रविवार, 3 मई 2015

प्रतिभाएँ

प्रतिभाएँ

जानती हूँ मैं एक 
आदरणीय, परम पूज्यनीय,    
वन्दनीय, प्रातः स्मरणीय 
व्यक्ति को. 
लिखी हैं जिन्होंने हिन्दी संस्कृत में पुस्तकें. 
जीवन के अस्सी दशक बाद आज भी 
वही तेवर, वही मधुर मुस्कान 
आज भी गर्व है जिन्हें अपनी 
एक सम्मानित उपलब्धि ला पर.
पूरे जीवन जो मिला अच्छा लगा ले लिया.
किसी ने प्यार से दिया, भय से दिया,
बेमन से दिया, पर ला पढ़े हैं तो लेना ही है 
कभी ला पर दा भारी पड़ा,
तो दे दिया घर के दो एक लोगों को घर निकाला.
जी नहीं भरा तो, किसी को दुनिया से निकाला. 
कोई नहीं पूछता उन्हें अब 
घर परिवार आस पड़ोस में.  
आज घर में है एक बेटा 
जूझ रहा जिंदगी और मौत से 
खाने के लाले है 
दो समय की रोटी,
बेटे की फीस, पति के स्वास्थ्य के नाम पर, 
बहू ने रखा घर से बाहर कदम ज्यों ही
नहीं खाते वो उसका बनाया कुछ भी.
नहीं जाते रसोई में वो कभी 
वैसे भी रसोई के काम में हाथ तंग है उनका 
पर जेब तंग नहीं.
अपनी और अपनी पत्नी की पेंशन जो है.
खाए जाते हैं रोज काजू बादाम, छोले भठूरे 
कच्चा दूध जो भी बाजार से मिल जाये.
साथ में रहते दूसरे लोग कर रहे हैं जद्दोजहद.   
पर उनकी आज भी गर्दन तनी और छाती चौड़ी.
सोचती हूँ, लिखू कुछ नयी परिभाषाएं, 
निष्ठुरता, अमानवीयता, द्वेष, क्रोध, दंभ
की पराकाष्ठा से परे भी एक पराकाष्ठा है.
विरले ही विचरते हैं जिसमें
और आज मैं भारी मन से
सबके सामने यह स्वीकार करना चाहती हूँ
कि मैं ऐसे किसी इंसान को 
जानने पहचानने से इनकार करती हूँ.

9 टिप्‍पणियां:

  1. ऐसे निष्ठुर इंसान को पहचानना भी क्या ... जहां संवेदना नहीं वहां क्या रिश्ता ...

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  2. कुछ लोग सिर्फ अपने लिए अपनी झखों को जीते हैं इनसे पशु बेहतर जो संतति पालते हैं।

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  3. कुछ लोग सिर्फ अपने लिए अपनी झखों को जीते हैं इनसे पशु बेहतर जो संतति पालते हैं।

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  4. न जाने कोई इतना भावनाशून्य इतना निष्ठुर कैसे हो सकता है

    जवाब देंहटाएं
  5. कविताओं में आप भाव भर देती है ... दोनों शब्द चित्र बोल रहे हैं :))

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  6. आश्चर्य होता है कि मनुष्य इतना असंवेदनशील भी हो सकता है...बहुत प्रभावी अभिव्यक्ति...

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  7. जरुरत भी क्या है ऐसे इंसान को पहचानने की - सादर

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  8. आखिर लोग इतने संवेदनहीन कैसे हो जाते हैं, समझ से परे है...सुंदर और भावपूर्ण अभिव्यक्ति

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