अमावस
यूँ कुछ दिनों से मेरे भीतर
बहुत कुछ बदल रहा था
घट रहा था बढ़ रहा था
यूँ पूरा एक चाँद
घटता,बढ़ता लड़ता रहा
आज अचानक यूँ लगा
अमावस का पूरा एक चाँद
मेरे भीतर पिघल रहा हो
मेरी अमावस में घुल रहा हो
भीतर एक तन्हा
आसमान मचलने लगा
सघन मौन पीड़ा को
स्वर देने लगा
मन की प्रस्तर सतहें
टूटने लगीं चटखने लगीं
दरारों में चाँद उतरने लगा
वेदना की ज्योति के गले
लगने लगा
मिलने लगा
आकाश न पाने की पीड़ा
अनुभव करने लगा
एक निगाह
चेहरे पर गिर कर
टूट कर बिखरने लगी
जख्मों के पैबन्दों के
टांके टूटने लगे
मैं अंजुरी में तड़प भरने लगी
सन्नाटे के
छंद और चौपाइयां
फुसफुसाने लगे
चाँद के अनगिनत
टुकड़ों को समेटने लगी
एक सुरक्षित एकांत भरने लगी
सोचने लगी
ये तो फिर भी अमावस का चाँद है
कभी तो उबर लेता होगा
मैं तो पूरी की पूरी
अलिखित, अपठित, अमिट
अमावस हूँ
बहुत गहन भाव, मन चाँद है जो घटता बढ़ता है, पर आत्मा तो सूरज है चेतना का सूरज!
जवाब देंहटाएंआभार अनीता जी
हटाएंजब मन पिघलता है तो पूर्णिमा भी अमावस हो जाती है । यूँ न तो अपठित हो और न अलिखित । वैसे इस रचना में रचना ने कमाल कर दिया है ।
जवाब देंहटाएंधन्यवाद संगीता दी इस सराहना के लिए ।
हटाएंआपकी लिखी रचना सोमवार 08 अगस्त 2022 को
जवाब देंहटाएंपांच लिंकों का आनंद पर... साझा की गई है
आप भी सादर आमंत्रित हैं।
सादर
धन्यवाद।
संगीता स्वरूप
जी बहुत बहुत शुक्रिया ।
हटाएंगहन चिन्तन के साथ लाजवाब सृजन ।
जवाब देंहटाएंमीना जी बहुत आभार आपकी इस अमूल्य टिप्पणी के लिए ।
हटाएंबढ़िया अभिव्यक्ति !
जवाब देंहटाएंसतीश जी बहुत बहुत आभार ।
हटाएंअद्भुत !!
जवाब देंहटाएंबहुत गहन पर कुछ निराशा वाली चिंतन।
जी बहुत शुक्रिया कुसुम जी ।
हटाएंचाँद की तरह घटती बढ़ती भावनाओं का तरह मन का प्रवाह ।.अमावस या पूरणमासी को अपने चरम पर होती है चाँद की कलाएँ वैसे ही मनुष्य का मन कभी कभी ज्यादा महसूस करता है अपनी पीड़ा।
जवाब देंहटाएं........
गहन भाव लिए सुंदर बिंबों से सजी रचना।
सादर।
श्वेता जी बहुत बहुत आभार मेरे ब्लॉग पर आगमन हेतु और अपनी टिप्पणी से इस रचना को सराहने हेतु ।
हटाएंसुन्दर , गहन और दर्द को अलग स्वर देती रचना।
जवाब देंहटाएंसादर
धन्यवाद अपर्णा जी ।
हटाएंबेहद सुंदर रचना
जवाब देंहटाएंभारती जी बहुत धन्यवाद इस टिप्पणी के लिए ।
हटाएंइस टिप्पणी को लेखक द्वारा हटा दिया गया है.
जवाब देंहटाएंचाँद का टूटना और अमावश में पिघलना मन से इसकी तुलना बहुत ही लाजवाब
जवाब देंहटाएंगहन चिंतनपरक सृजन ।
धन्यवाद सुधा जी इस रचना को समझने और सराहने के लिए ।
हटाएंअमावस के चाँद को प्रतीकात्मक रूप में प्रस्तुत कर बहुत ही सधे ढंग से मन की व्यथा को शब्दांकित करती रचना प्रिय रचना जी।निशब्द हूँ!!!
जवाब देंहटाएंशुक्रिया रेणु जी इस रचना को सराहने के लिए । भविष्य में भी ब्लॉग पर आगमन अपेक्षित है ।
हटाएंसुंदर रचना लिखी आपने भावपूर्ण
जवाब देंहटाएंआपके मेरे ब्लॉग पर आने और आपकी टिप्पणी के लिए आभार🙏🙏
जवाब देंहटाएंसुंदर रचना।
जवाब देंहटाएंजी आभार आपका 🙏🙏
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