जीत
तुम्हारी वो
जीतने की,
शीर्ष पर रहने की,
सदैव अव्वल आने की जिद,
हर छोटी होती लकीर के आगे
बड़ी लकीर खींचते रहना.
छोटी लकीरों को
पीछे छोड़ते रहना
मात्र बड़ी लकीरों में जीना,
सदैव जीतते रहना.
और मैं
तुम्हारी छोड़ी हर लकीर में
जीती रही,
जीवंत होती रही,
जीतती रही.
कभी जब तुम
अपनी इस जीतने की जिद से
उकता जाना,
थक जाना,
कुछ नया करने की सोचना
कोशिश करना याद करने की
हर उस छोटी लकीर को
जिसने तुम्हें शीर्ष पर पहुंचाया.
और मैं एक बार फिर
जीत लूंगी,
जी लूंगी,
जीवंत हो उठूंगी.
नीव ... या छोटी लकीर के महत्त्व को कम नहीं किया जा सकता ... बड़ी लकीर को जीतने का एहसास छोटी लकीर के साथ होने पर ही होता है ... नहीं तो उससे बड़ी लकीरें भी होती हैं ... गहरा एहसास लिए भाव ...
जवाब देंहटाएंवाह ! बहुत गहरी बात...बधाई रचना जी
जवाब देंहटाएंगहन चिंतन
जवाब देंहटाएंsundar or sarthak bhav,kitne arth chupaye...bht achhe.
जवाब देंहटाएंबहुत सुंदर...हर बड़ी लकीर का बड़ा होना छोटी लकीर की वजह से ही संभव है. छोटी लकीर न हो तो बड़ी लकीर खिंच पाना संभव नहीं...किसी की लकीर छोटी करके नहीं, अपनी लकीर बड़ी करके बात बनेगी।
जवाब देंहटाएंसुन्दर , गहरे भाव
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