सबेरे की सैर,
वो मिश्री घोलता संगीत.
हर पल अपने पल का अहसास,
तुम्हारी मीठी बातों में,
कोलेस्ट्राल तो घुल गया
अब शायद मेरी बारी है .....
(2)
कभी दिल जोरों से धड़क जाता था,
उनके आने पर,
और कभी उनके न आने पर.
कभी सांसे बेतरतीब हो जाती थीं.
उनसे नज़र मिल जाने पर,
या फिर बिछड़ जाने पर.
कभी दिल दिमाग अनियंत्रित हो जाता था.
उनका स्पर्श पाने पर,
या कभी उसका अहसास हो जाने पर,
अब सब नियंत्रित है
अब तो लगता वही मुझे मेरा पेस मेकर है,
उन मजबूत बाहों से लिपट जाने पर.
कभी दिल जोरों से धड़क जाता था,
जवाब देंहटाएंउनके आने पर,
और कभी उनके न आने पर.
कभी सांसे बेतरतीब हो जाती थीं.
उनसे नज़र मिल जाने पर,
या फिर बिछड़ जाने पर......
भाव पहलू बहुत नाज़ुक हैं
सुन्दर भाव समन्वय्।
जवाब देंहटाएंअवसाद के कोलेस्ट्राल .. नवीनतम बिम्ब है
जवाब देंहटाएंवही मुझे मेरा पेस मेकर है,..अब इसके लिए क्या कहूँ ;):) ऐसा पेसमेकर यूँ ही सब नियंत्रित रहे ..
सुंदरता से लिखे एहसास
रचना जी,
जवाब देंहटाएंबहुत भावुक हैं आप !
येह दिल के लिए ठीक नही |
मुक्तभोगी हूँ; मैं!
खुश रहिये !
शुभकामनाएँ !
अशोक सलूजा|
सुन्दर भाव
जवाब देंहटाएंअब सब नियंत्रित है
जवाब देंहटाएंअब तो लगता वही
मुझे मेरा पेस मेकर है,
उन मजबूत बाहों से लिपट जाने पर.
रचना जी आपने खूबसूरती से 'पेस मेकर'लगाकर सब कुछ नियंत्रण में कर लिया है.
आपके दिल का भी कमाल है
आपकी 'रचना' बेमिशाल है.
मेरे ब्लॉग पर आईयेगा.मेरी नई पोस्ट आपका इंतजार कर रही है.
वाह, नए बिम्बो के साथ सुन्दर भाव समन्वय् !
जवाब देंहटाएंदोनों ही काव्य रचनाएं आंतरिक पीड़ा की सुन्दर सहज अभिव्यक्ति हैं...
जवाब देंहटाएंविशेष रूप से इस पंक्ति में नूतन उपमा ने अभिव्यक्ति को चार चांद लगा दिए हैं-
‘‘कभी पट गयी थीं धमनियां मेरी,
अवसाद के कोलेस्ट्राल से’’
मर्मस्पर्शी एवं भावपूर्ण काव्यपंक्तियों के लिए कोटिश: बधाई !
दोनों ही सुंदर.
जवाब देंहटाएंयह पेसमेकर काम बढ़िया करेगा .... :-)
जवाब देंहटाएंशुभकामनायें !
पेसमेकर के बाद पेसमेकर के बिना रह पाना कहाँ संभव है । कोलेस्ट्रोल को घोलती सुन्दर रचना ।
जवाब देंहटाएंमर्मस्पर्शी एवं भावपूर्ण काव्यपंक्तियों के लिए धन्यवाद|
जवाब देंहटाएंकभी दिल जोरों से धड़क जाता था,
जवाब देंहटाएंउनके आने पर,
और कभी उनके न आने पर.
कभी सांसे बेतरतीब हो जाती थीं.
उनसे नज़र मिल जाने पर,
या फिर बिछड़ जाने पर......
bahut hi sundar shabd bhav
behad komalta ke saath likhi hain....bahut achchi lagi.
जवाब देंहटाएंदिल तो है दिल, दिल का ऐतबार क्या कीजे... ज्यादा भरोसा ठीक नहीं उपकरणों पर, मधुर भावपूर्ण रचना !
जवाब देंहटाएं(1) उफ्फ
जवाब देंहटाएं(2) उधर भी यही अहसास हों तो सोने पै सुहागा
अत्यंत भावपूर्ण रचनाएँ - बधाई
रचना एक प्रथक ही अर्थ लेती हुई मसलन आने पर भी और न आने पर भी दिल का धडकना, नजरे मिल जाने पर और विछड जाने दौनों स्थितियों में श्वास गति का अनियंत्रित हो जाना ।अच्छी रचना
जवाब देंहटाएंअवसाद को घोलने के लिये मन का आनन्द आवश्यक होता है।
जवाब देंहटाएंनए प्रतीको और भावों के साथ सुंदर कविताएं।
जवाब देंहटाएंअवसाद के कोलेस्ट्राल..नूतन उपमा के लिए बधाई !
जवाब देंहटाएंनए भावबोध के साथ रची गयी रचनाएँ मन के विविध भावों को खूबसूरती से सामने लाती हैं ...आपका आभार
जवाब देंहटाएंबेहतरीन ।
जवाब देंहटाएंभावमय करते शब्दों के साथ बेहतरीन अभिव्यक्ति ।
जवाब देंहटाएंदोनों ही बहुत सुंदर रचनाये हैं ...
जवाब देंहटाएंबिलकुल नए बिम्ब से सुसज्जित ...सुन्दर रचना...
जवाब देंहटाएंसुंदरता से लिखे एहसास
जवाब देंहटाएंइस मखमली अहसास का तो जवाब नहीं!
बहुत सशक्त अभिव्यक्ति!
कमाल के भाव हैं आपके ,बहुत संवेदनशील हो ...शुभकामनायें
जवाब देंहटाएंआपकी कवितायेँ विस्फोट करती हैं.. हमेशा एक नया बिम्ब प्रस्तुत कर.. अद्भुत है यह प्रस्तिती..
जवाब देंहटाएंकभी दिल जोरों से धड़क जाता था,
जवाब देंहटाएंउनके आने पर,
और कभी उनके न आने पर.
कभी सांसे बेतरतीब हो जाती थीं.
उनसे नज़र मिल जाने पर,
या फिर बिछड़ जाने पर.....
bahut sunder bhav
rachana
सुन्दर कविता.. नवीनतम विम्ब... बेहतरीन प्रस्तुतीकरण...
जवाब देंहटाएंराजीव जी की टिप्पणी पोस्ट नहीं हो पा रही है. शायद कोई तकनीकी गडबडी है. सेटिंग में तो कोई चेंज नहीं किया है मैंने फिर भी.
जवाब देंहटाएंखैर फिलहाल उनकी टिप्पणी जो उन्होंने मेल से भेजी है यहाँ लगा रही हूँ. यदि किसी और को भी ऐसी समस्या आई हो तो समाधान मुझे भी बताएं.
राजीव जी ने कहा है:-
मेरी टिप्पणी आपके ब्लॉग पर पोस्ट नहीं हो पा रही है,इसलिए मेल पर भेज रहा हौं.
"कभी दिल जोरों से धड़क जाता था,
उनके आने पर,
और कभी उनके न आने पर."
ऐसा ही होता है जब दिल पार किसी और का वश हो. आपने तो अनायास ही बिहारी और सूर की दुनियां में पहुंचा दिया.श्रृंगार के दोनों पक्षों का अद्भुत संगम है आपकी रचना.बिम्ब-पक्ष इतना नया और सटीक(कोलेस्ट्राल) है कि भावनाएं चलती हुई दिखती है.बेहद असरकारी.
धन्यबाद राजीव जी.
अब तो लगता वही मुझे मेरा पेस मेकर है,
जवाब देंहटाएंउन मजबूत बाहों से लिपट जाने पर.
सुंदर सामंजस्य वैज्ञानिक बिम्बो का कविता में. अदभुत. शुभकामनायें.
"कभी दिल जोरों से धड़क जाता था,
जवाब देंहटाएंउनके आने पर,
और कभी उनके न आने पर."
ऐसा ही होता है जब दिल पार किसी और का वश हो. आपने तो अनायास ही बिहारी और सूर की दुनियां में पहुंचा दिया.श्रृंगार के दोनों पक्षों का अद्भुत संगम है आपकी रचना.बिम्ब-पक्ष इतना नया और सटीक (कोलेस्ट्राल से पेसमेकर तक) है कि भावनाएं चलती हुई दिखती है.बेहद असरकारी.
कभी दिल जोरों से धड़क जाता था,
जवाब देंहटाएंउनके आने पर,
और कभी उनके न आने पर.
कभी सांसे बेतरतीब हो जाती थीं.
उनसे नज़र मिल जाने पर,
या फिर बिछड़ जाने पर......
भाव पहलू बहुत नाज़ुक हैं.
बहुत सुंदर कविता.शुभकामनाएँ.
तुम्हारी मीठी बातों में,
जवाब देंहटाएंकोलेस्ट्राल तो घुल गया
अब शायद मेरी बारी है .....
sunder......
jai baba banaras....
तुम्हारी मीठी बातों में,
जवाब देंहटाएंकोलेस्ट्राल तो घुल गया..
Bahut dino baad kuch esa padhne ko mila.. ! Behad sundar bhav hai ! Aabhar !
कोलेस्ट्राल तो घुल गया
जवाब देंहटाएंअब शायद मेरी बारी है ...
बहुत खूब .. विज्ञान और साहित्य को जोड़ कर आप जो कविता की उत्पत्ति करती हैं ... लाजवाब ...
कोलेस्ट्राल तो घुल गया अब शायद मेरी बारी है .....
जवाब देंहटाएंऔर
अब तो लगता वही मुझे मेरा पेस मेकर है,
सच नए से प्रयोग हैं.
- विजय
सुंदर भाव संयोजन..कोलेस्ट्राल..पेसमेकर..सुन्दर
जवाब देंहटाएंबिम्ब
सुन्दर भाव और अभिव्यक्ति के साथ लाजवाब रचना लिखा है आपने ! प्रशंग्सनीय प्रस्तुती!
जवाब देंहटाएंकोलेस्ट्राल,धमनियां,पेसमेकर--वाह ग़ज़ब का प्रयोग है रचना जी,नयापन है.मज़ा आ गया.दिल पर किसी का एक शेर याद आ गया है, आपको सुनाता हूँ.
जवाब देंहटाएंकोलेस्ट्राल,धमनियां,पेसमेकर सबसे निजात दिलाता हुआ:-
दिल की बिसात क्या थी निगाहे-जमाल में.
इक आइना था टूट गया देख भाल में.
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