शनिवार, 6 अगस्त 2022

अमावस

 अमावस

 

यूँ कुछ दिनों से मेरे भीतर

बहुत कुछ बदल रहा था

घट रहा था बढ़ रहा था

यूँ पूरा एक चाँद

घटता,बढ़ता लड़ता रहा

आज अचानक यूँ लगा

अमावस का पूरा एक चाँद

मेरे भीतर पिघल रहा हो

मेरी अमावस में घुल रहा हो

भीतर एक तन्हा

आसमान मचलने लगा

सघन मौन पीड़ा को 

स्वर देने लगा

मन की प्रस्तर सतहें

टूटने लगीं चटखने लगीं

दरारों में चाँद उतरने लगा

वेदना की ज्योति के गले

लगने लगा 

मिलने लगा

आकाश न पाने की पीड़ा 

अनुभव करने लगा

एक निगाह

चेहरे पर गिर कर 

टूट कर बिखरने लगी

जख्मों के पैबन्दों के 

टांके टूटने लगे

मैं अंजुरी में तड़प भरने लगी

सन्नाटे के 

छंद और चौपाइयां 

फुसफुसाने लगे

चाँद के अनगिनत 

टुकड़ों को समेटने लगी

एक सुरक्षित एकांत भरने लगी

सोचने लगी

ये तो फिर भी अमावस का चाँद है

कभी तो उबर लेता होगा

मैं तो पूरी की पूरी

अलिखित, अपठित, अमिट

अमावस हूँ

27 टिप्‍पणियां:

  1. बहुत गहन भाव, मन चाँद है जो घटता बढ़ता है, पर आत्मा तो सूरज है चेतना का सूरज!

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  2. जब मन पिघलता है तो पूर्णिमा भी अमावस हो जाती है । यूँ न तो अपठित हो और न अलिखित । वैसे इस रचना में रचना ने कमाल कर दिया है ।

    जवाब देंहटाएं
  3. आपकी लिखी रचना सोमवार 08 अगस्त 2022 को
    पांच लिंकों का आनंद पर... साझा की गई है
    आप भी सादर आमंत्रित हैं।
    सादर
    धन्यवाद।

    संगीता स्वरूप

    जवाब देंहटाएं
  4. गहन चिन्तन के साथ लाजवाब सृजन ।

    जवाब देंहटाएं
    उत्तर
    1. मीना जी बहुत आभार आपकी इस अमूल्य टिप्पणी के लिए ।

      हटाएं
  5. अद्भुत !!
    बहुत गहन पर कुछ निराशा वाली चिंतन।

    जवाब देंहटाएं
  6. चाँद की तरह घटती बढ़ती भावनाओं का तरह मन का प्रवाह ।.अमावस या पूरणमासी को अपने चरम पर होती है चाँद की कलाएँ वैसे ही मनुष्य का मन कभी कभी ज्यादा महसूस करता है अपनी पीड़ा।
    ........
    गहन भाव लिए सुंदर बिंबों से सजी रचना।
    सादर।

    जवाब देंहटाएं
    उत्तर
    1. श्वेता जी बहुत बहुत आभार मेरे ब्लॉग पर आगमन हेतु और अपनी टिप्पणी से इस रचना को सराहने हेतु ।

      हटाएं
  7. सुन्दर , गहन और दर्द को अलग स्वर देती रचना।
    सादर

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  8. इस टिप्पणी को लेखक द्वारा हटा दिया गया है.

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  9. चाँद का टूटना और अमावश में पिघलना मन से इसकी तुलना बहुत ही लाजवाब
    गहन चिंतनपरक सृजन ।

    जवाब देंहटाएं
    उत्तर
    1. धन्यवाद सुधा जी इस रचना को समझने और सराहने के लिए ।

      हटाएं
  10. अमावस के चाँद को प्रतीकात्मक रूप में प्रस्तुत कर बहुत ही सधे ढंग से मन की व्यथा को शब्दांकित करती रचना प्रिय रचना जी।निशब्द हूँ!!!

    जवाब देंहटाएं
    उत्तर
    1. शुक्रिया रेणु जी इस रचना को सराहने के लिए । भविष्य में भी ब्लॉग पर आगमन अपेक्षित है ।

      हटाएं
  11. सुंदर रचना लिखी आपने भावपूर्ण

    जवाब देंहटाएं
  12. आपके मेरे ब्लॉग पर आने और आपकी टिप्पणी के लिए आभार🙏🙏

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