बाज़ार
आज इतवार की सुबह
जाग उठी हूँ
रेहड़ी वालों के अजीब शोर से
सालों से अदृश्य आत्माहीन शरीर
आज अचानक दृश्यमान हुए हैं
अलग तरह की रेहडियां
अलग सामान
कहीं समाजवाद,कहीं लोकतंत्र
कहीं धर्मनिरपेक्षता, कहीं केवल धर्म
बदले बदले स्वर
कहाँ जाऊं, क्या लाऊं ?
जहाँ सब सस्ता है ?
या जहाँ सब अच्छा है
जहाँ गुणवत्ता है
या जहाँ महत्ता है
या जहाँ मिले पांच साल की गारंटी व वारंटी..
पर यहाँ तो ये ही खुद असमंजस में है
ये ही नहीं जानते
कब हाथ मसल दिया जायेगा
कब कमल कुम्हला जायेगा
कब हाथी हताश हो हांफता बैठ जायेगा
या फिर ....
कब ये सुकोमल हाथ
अपनेपन से, दुलार से
तोड़ेगा कमल
संजोयेगा हाथी की सूंड में इसे प्यार से
और अर्पित करेगा
माँ लक्ष्मी के चरणों में
कौन जाने ......
नेताओ की दिवाली
जवाब देंहटाएंपरिस्थितिजन्य चिंता सभी के चेहरे पर है ....लेकिन यह भी सत्य है कि यह कुछ लोगों की मौकापरस्ती के कारण है .....और ऐसे मौकापरस्त सब अपनी अपनी दुकान सजाये हैं ......!
जवाब देंहटाएंजहाँ गुणवत्ता है
जवाब देंहटाएंया जहाँ महत्ता है
या जहाँ मिले पांच साल की गारंटी व वारंटी....
नेताओ की वाकई दिवाली है
....एक कटु सत्य से परिचय कराती श्रेष्ठ रचना !
बहुत बढ़िया |
जवाब देंहटाएंलूटने वालों की दुकाने सज चुकी हैं ....!
जवाब देंहटाएंकिस-किस से बचेगा मासूम ग्राहक ????
शुभकामनाये! ग्राहक को ..:-)))
रचना जी,आपकी रचना ने बाजार की
जवाब देंहटाएंपोल खोल दी है.
आपकी यह आरजू अच्छी लगी
' कब ये सुकोमल हाथ अपनेपन से, दुलार से तोड़ेगा कमल संजोयेगा हाथी की सूंड में इसे प्यार से और अर्पित करेगा माँ लक्ष्मी के चरणों में कौन जाने ......'
मेरे ब्लॉग पर आईयेगा जी.
यहाँ तो ये ही खुद असमंजस में है
जवाब देंहटाएंये ही नहीं जानते
कब हाथ मसल दिया जायेगा
कब कमल कुम्हला जायेगा
कब हाथी हताश हो हांफता बैठ जायेगा... ये कैसा ज़माना , पर यही हुआ ज़माना - बहुत अच्छी रचना
सुन्दर सृजन , सुन्दर भावाभिव्यक्ति.
जवाब देंहटाएंये वो हाट है जो पांच साल में एक बार लगता है ।
जवाब देंहटाएंदिगभ्रमित हैं सभी। कुरूक्षेत्र में कौन सुनेगा उपदेश..!सभी समझते हैं कि हमारे ही पास है सुदर्शन चक्र..हमी हैं कृष्ण।
जवाब देंहटाएंऐसे शोर अक्सर पांच साल बाद आते हैं और सब को सपने बचके चुपके से निकल जाते हैं ...
जवाब देंहटाएंबहुत बढ़िया,
जवाब देंहटाएंऊंट के बैठने का इंतज़ार है.. प्रभावी व सुन्दर लिखा है रचना जी ..
जवाब देंहटाएंचुनावी माहौल को चित्रित करती सुंदर व्यंग्य भरी प्रस्तुति ...
जवाब देंहटाएंjhoothon kaa bazaar hai
जवाब देंहटाएंis baazaar mein sab biktaa hai
sona bataa kar peetal biktaa hai
imaan ke naam par bhrasht miltaa hai
yathaarth sateek rachnaa
सबसे बड़ा बाजार सजा है..
जवाब देंहटाएंसामयिक रचना।
जवाब देंहटाएंरेहडियां कहाँ आज तो मॉल सजे हुए हैं .. सटीक और सार्थक प्रस्तुति .. पांच साल की न गारंटी है न वारंटी .. अब तो जनता को ही सूझ बूझ कर कदम उठाना है ..
जवाब देंहटाएंसत्य का आइना दिखाती भावपूर्ण सुंदर प्रस्तुति
जवाब देंहटाएंबेहतरीन रचना,....
चुनावी माहौल पर सटीक व्यंग्य..
जवाब देंहटाएंसही कहती हैं आप रचना जी, एक बेसुरा बाजार ही तो सजा है।
जवाब देंहटाएंसटीक व्यंग्य है
जवाब देंहटाएंजी हाँ , बाज़ार ही तो है.... सटीक रचना
जवाब देंहटाएंयहाँ तो ये ही खुद असमंजस में है ....
जवाब देंहटाएंसच कहा आपने..
सुन्दर रचना...
समसामयिक कविता.. बढ़िया विम्ब चुनती हैं आप... बहुत खूब
जवाब देंहटाएंराजनैतिक मौसम की भविष्यवाणी करती अच्छी कविता।
जवाब देंहटाएंबहुत बढ़िया...
जवाब देंहटाएंसही समय पर खरी प्रस्तुति..
सादर.
सत्य को लिख दिया ....
जवाब देंहटाएंना होगा हाथ का साथ
ना रहेगा हाथी
नहीं खिलेगा अगर,
कमल का फूल
तो कौन माझी बन
खेवे का इस देश की
नईया को ?.....अनु
राजनीति की दूकान को आपने रेहडियों पर सजा दिया.. शायद वही जगह सही है इन सियासतदानों की! बहुत गहरा कटाक्ष!!
जवाब देंहटाएंबहुत बढ़िया...
जवाब देंहटाएंसही सुन्दर और सटीक प्रस्तुति..
आज इतवार की सुबह
जवाब देंहटाएंजाग उठी हूँ रेहड़ी वालों के अजीब शोर से सालों से अदृश्य आत्माहीन शरीर आज अचानक दृश्यमान हुए हैं अलग तरह की रेहडियां अलग सामान कहीं समाजवाद,कहीं लोकतंत्र कहीं धर्मनिरपेक्षता,
वाह वाह ! आज की दिशाहीन राजनीति का कितना सटीक चित्रण अपने इस कविता में किया है, यहाँ शोर तो बहुत है पर असली माल कहीं नजर ही नहीं आता.
अत्यंत स्टीक प्रतीकों के माध्यम से करारा व्यंग और एक बड़ा प्र्श्न ।
जवाब देंहटाएंबहुत ही सुंदर अभिव्यकित । बधाई
आत्माहीन शरीर आज अचानक दृश्यमान हुए हैं अलग तरह की रेहडियां अलग सामान कहीं समाजवाद,कहीं लोकतंत्र कहीं धर्मनिरपेक्षता, कहीं केवल धर्म बदले बदले स्वर कहाँ जाऊं, क्या लाऊं ? जहाँ सब सस्ता है ?
जवाब देंहटाएंया जहाँ सब अच्छा है
जहाँ गुणवत्ता है
या जहाँ महत्ता है
....sach badle haalaton mein asamjas mein kuch samjh pana aaj saral nahi raha..
..
सही कहा आपने. कोई नहीं जानता इस बाज़ार का मिजाज...
जवाब देंहटाएंबाज़ार गरम है। रेहड़ी वाले, फेरी वाले, फेरी लगा रहे हैं। देखें किसकी झोली में क्या पड़ता है?
जवाब देंहटाएं.
जवाब देंहटाएंबहुत अच्छा दृश्य चित्र खींचा है आपने …
इस बाज़ार से आम नागरिक का कब भला होना है …
शुभकामनाओं सहित…
बाजार की
जवाब देंहटाएंपोल खोल दी है
बहुत बढ़िया
बहुत सुन्दर प्रस्तुति यथार्थ को कहती हुई .
जवाब देंहटाएंयहाँ तो ये ही खुद असमंजस में है
जवाब देंहटाएंये ही नहीं जानते
कब हाथ मसल दिया जायेगा
कब कमल कुम्हला जायेगा
कब हाथी हताश हो हांफता बैठ जायेगा.
बहुत अच्छे से परिस्थिति पर प्रकाश डालती रचना...
rajnaitik gatividhiyon pr sahi disha men yatharth chintan .....antotogatwa sab ke sab mata Laxmi ke pujari hi nikalege janta ko kaun poochega.
जवाब देंहटाएंसुन्दर भाव और अभिव्यक्ति के साथ उम्दा प्रस्तुती!
जवाब देंहटाएंआज के राजनीतिक हालात निश्चय ही चिंताजनक हैं..कटु पर सटीक और सुन्दर प्रस्तुति...
जवाब देंहटाएंबहुत सुंदर रचना
जवाब देंहटाएंआइना दिखाती सुंदर रचना,....
जवाब देंहटाएंबहुत सुंदर प्रस्तुति, अच्छी रचना,..
WELCOME TO NEW POST --26 जनवरी आया है....
गणतंत्र दिवस की हार्दिक शुभकामनाए.....
सचमुच राजनीति का व्यापारीकरण हो गया है।
जवाब देंहटाएंपाँच साल में एक बार खुलती हैं ये दुकानें।
कविता अपने उद्देश्य में पूर्णतः सफल....
निःसंदेह सराहनीय........
कृपया इसे भी पढ़े-
क्या यही गणतंत्र है
शनिवार के चर्चा मंच पर
जवाब देंहटाएंआपकी रचना का संकेत है |
आइये जरा ढूंढ़ निकालिए तो
यह संकेत ||
वाह ...बहुत खूब ।
जवाब देंहटाएंaaj ke mahoul ko darshata badiya kataksh .
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