीजिए .. आज कोई पैगम्बर कोई अवतार कोई नेता हमारा उद्धार करने के लिए नहीं आने वाला .. हम जमीन से जुड़े लोगों को अपने उद्धार की चिंता स्वयम ही करनी होगी स्वयम ही और सामूहिक रूप से कोई मार्ग तलाश करना होगा वर्जनाओं और प्रताडनाओं से मुक्त.. जो आने वाली पीढ़ियों के जीवन को व्यर्थ के द्वंद्व से मुक्त कर सके .. अभी तक मैंने आपकी यह पहली रचना देखी है .. बातूनी आदमी हूँ .. अगली रचनाओं पर बहुत कुछ और भी संवाद के लिए तैयार रहिये .. अंत में.. शब्द मोह से स्वयं को मुक्त रखिये ताकि चिंतन कि मौलिकता धूमिल न हो .. इतना कुछ आपसे कह गया हूँ यकीन मानिये सुनने कि क्षमता भी है सो निसंकोच संवाद जारी रख सकती हैं .. बुरा मानने जैसा मेरे पास कुछ नहीं है है भी तो सिर्फ मौन

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  15. oh
    aapne to nari ke sare dard ko uker diya hai apni is sndedansheel rachna me .
    par kiske pas hai jvab?
    shayd ya ykinan svym nari ke pas ?

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  16. रचना जी, विलक्षण शब्द प्रयोग से आपने नारी दशा का विस्तृत चित्रण किया है...आपका लेखन और सोच दोनों शाशाक्त हैं...लिखती रहिये...
    नीरज

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  17. रचना जी,
    विभिन्न रिश्तों में जकड़ी
    नारी का जीवन प्रस्तुत करती
    सुन्दर अभिव्यक्ति
    बधाई

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  18. ये आगाज है तो फिर उरूज और अंजाम से ही रोमांचित हो रहा हूँ !

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  19. बहुत ही सुन्दर और मनोहारी रचना....

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  20. बहुत गंभीर और अच्छी रचना...आभार
    welcome to my blog :)

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  21. चिन्तनोन्मुख करती विचारोत्प्रेरक रचना....
    सादर.

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  22. रचना जी बेमिसाल ..बहुत ही उम्दा रचना

    शब्दों का चयन भी कमाल का
    आप मेरे पोस्ट पर आयें तो मेरा उत्साह बढ़ेगा

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  23. नारी मन की व्यथा का बहुत मर्मस्पर्शी चित्रण..

    जवाब देंहटाएं
  24. बदला है कुछ, तो बस इक किरदार

    पिछला जन्म

    पति और प्रताड़ना

    वर्तमान

    पिता और प्रताड़ना

    क्या अग.....ला...... जनम ?

    पुत्र औ .........?

    पौत्र औ .............?


    प्रपौत्र औ .......प्रताड़ना? itni achhi rachna , mann ko kuredte bhaw mujhse ojhal kaise rah gaye

    जवाब देंहटाएं
  25. पल-पल परिष्कृत होने के लिए प्रतिबद्ध समाज परिस्थितियों से काफी कुछ सीख चुका है। सुंदर कविता के लिए बधाइयाँ।

    जवाब देंहटाएं

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