विरक्ति
सब कहते हैं
मेरी माँ ने
मेरे शरीर में रोपी थीं
कुछ नन्हीं कोपलें
गन्ने की
तब जब थी मैं
उनके गर्भ में
समय के साथ बढती रही
मैं और वो फसल
हंसना, खिलखिलाना,
हँसाना, मिठास बिखेरना
मेरा पर्याय हो गया
अचानक उम्र के
किसी मोड पर.
छूट गया सब कुछ.
सूखने लगी मैं
और वो फसल
जमने लगा शरीर के भीतर
गुड, गाढ़ी चिपचिपी
चाशनी और शर्करा.
अचानक किसी
चिरपरिचित आवाज का
ये पूछना
तुम वही हो ना
जो अपनी बातों से
हवाओं में मिश्री
घोला करती थीं कभी !
खोजने लगी अपने आपको
झाँका अपने भीतर
ये मैं हूँ ?
पाया उपेक्षित पड़ा
मिठास का भंडार.
अब हँसने मुस्कुराने
चहकने महकने लगी हूँ
बिखेरना चाहती हूँ
मिठास एक बार फिर
उम्मीद है
जल्दी ही लहलहाएगी
गन्ने की कोपलें
जो माँ ने रोपीं थीं
जब मैं थी उनके गर्भ में.
बहुत सुंदर,उम्दा अभिव्यक्ति ,,,
जवाब देंहटाएंRECENT POST: ब्लोगिंग के दो वर्ष पूरे,
Samay ke saath waqayee bahut kuchh peechhe chhot jata hai...
जवाब देंहटाएंन जाने कितनी बातें सीखी हैं गर्भ में, माँ के स्नेह स्वरूप।
जवाब देंहटाएंअपने मन की भावनाओं को बहुत बढ़िया अभिव्यक्ति दी है आपने. ज़िन्दगी कई बार अपने अन्दर निहित चीजों को भूल सी जाती है. ऐसे में उन सबल पक्षों को जागृत करना आत्म-संतोष तो देता है और पर-हित भी . आपकी रचनाएँ हमेशा मन को छूती है.
जवाब देंहटाएंआपकी इस प्रस्तुति की चर्चा कल सोमवार [01.07.2013]
जवाब देंहटाएंचर्चामंच 1293 पर
कृपया पधार कर अनुग्रहित करें
सादर
सरिता भाटिया
धन्यबाद सरिता जी चर्चामंच के १२९३ वें अंक में मेरी रचना को शामिल करने के लिये.
हटाएंसुख और दुःख , अंतर्मन में ही छुपे रहते हैं। बस पहचानने की ज़रुरत होती है। बढ़िया रचना।
जवाब देंहटाएंसमय के साथ जो कहीं दब जाता हैं उसे जगाना जरुरी है... अच्छी एहसास लिए रचना !!
जवाब देंहटाएंये सकारात्मकता ही जीवन्तता प्रदान करती है जीवन को
जवाब देंहटाएंपरिवार को बधाई ..
जवाब देंहटाएंबहुत ही बेहतरीन,मन के भावनाओं की सार्थक प्रस्तुतिकरण।
जवाब देंहटाएंपरिस्थितियाँ मन कि मिठास को कहीं पीछे कर देती हैं .... इसको पुन: स्थापित कर लेना कठिन सा लगता है लेकिन जहां चाह वहाँ राह ...मिठास बरकरार रहे ...
जवाब देंहटाएंयही मिठास जीवन को अमृतमय बनाती है।
जवाब देंहटाएंआमीन ....
जवाब देंहटाएंपोस्ट बहुत पसंद आया
सादर
हार्दिक शुभकामनायें ......
ईश्वर आपको कभी स्वयं से दूर न करे ,जीवन की इस आपा धापी में बहुत कुछ पीछे छूट जाता
जवाब देंहटाएंहै और हम आगे निकलते जाते हैं....बहुत सुंदर रचना ....शुभ कामनाएं ..
समय के थपेड़े कभी खुद को ही जिन्दगी से दूर कर देते हैं .....
जवाब देंहटाएंअच्छा हुआ आपने अपने आप को फिर से पा लिया ..खूब मिठास और मुस्कान बांटे....
शुभकामनायें!
आपने मातृत्व का बहुत ही सुन्दर अंकन किया है आभार
जवाब देंहटाएंगन्ने की खेती बढे, हरदिन बढे मिठास । फसल निरोगी स्वस्थ हो, नसल असल विश्वास ॥
जवाब देंहटाएंमन को छू गई,
जवाब देंहटाएंबहुत सुंदर रचना
समय के साथ साथ बहुत कुछ भूलने लगता है ... कठोर लम्हे भी कभी कभी कड़वाहट भर देते हैं ... पर फिर अंतरमन बचपन की यादों में मीठा हो जाता है .. .
जवाब देंहटाएंआमीन ऐसा ही हो -बहुत सुन्दर
जवाब देंहटाएंlatest post झुमझुम कर तू बरस जा बादल।।(बाल कविता )
वाह, जल्दी ही मीठी मीठी गनेरियों के रूप में आपकी कविताएँ मिलेंगी तब तो...
जवाब देंहटाएंअंतस को छूती बहुत प्रभावी रचना...
जवाब देंहटाएंबहुत सुंदर रचना...
जवाब देंहटाएंबहुत सुंदर रचना,मन को छू गई,आभार
जवाब देंहटाएंबेहद सशक्त भावाभिव्यक्ति .....सहज अनुभूत तबदीली मन की परिवेश की .ॐ शान्ति .
जवाब देंहटाएंमन को छूती हुई सुंदर अनुभूति
जवाब देंहटाएंबेहतरीन रचना
बधाई
मन को छूती हुई बहुत सुन्दर प्रस्तुति..
जवाब देंहटाएंये उम्मीद बनी रहे .....
जवाब देंहटाएंसार्थक रचना ....!!
गहन अर्थ लिए बहुत ही बेहतरीन रचना...
जवाब देंहटाएं:-)