आगोश
रात के आगोश से सवेरा निकल गया,
समंदर को छोड़ कर किनारा निकल गया.
रेत की सेज पे चांदनी रोया करी,
छोड़ कर दरिया उसे, बेसहारा निकल गया.
सोई रही जमी, आसमाँ सोया रहा,
चाँद तारों का सारा नज़ारा निकल गया.
ठूंठ पर यूँ ही धूप ठिठकी सुलगती रही,
साया किसी का थका हारा निकल गया.
गूंगे दर की मेरे सांकल बजा के रात,
कुदरत का कोई इशारा निकल गया.
घुलती रही मिसरी कानों में सारी रात,
हुई सुबह तो वो आवारा बंजारा निकल गया.
बाँहों में उसकी आऊं, पिघल जाऊं,
ख्वाब ये मेरा कंवारा निकल गया.
मेरी तस्वीर पे अपने लब रख कर,
मेरे इश्क का वो मारा निकल गया.
चित्र मेरे कैमरे से, अन्य चित्रों के लिये मेरे दूसरे ब्लॉग "Perception" जिसका पता है shashwatidixit.blogspot.com, पर भी जाएँ.
rachna ji
जवाब देंहटाएंbahut bahut hi bhavo se saji hai aapki rachna.sach me man ke ke andar chalne wale bhavo ko bakhubi shabd diye hain aapne
bahut bahut badhai
deri se aane ke liye xhama chahti hun.
dhanyvaad sahit
poonam
आदरणीय रचना दीक्षित जी
जवाब देंहटाएंनमस्कार !
रात के आगोश से सवेरा निकल गया,
समंदर को छोड़ कर किनारा निकल गया.
....सुन्दर भाव भीनी अभिव्यक्ति यह अन्दाज़ तो एकदम जुदा
.....मन को छूती बेहतरीन रचना !
बहुत खूब, ज़िन्दगी ऐसे ही रूप दिखाती है।
जवाब देंहटाएंसुन्दर चित्र के साथ खूबसूरत भावनाओं की सफल अभिव्यक्ति.
जवाब देंहटाएंगूंगे दर की मेरे सांकल बजा के रात,
जवाब देंहटाएंकुदरत का कोई इशारा निकल गया.
बाँहों में उसकी आऊं, पिघल जाऊं,
ख्वाब ये मेरा कंवारा निकल गया.
वाह , आज तो बदले बदले से सरकार नज़र आते हैं ... खूबसूरत गज़ल
वाह रचना दी, मैंने बहुत प्रयाश किया कि मैं यह निर्णय कर सकूँ कि आपकी गजल की सबसे सुंदर शेर कौन सी हैं, किंतु असमर्थ रहा,क्योंकि हर अगली लाइन पिछली लाइन से बेहतर व खूवसूरत है। बहुत खूब।सुंदर प्रस्तुति के लिये बहुत-बहुत बधाई।
जवाब देंहटाएंखूबसूरत और भावमयी प्रस्तुति....
जवाब देंहटाएंखूबसूरत ग़ज़ल..चित्र भी बोलते से प्रतीत हो रहे हैं....
जवाब देंहटाएंबहुत सुन्दर रचना जी । क्या खूबसूरत ग़ज़ल कही है ।
जवाब देंहटाएंसुन्दर भाव भीनी अभिव्यक्ति .......
जवाब देंहटाएंबहुत सुन्दर , सार्थक रचना , सार्थक तथा प्रभावी भावाभिव्यक्ति ,
जवाब देंहटाएंबहुत सुन्दर , सार्थक रचना , सार्थक तथा प्रभावी भावाभिव्यक्ति ,
जवाब देंहटाएंबाँहों में उसकी आऊं, पिघल जाऊं,
जवाब देंहटाएंख्वाब ये मेरा कंवारा निकल गया.
मेरी तस्वीर पे अपने लब रख कर,
मेरे इश्क का वो मारा निकल गया.
Aah!
बाँहों में उसकी आऊं, पिघल जाऊं,
जवाब देंहटाएंख्वाब ये मेरा कंवारा निकल गया.
उफ़ चंद शब्दो मे ही सारा हाल-ए-दिल बयाँ कर दिया।
आदरणीय रचनाजी,नमस्कार !
जवाब देंहटाएंज़िन्दगी ऐसे ही रूप दिखाती है।
वाह बहुत खूबसूरत और लयबद्ध.
जवाब देंहटाएंबहुत ही बढ़िया रचना,आभार.
जवाब देंहटाएंप्रिय श्रेष्ठ माफ़ी चाहते हैं ,समय से संवाद नहीं करने का ,कारन ,अपनी एक ,पुस्तक प्रकाशन सम्बन्धी व्यस्तता / आपके आशीष की कामना... आगे समुन्नत सृजन के लिए बधाई /
जवाब देंहटाएंठूंठ पर यूँ ही धूप ठिठकी सुलगती रही,
जवाब देंहटाएंसाया किसी का थका हारा निकल गया.
गूंगे दर की मेरे सांकल बजा के रात,
कुदरत का कोई इशारा निकल गया.
nayi soch aur naye shabdo ko aayam deti sunder rachna.
घुलती रही मिसरी कानों में सारी रात,
जवाब देंहटाएंहुई सुबह तो वो आवारा बंजारा निकल गया।
बहुत प्यारी ग़ज़ल।
सोई रही जमी, आसमाँ सोया रहा,
जवाब देंहटाएंचाँद तारों का सारा नज़ारा निकल गया.
ठूंठ पर यूँ ही धूप ठिठकी सुलगती रही,
साया किसी का थका हारा निकल गया.
बेहद खूबसूरत गज़ल ....
रचना जी !आपकी इस रचना में इंसानी ज़ज्बात मानसून के बादलों की तरह उमड़ते-घुमड़ते नज़र आ रहे हैं . बधाई और शुभकामनाएं .
जवाब देंहटाएंठूंठ पर यूँ ही धूप ठिठकी सुलगती रही,
जवाब देंहटाएंसाया किसी का थका हारा निकल गया.
bahut hi badhiyaa
सुन्दर चित्र के साथ बहुत बहुत ख़ूबसूरत ग़ज़ल लिखा है आपने जो काबिले तारीफ़ है ! बेहतरीन प्रस्तुती!
जवाब देंहटाएंबेहतरीन गजल... बहुत उम्दा शेर कहे हैं जो सीधे दिल से निकले हैं... बधाई!
जवाब देंहटाएंसुन्दर चित्र के साथ बहुत बहुत ख़ूबसूरत ग़ज़ल लिखा..बेहतरीन रचना !
जवाब देंहटाएंबहुत खूब ||
जवाब देंहटाएंगज़ल शैली में लिखी यह रचना आपकी अन्य रचनाओं से भिन्न होते हुए भी सुन्दर है!!
जवाब देंहटाएंसुन्दर प्रस्तुति, बधाई,
जवाब देंहटाएंविवेक जैन vivj2000.blogspot.com
बाँहों में उसकी आऊं, पिघल जाऊं,
जवाब देंहटाएंख्वाब ये मेरा कंवारा निकल गया.
....लाज़वाब...हरएक शेर दिल को छू जाता है..बहुत सुन्दर भावाभिव्यक्ति..
Waah...Lajawab
जवाब देंहटाएंwaah bahut khoob..
जवाब देंहटाएं♥
जवाब देंहटाएंआपको सपरिवार
नवरात्रि पर्व की बधाई और शुभकामनाएं-मंगलकामनाएं !
-राजेन्द्र स्वर्णकार
ग़ज़ब की पंक्तियाँ .
जवाब देंहटाएंमेरी तस्वीर पे अपने लब रख कर,
जवाब देंहटाएंमेरे इश्क का वो मारा निकल गया...
बहुत कमाल का शेर है ... क्या बात है ...
सुन्दर ग़ज़ल.
जवाब देंहटाएंहर शेर बढ़िया.
गूंगे दर की मेरे सांकल बजा के रात,
जवाब देंहटाएंकुदरत का कोई इशारा निकल गया.
घुलती रही मिसरी कानों में सारी रात,
हुई सुबह तो वो आवारा बंजारा निकल गया.
रचना जी बहुत सुंदर भावभीनि रचना.
बेहतरीन रचना ! पहली पंक्ति से ही मन मोह लिया ...
जवाब देंहटाएंठूंठ पर यूँ ही धूप ठिठकी सुलगती रही,
जवाब देंहटाएंसाया किसी का थका हारा निकल गया.
बहुत ही ख़ूबसूरत लिखा है..
चलिए आज़ाद हुआ.
जवाब देंहटाएंरचना माँ,
नमस्ते!
आशीष
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लाईफ़?!?
बहुत बेहतरीन...
जवाब देंहटाएंसोई रही जमी, आसमाँ सोया रहा,
जवाब देंहटाएंचाँद तारों का सारा नज़ारा निकल गया.
बहुत खूब...बधाई|
सोई रही जमी, आसमाँ सोया रहा,
जवाब देंहटाएंचाँद तारों का सारा नज़ारा निकल गया.
बहुत खूब...बधाई|
रात के आगोश से सवेरा निकल गया,
जवाब देंहटाएंसमंदर को छोड़ कर किनारा निकल गया...
खूबसूरत ग़ज़ल...
रात के आगोश से सवेरा निकल गया,
जवाब देंहटाएंसमंदर को छोड़ कर किनारा निकल गया.bahut khub.
I have the same type of blog myself so I will come back back to read again.
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