धूप-छाँव
धरती मैय्या की गोद में
खेलते खेलते
धूप कब बड़ी हो गई
पता ही नहीं चला.
वो तो एक दिन
एक मजबूत दरख्त से
उसे लिपटते देखा
फिर क्या था...
प्यार के फूलों से लद गया वो पेड़
फिर फल, फिर नयी संतति
असमंजस में थी कैसे हुआ ये सब
नटखट हवा बोली
अभी कुछ दिन पहले ही तो
धूप ने इस दरख्त संग सात फेरे लिए हैं
कन्या दान भी किया है
धरती मैय्या ने
और दहेज... में दिया है
अपनी जमा पूंजी से
पानी, गृहस्थी चलाने को कुछ पोषकतत्व
और अखंड सौभाग्यवती होने का आशीष
सोचती हूँ....