रविवार, 2 जून 2013

दायरे

दायरे

देखती हूँ थोड़ी थोड़ी दूर पर खड़े
बांस के झुरमुटों को
कैसे खड़े हैं सीधे सतर
अपने और सिर्फ अपनों को
अपनी बाँहों के दायरे में समेटे
कभी कोई नन्हीं बांस की कोपल
बढती है बढ़ना चाहती है
पास के बांस समूह की तरफ
एक वयोवृद्ध बांस
झुकता नहीं
टूटता है टूट कर गिरता है
उस नन्हीं कोपल पर
कभी अपने आप से अलग करने
कभी उस समूह से अलग करने को
बनी हैं ये दूरियां आज भी
कोई सुखी है या नहीं
पर सभी अपने अपने दायरों में सीमित
क्या अपनी प्रकृति से हमें सीखने को
यही मिला था.......

30 टिप्‍पणियां:

  1. सभी अपने दायरों में सीमित हैं.....
    शायद प्रकृति से जाने अनजाने सीख ही लेते हैं हम.कुछ अच्छा या कुछ बुरा....
    बेहतरीन कविता.

    अनु

    जवाब देंहटाएं
  2. काश सभी अपने दायरे में रहना सीख ले ,,

    बहुत सुंदर रचना,,,

    RECENT POST : ऐसी गजल गाता नही,

    जवाब देंहटाएं
  3. एक निश्चित दूरी शायद रिश्तों को करीब लाती है ..... अच्छी रचना

    जवाब देंहटाएं
  4. दिल को छूने लेने वाली अभिव्यक्ति...

    जवाब देंहटाएं
  5. प्रकृति नित ही हमें सिखाने बैठी है।

    जवाब देंहटाएं
  6. क्या अपनी प्रकृति से हमें यही सीखने को मिला था

    नि:संदेह नहीं

    जवाब देंहटाएं
  7. प्राकृति कितना कुछ कह जाती है ... शर्त मानव सीखना तो चाहे ...
    गहरी सोच से उपजी रचना ...

    जवाब देंहटाएं
  8. प्रकृति हमें सबकुछ सिखाती है परन्तु हम सीखते कहाँ हैं ? सुन्दर रचना
    latest post बादल तु जल्दी आना रे (भाग २)
    अनुभूति : विविधा -2

    जवाब देंहटाएं
  9. सभी अपने अपने दायरों में सीमित क्या अपनी प्रकृति से हमें सीखने को यही मिला था......।
    सीखने के साथ स्वार्थ भी तो मिला लेते हैं
    एक-एक शब्द सही ....सच्ची अभिव्यक्ति
    सादर

    जवाब देंहटाएं
  10. सभी अपने दायरे में सीमित हैं .. प्रकृति के हर चीज में सीख है हम पर हम कैसे ले रहें है... बेहद सार्थक कविता !!

    जवाब देंहटाएं
  11. बहुत ही बेहतरीन और सार्थक रचना....
    :-)

    जवाब देंहटाएं
  12. धन्यबाद यशवंत जी मेरी पोस्ट को हलचल में शामिल करने के लिये.

    जवाब देंहटाएं
  13. बहुत बढ़िया..सुन्दर ,सार्थक रचना..

    जवाब देंहटाएं
  14. कमाल का ओब्ज़र्वेशन है आपका और शायद आपकी हर कविता की यह खूबी रही है.. प्रकृति से सीखना आपने सिखाया है!!

    जवाब देंहटाएं
  15. दायरों में बंध का ही जीवन का सार समझ आता है
    बहुत सुंदर अभिव्यक्ति
    सादर

    आपकी टिपण्णी स्पेम में चली गयी है
    आग्रह पुनः करें
    तपती गरमी जेठ मास में---
    http://jyoti-khare.blogspot.in

    जवाब देंहटाएं
  16. गहरी और सार्थक रचना ...बधाई !
    आपकी मंगलकामनाओं के लिए शुक्रिया ....
    स्वस्थ रहें!

    जवाब देंहटाएं
  17. बहुत सुन्दर नज़रिये से देखा है आपने .

    जवाब देंहटाएं
  18. अहसासों का बहुत अच्छा संयोजन है ॰॰॰॰॰॰ इस कविता के भाव, लय और अर्थ काफ़ी पसंद आए। बिल्कुल नए अंदाज़ में आपने एक भावपूरित रचना लिखी है।

    जवाब देंहटाएं
  19. Aapkee rachnaon kee jitnee tareef kee jay utnee kam hai!

    जवाब देंहटाएं
  20. एक वयोवृद्ध बांस
    झुकता नहीं
    टूटता है टूट कर गिरता है
    उस नन्हीं कोपल पर
    कभी अपने आप से अलग करने
    कभी उस समूह से अलग करने को
    बनी हैं ये दूरियां आज भी
    कोई सुखी है या नहीं

    प्रकृति की घटनाओं के साथ जीवन का अद्भुत सामंजस्य है।
    प्रकृति का सूक्ष्मावलोकन प्रशंसनीय है

    जवाब देंहटाएं
  21. प्रकृति तो हर क्षण आनन्द में है..मानव सब कुछ होते हुए भी सीमा बनाता है यानि दुःख को चुनता है...

    जवाब देंहटाएं
  22. दायरे में सिमित और दायरे से मुक्त खुबसूरत अभिव्यक्ति

    जवाब देंहटाएं
  23. प्रकृति से बहुत कुछ सीखने को मिलता है।
    बड़ा सटीक प्रश्न छोड़ा है आपने कविता के अंत में।
    मैं ठीक हूँ,बस कुछ व्यस्तता बढ़ गई है फिर भी किसी तरह ब्लॉग और फेसबुक के लिए थोडा थोडा समय निकाल लेता हूँ.

    जवाब देंहटाएं
  24. प्रकृति से हम कितना कुछ सीखते हैं अच्छा भी और..........

    जवाब देंहटाएं
  25. सूक्ष्म अवलोकन .... गहन अभिव्यक्ति

    जवाब देंहटाएं

Related Posts Plugin for WordPress, Blogger...