रुसवाई
ईरानी गलीचे पर फैलता इश्क
गाव तकिये पर अपने आप को सहारा देते
गिर गिर पड़ते शेर
अपनी सरहदों को छोड़ हारमोनियम पर
सर टिकाये
काफ़िया - रदीफ़
तबले के भीतर चुपचाप पड़ी
सहमी सी थापें
आँखों से टपकते अशआर
कागज़ के सलीब पर टंगी
कुछ बेजुबान नज्में
बाँहों में मातम सी पसरने को बेताब
अनगिनत, अनकही गज़लें मेरी
होंठों की मुंडेरों पर ख़राशों से
तराशे हुए
इरशाद और मुक़र्रर से
चंद अल्फाज़
भरे गले की सरहद पर
फंदे से झूलती मौसिकी
बंद कमरे की चारदीवारों के बीच
मचलती बेबस हुस्न की रुसवाई
ये और कुछ भी नहीं
तुम्हारी न के जवाब में
मेरी बेपनाह मुहब्बत की रुसवाई की हद है
ओह , ऐसी भी क्या रुसवाई कि ग़ज़ल की जगह नज़्म लिख डाली । ग़ज़ल के सारे आयाम तय कर डाले । बहुत खूब ।
जवाब देंहटाएं😆😆 संगीता दी लिखीं तो बहुत सारी नज्में और गजलें थीं पर अफसोस कि ये गज़ल मुकम्मल न हो सकी
हटाएंवाह!! इश्क़ की इंतहा!! अनोखे रूपक
जवाब देंहटाएंआपकी लिखी रचना सोमवार 01 अगस्त 2022 को
जवाब देंहटाएंपांच लिंकों का आनंद पर... साझा की गई है
आप भी सादर आमंत्रित हैं।
सादर
धन्यवाद।
संगीता स्वरूप
संगीता दी आभार आपका🙏🙏जल्दी ही पहुंचती हूं लिंको पर।
हटाएंये और कुछ भी नहीं
जवाब देंहटाएंतुम्हारी न के जवाब में
मेरी बेपनाह मुहब्बत की रुसवाई की हद है....बेहतरीन अल्फाज़।
धन्यवाद जिज्ञासा जी आपकी टिप्पणी और ब्लॉग पर आगमन हेतु।
हटाएंआभार अनीता जी 🙏जल्दी ही लिंको पर पहुंचने का प्रयास करती हूं।
जवाब देंहटाएंवाह्ह क्या अंदाज़े बयां है... बेहतरीन नज्म..।
जवाब देंहटाएंबिंब तो एक से बढ़कर एक है।
रचना जी ...
यूँ तो किसी के दर्द पर
दाद देना गुनाह है
पर हमने अक़्सर लोगों को
रूसवाई पर
इरशाद कहते सुना है
शायद...
इश्क़ का तरन्नुम वो गज़ल है
जिसके अश्क़ में डूबे
अल्फ़ाज़ को
पैमानों में भरकर
लुत्फ़ उठाने को
बेहयाई नहीं
दर्द की दवाई कहते हैं।
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सादर।
देर से प्रतिक्रिया के लिए क्षमा प्रार्थी हूं ।इतनी खुबसूरत टिप्पणी फिर आपकी बात से सहमत न होऊं ये संभव नहीं ।दर्द ही दर्द की दवा है।
हटाएंवाह..वाह! क्या खूब अंदाज़ ए बयाँ है!
जवाब देंहटाएंदेर से प्रतिक्रिया के लिए क्षमा प्रार्थी हूं । उत्साहवर्धन के लिए आभार🙏
हटाएंदेर से प्रतिक्रिया के लिए क्षमा प्रार्थी हूं। उत्साहवर्धन के लिए आभार🙏
हटाएंभरे गले की सरहद पर
जवाब देंहटाएंफंदे से झूलती मौसिकी
बंद कमरे की चारदीवारों के बीच
मचलती बेबस हुस्न की रुसवाई...
वाह!बहुत सुंदर।
देर से प्रतिक्रिया के लिए क्षमा प्रार्थी हूं। उत्साहवर्धन के लिए आभार🙏अनीता जी
हटाएंलाजबाव अभिव्यक्ति
जवाब देंहटाएंदेर से प्रतिक्रिया के लिए क्षमा प्रार्थी हूं। उत्साहवर्धन के लिए आभार🙏
हटाएंहोंठों की मुंडेरों पर ख़राशों से तराशे हुए
जवाब देंहटाएंइरशाद और मुक़र्रर से
चंद अल्फाज़
वाह!!!
अद्भुत बिम्ब
बहुत ही लाजवाब नज्म
देर से प्रतिक्रिया के लिए क्षमा प्रार्थी हूं। सुधा जी सराहना व उत्साहवर्धन के लिए आभार🙏
हटाएंदेर से प्रतिक्रिया के लिए क्षमा प्रार्थी हूं।सुधा जी सराहना व उत्साहवर्धन के लिए आभार🙏
हटाएंलाजवाब!
जवाब देंहटाएंदेर से प्रतिक्रिया के लिए क्षमा प्रार्थी हूं। उत्साहवर्धन के लिए आभार🙏विश्वमोहन जी 🙏
हटाएंक्या बात है प्रिय रचना जी।एक भावपूर्ण अभिव्यक्ति जो मन मन को छू गई 🙏
जवाब देंहटाएंप्रिय रेणु जी पहले तो देर से प्रतिक्रिया के लिए क्षमा प्रार्थी हूं। आपके मन को छू गई ये मेरे लिए उपहार सा है। उत्साहवर्धन के लिए आभार🙏
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