जब मस्तिष्क
अपने आतंरिक कक्ष में
प्रवेश कर रहा था
सुरमई जुगनू
अंधेरों को रौशन कर रहे थे
खामोशी अंधेरों को पी रही थी
अंधेरों के कतरे बिखर रहे थे
सांसों का बाज़ार नर्म था
कुछ आयातित कुछ अपहृत सांसें
बेसुकून से उनींदी सी
हर करवट पर कराह रही थीं
इक समुद्र मंथन होने लगा
चेतन, अवचेतन, अतिचेतन सांसें
पूरी गरिमा के साथ धरने पर बैठ गयीं
विस्मृतियों की धूल धुंधलाने लगी
सांसें किसी का एकाधिकार न होने की
विडम्बना से मचलने लगीं
चौदह घड़ी, चौदह पल, चौदह विपल
बीत गए
एक धनवंतरी की तलाश में
पर हाय
सांसों के हाथ आया हलाहल
मस्तिष्क के आंतरिक कक्ष की देहलीज़ पर
ठिठक कर ठहर गया
एक आघात, एक पक्षाघात
और हृदयाघात की आहट
और हो गया
सांसों का अवसान
बहुत मार्मिक प्रस्तुति।
जवाब देंहटाएंआभार ज्योति जी
हटाएंआपकी इस प्रविष्टि के लिंक की चर्चा कल शनिवार (02-07-2022) को चर्चा मंच "उतर गया है ताज" (चर्चा अंक-4478) पर भी होगी!
जवाब देंहटाएं--
सूचना देने का उद्देश्य यह है कि आप उपरोक्त लिंक पर पधार कर चर्चा मंच के अंक का अवलोकन करे और अपनी मूल्यवान प्रतिक्रिया से अवगत करायें।
--
हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'
जी आभार आपका 🙏🙏
हटाएंमैटर सलेक्ट नहीं होता है चर्चा में लेने के लिए।
जवाब देंहटाएंकृपया ब्लॉग से ताला हटा दीजिए।
पोस्ट पर आपकी प्रतिक्रिया के लिए आभार। शाम को ही हो पायेगा अभी बाहर हूं🙏🙏
हटाएंआदरणीय शास्त्री जी आप के सुझाव के अनुसार ताला हटा दिया है |
हटाएंसांसों के हाथ आया हलाहल
जवाब देंहटाएंमस्तिष्क के आंतरिक कक्ष की देहलीज़ पर
ठिठक कर ठहर गया
एक आघात, एक पक्षाघात
और हृदयाघात की आहट
बहुत मार्मिक अभव्यक्ति । सच सोते समय ही ये सारा मंथन चलता रहता है ।
आभार संगीत दी❤️❤️
हटाएंमार्मिक रचना
जवाब देंहटाएंबहुत आभार अनीता जी |
जवाब देंहटाएंआपकी लिखी रचना ब्लॉग "पांच लिंकों का आनन्द" रविवार 03 जुलाई 2022 को साझा की गयी है....
जवाब देंहटाएंपाँच लिंकों का आनन्द पर आप भी आइएगा....धन्यवाद!
धन्यवाद यशोदा जी |
जवाब देंहटाएंगहनता लिए हुए सुंदर रचना
जवाब देंहटाएंसुमन जी आभार आपका 🙏
हटाएंवाह! सराहनीय सृजन।
जवाब देंहटाएंहृदयस्पर्शी।
सादर
अनीता जी सराहना के लिए🙏 आभार देरी के लिए क्षमा प्रार्थी हूं 🙆🙆
हटाएंमार्मिक रचना
जवाब देंहटाएंओंकार जी मार्मिक तो क्या बस मन के मंथन से ही उपजा था। सराहना के लिए🙏 आभार देरी के लिए क्षमा प्रार्थी हूं 🙆🙆
हटाएंबहुत सुंदर रचना
जवाब देंहटाएंभारती जी सराहना के लिए🙏 आभार देरी के लिए क्षमा प्रार्थी हूं 🙆🙆
हटाएंमर्म स्पर्शी गहन भाव।
जवाब देंहटाएंसुंदर सृजन।
मर्म स्पर्शी तो क्या मनोमंथन का परिणाम है। सराहना के लिए🙏 आभार देरी के लिए क्षमा प्रार्थी हूं 🙆🙆
हटाएंमार्मिक बखूबी चित्रण हुआ है।
जवाब देंहटाएंसंजय जी सराहना के लिए आभार 🙏।देरी के लिए क्षमा प्रार्थी हूं 🙆🙆
हटाएं