और भी गम हैं ज़माने में ....
बिना अंकों के गणित और पंचांग के
नक्षत्रों की चाल और राशियां
लग चुकी है ढाई महीने की ढहिया,
हो चूका है शुरू नगद नारायण उत्सव,
खिंची है बीचों बीच एक स्पष्ट रेखा,
एक ओर हैं आम जनता
तो दूसरी ओर है एक विशिष्ट समुदाय
बढ़ने वाला है जनता का मान, सम्मान, धन धान्य
बीमार को मिलेगी बिन मांगे दवा, तीमार को दारु
हर तरफ बस जश्न ही जश्न.
कुछ दिन का तूफ़ान फिर सब कुछ शांत.
न जाने फिर कब लगेगी ढहिया
पर जनता की साढ़े-साती तय है.
आम जनता पुलिस के खोजी कुत्तों की तरह नाकाम
सूंघती फिरेगी विशिष्ट समुदाय का पता
वहीँ बंद कमरों में
पिछली ढहिया में हुए नुकसान की भरपाई की जुगत
में होगा विशिष्ट समुदाय.
Recycling the leadership.
जवाब देंहटाएंजमीनी हकीक़त ..मर्म पर आघात करती..
जवाब देंहटाएंन जाने वह दिन शुभ कब आये..
जवाब देंहटाएंसही कहा है ।
जवाब देंहटाएंचार दिन की चांदनी , फिर अँधेरी रात ।
पिछली ढहिया में हुए नुकसान की भरपाई की जुगत
जवाब देंहटाएंमें होगा विशिष्ट समुदाय.
न जाने ये कब तक होता रहेगा ...... उम्दा रचना
हां, हालात तो ऐसे ही हैं।
जवाब देंहटाएंजनता की साढ़ेसाती न जाने कब उतरेगी।
कुछ दिन का तूफ़ान फिर सब कुछ शांत.
जवाब देंहटाएंन जाने फिर कब लगेगी ढहिया
पर जनता की साढ़े-साती तय है.
सब तयशुदा है .. समसामयिक प्रविष्टि
Hmmmm....yahee haqeeqat hai!
जवाब देंहटाएंये तो हकीकत है अपने तंत्र की ... जनता का क्या है वो तो हमेशा से साधे साती में है ...
जवाब देंहटाएंपर जनता की साढ़-सत्ती तय है ....
जवाब देंहटाएंये ही सच है ....
शुभकामनाएँ!
a very picturesqe... presentation of election /
जवाब देंहटाएंvisit my blog plz
बहुत बेहतरीन और प्रशंसनीय.......
जवाब देंहटाएंबसंत पचंमी की शुभकामनाएँ।
हां सही है. जनता पर तो हमेशा साढे साती ही चलती रहती है :(
जवाब देंहटाएंसच्छाई की तस्वीर...ढैया और साढ़ेसातीः)
जवाब देंहटाएंon the target,
जवाब देंहटाएंbadhiyaa
वाह..बहुत बढ़िया...
जवाब देंहटाएंइसे काश वे भी पढते जिन्होंने प्रेरणा दी है ये लिखने की...!!!!!!!!
सादर.
रचना जी! आपके व्यंग्य की मार अचूक है मगर वे गेंडे की खाल वाले लोग हैं... ज़बरदस्त रचना है, रचना जी!!
जवाब देंहटाएंबहुत खूब रचना जी.
जवाब देंहटाएंकटु सत्य.
वैचारिक ताजगी लिए हुए रचना विलक्षण है।
जवाब देंहटाएंकटु सत्य की बहुत सुंदर रचना,बेहतरीन प्रस्तुति,
जवाब देंहटाएंwelcome to new post ...काव्यान्जलि....
वाकई जनता की साढ़े साती तय है...
जवाब देंहटाएंbilkul sacchi baat.....
जवाब देंहटाएंऔर भी गम हैं ज़माने में ....इस राजनीति के अतिरिक्त भी
जवाब देंहटाएंसटीक व्यंग्य....
जवाब देंहटाएंsahi jagah per vaar kiya
जवाब देंहटाएंबहुत बढिया रचना है।बधाई स्वीकारें।
जवाब देंहटाएंढैया हो या साढ़े साती जनता को तो पिसना ही है ! बहुत सुंदर !
जवाब देंहटाएंबहुत सुंदर प्रस्तुति,
जवाब देंहटाएंएक ब्लॉग सबका '
कुछ भी हो , जनता की साढ़े साती तय है !
जवाब देंहटाएंसटीक !
बहुत सही लिखा है आपने.
जवाब देंहटाएंइलेक्शन के बाद ये बड़े बड़े वादा करने वाले बेईमान नेता अपनी अपनी जेबें भरने में लग जायेंगे.
बहुत ही अच्छी प्रस्तुति ।
जवाब देंहटाएंसटीक व्यंग्य !
जवाब देंहटाएंकमाल की अभिव्यक्ति ....
जवाब देंहटाएंऐसी चोटें कभी न कभी काम अवश्य करेंगी , नेतृत्व में बदलाव की आशा करते हैं !
आपको शुभकामनायें !
SAHI KAHA SADHE SATI KA HI ANJAAM HAI YE SAB.
जवाब देंहटाएंयूं पी चुनाव पर बिलकुल सही तस्वीर, बहुत अच्छी रचना.
जवाब देंहटाएंबेहतरीन प्रस्तुति
जवाब देंहटाएंबहुत खूब!! I like it....
जवाब देंहटाएंइस टिप्पणी को लेखक द्वारा हटा दिया गया है.
जवाब देंहटाएं