चेतावनी: इस पोस्ट में योगी जी का न तो हाथ है न ही दिमाग इसलिए कृपया MYogiAdityanath योगी जी जैसे अनुभवहीन को इससे जोड़ कर न देखा जाए।
समय के साथ सोच, शब्द, भावनायें और उनकी परिणति ही नहीं बदली बल्कि तेजी से बदलते समय, मशीनीकरण और मानसिकता से प्रेम भी अछूता नहीं रहा है। अभी तक शब्दों और भावनाओं का मानवीयकरण हो रहा था पर आज यहां शब्दों, भावनाओं और मुहावरों का मानवीयकरण न होकर मशीनीकरण होगा। आज के घोर मशीनीकरण और घनघोर टीवीकरण के कर्कश, कर्णकटु स्वर के प्रदूषण से उपजी एक अनोखी, अनहोनी सी प्रेम कथा प्रस्तुत है यहां।
जैसे हर प्रेम कहानी में होता है, "प्रेम कहानी में एक लड़का होता है एक लड़की होती है कभी दोनों हंसते हैं कभी दोनों रोते हैं" । पर मशीनीकरण के युग में आप कहेंगे कि जरूरी तो नहीं कि "एक लड़का हो और एक लड़की ही हो" , ,पर यकीन मानिए मेरी इस प्रेम कहानी में निश्चित रूप में एक लड़का है और एक लड़की है । अब देखें कि एक सामान्य प्रेमी युगल के जीवन में "प्रेम की परिणति" से पहले क्या क्या पायदान आते हैं। उनकी सोच, संवेदनाएं, भावनाएं कैसे व्यक्त होती हैं मेरे अंदाज में औए मशीनीकरण के प्रभाव में ।
तो होता यूं है कि एक प्रेमी युगल जो बहुत समय से अथाह व अगाथ प्रेम में एक दूसरे से मिल रहे थे, एक दिन प्रेमिका बीमार होने पर भी प्रेमी के विशेष अनुरोध पर उससे मिलने पहुंची तो पहुंचने पर होता क्या है? होता कुछ नहीं है बस तूफानी मशीनीकरण!
प्रेमिका चलते चलते थक जाती है, पैरों में सूजन आ जाती है। वह एक जगह बैठ जाती है, पैरों के दर्द के बारे में सोच कर उसे लगता है जैसे किसी ने उसके "पैरों में बुल्डोजर बांध दिए है" ("पैरों में पत्थर बांध दिए है")। प्रेमिका बहुत देर तक प्रेमी की राह देखती है और उसके ना आने पर जब दिल आशंकित हो जाता है, तब उसे ऐसा लगता है जैसे उसके "कलेजे पर बुल्डोजर लोट गया हो" ("कलेजे पर सांप लोट गया हो") फिर भी "दिल पर बुल्डोजर रख कर" ("दिल पर पत्थर रख कर") वो प्रतीक्षा करती है। काफी इंतजार करने के बाद प्रेमी आता है। पर प्रेमिका व्यथित है उसे खुश करने के लिए प्रेमी कह उठता है कि जब जब तुम मुस्कुराती हो "हंसती हो तो बुल्डोजर झड़ते हैं" (हंसती हो तो फूल झड़ते हैं") फिर क्या था प्रेमिका खिलखिला पड़ती है और प्रेमी से कहती है कि आज घर जाकर मैं सबको अपने प्रेम के बारे में बता दूंगी। घर पहुंच कर वो अपने घर वालों को अपने प्रेम प्रसंग के बारे में बताती है तो शुरू हो जाता है उलाहनों का दौर, कि तुम्हें "छाती पर बुलडोजर दलने के लिए" ("छाती पर मूंग दलने के लिए") पैदा किया था। तुम्हारी "अकल पर बुल्डोजर पड़े हैं" ("अकल पर पत्थर पड़े हैं")। शादी क्या "बुल्डोजर का खेल है" ("बच्चों का खेल है")। या तुमने एक "बुल्डोजर की लकीर खींच दी है" ("पत्थर की लकीर खींच दी है") और यदि हां, तो हम भी "ईट का जवाब बुल्डोजर से" देंगे ("ईट का जवाब पत्थर से देंगे") और "तुम्हें छठी का बुलडोजर याद दिला देंगे ("तुम्हें छठी का दूध") और अगर किसी भी तरह से घर वालों का "पत्थर का दिल बुल्डोजर हो गया" (जी कड़ा कर लिया) तो गए काम से और यही कहीं "बुल्डोजर का दिल मोम हो गया" ("पत्थर का दिल मोम") और वो मान गए और रिश्ता ब्याह तक पहुंचा तो आजकल जैसे कार्ड छपते हैं। हर समारोह की अलग व्याख्या और कपड़ों का रंग। जैसे हल्दी के लिए पीला पर पीला भी कैसा "बुल्डोजरी पीला"। फिर बाजार से दो दिन में ही पीला रंग "बुल्डोजरी पीले" के नाम पर गायब हो जायेगा। अब तो आप समझ ही गए होंगे की बुलडोजर और पीला एक दूसरे के पर्याय हैं, तो हाथ पीला करने को लिखेंगे की अमुक तारीख को अमुक दिन मेरी बेटी के "हाथ बुलडोजरी किए जायेंगे"।
अब आगे आप को सोचना है कि उन हाथों से कब कब, कैसे कैसे, किसकी किसकी बखिया उधेड़ी जायेगी।
पर मेरी बखिया उधेड़ने का प्रयास हरगिज न करें क्योंकि मेरा नाम है
रचना दीक्षित बुलडोजरी
"अपना काम मैने दिया है कर, बाकी बचा करेगा बुलडोजर"
योगी जी .... अनुभवहीन 😄😄😄
जवाब देंहटाएंवैसे ये बुलडोज़र कथा तो अनंत है , पढ कर दिल बुलडोज़र बुलडोज़र ( बाग बाग ) हो गया । व्यंग्य ने इस पोस्ट पर चार बुलडोज़र ( चाँद ) लगा दिए ।।
आपकी इस बुल्डोज़री नज़र को सलाम
हटाएंमेरे पेज पर आने के लिए आभार
व्वाहहहहह
जवाब देंहटाएंसुंदर व्यंग्य
आभार...
जी धन्यवाद
हटाएंसंगीता दी एक तो मैंने कितने सालों बाद ब्लॉग पर पोस्ट डाली और आपने दस्तक दी मन वैसे ही प्रफुल्लित था ऊपर से आपने अपने लिंक में स्थान दिया अच्छा लगा | मेरी इस पोस्ट को अपने प्रतिष्ठित मंच पांच लिंकों का आनंद में स्थान देने के लिए हृदय से आभार
जवाब देंहटाएंबहुत समय के बाद मुहावरों का इतना सुन्दर प्रयोग के साथ हास्यव्यंग पढ़ने को मिला । अनुपम सृजन ।
जवाब देंहटाएंमीना जी बहुत आभार ब्लॉग पर आने और ब्लॉग दिप्पणी देने के लिए |
हटाएंरचना दी, बहुत समय बाद आपकी रचना पढ़ने मिली। इतनी अच्छी रचना पढ़ कर दिल बुलडोजर हो गए जी।
जवाब देंहटाएंज्योति जी मेरे ब्लॉग पर आने और इस लेख पर प्रतिक्रिया देने के लिए धन्यवाद |
हटाएंआपकी इस प्रविष्टि के लिंक की चर्चा कल शनिवार (25-06-2022) को चर्चा मंच "गुटबन्दी के मन्त्र" (चर्चा अंक-4471) पर भी होगी!
जवाब देंहटाएं--
सूचना देने का उद्देश्य यह है कि आप उपरोक्त लिंक पर पधार कर चर्चा मंच के अंक का अवलोकन करे और अपनी मूल्यवान प्रतिक्रिया से अवगत करायें।
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हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'
वाह!!! बहुत बढ़िया!!!
जवाब देंहटाएंधन्यवाद विश्वमोहन जी \
हटाएंवाह! वाह! गज़ब सच सराहना से परे।
जवाब देंहटाएंसादर
अनीता जी शुक्रिया ब्लॉग पर पधारने और पोस्ट को सराहने के लिए |
हटाएंअरे मस्त एकदम, मन प्रफुल्लित हो गया बुलडोजर कथा पढ़कर।
जवाब देंहटाएंआपकी बुलडोजर लेखनी ने मेरे मन पर ऐसा बुलडोजर चलाया कि पिछली ब्लॉग्स पर जो भी पढ़कर आये हैं सब पर बुलडोजर छा गया है।
जबरदस्त लेखन।
सादर।
आपकी उत्साहवर्धक टिप्पणी ने आगे और भी लिखने के लिए मुझे प्रेरित किया है आभार आपका। अपना स्नेह यूं ही बनाए रखें🙏
हटाएंअरे मस्त एकदम, मन प्रफुल्लित हो गया बुलडोजर कथा पढ़कर।
जवाब देंहटाएंआपकी बुलडोजर लेखनी ने मेरे मन पर ऐसा बुलडोजर चलाया कि पिछली ब्लॉग्स पर जो भी पढ़कर आये हैं सब पर बुलडोजर छा गया है।
जबरदस्त लेखन।
सादर।
दो.बार.प्रतिक्रिया लिखे हम रचना जी पर दीख नही रही शायद स्पेम में हो प्लीज चेक करिये न।
जवाब देंहटाएंश्वेता जी आपकी सराहना के लिए और इस पोस्ट और ब्लॉग पर आने के लिए बहुत बहुत धन्यवाद | आपकी टिप्पणी स्पैम में ही थी, अब पब्लिश हो गयी है स्पैम का टैग हटाने पर |
हटाएंनिश्चित ही अब बुलडोजरों की भारी उपयोगिता को देखकर इनकी कीमत बढ़ जाएगी, इसलिए सोच रही हूँ क्यों न हैं भी एक बुलडोज़र बुक कर लें
जवाब देंहटाएंआपकी टिप्पणी से अभिभूत हूं। लेखकों की तो लेखनी भी बुलडोजर से कम नहीं होती😁😆।देरी के क्षमाप्रार्थी हूं।🙏🙏
हटाएंबहुत सुन्दर व्यंग्य-आलेख रचना जी !
जवाब देंहटाएंफ़िल्म 'संघर्ष' का एक गीत है - 'मेरे पैरों में घुँघरू बंधा दे तो फिर मेरी चाल देख ले' अब आप किसी प्रेमी या किसी प्रेमिका के पैरों में बुलडोज़र बंधवाना चाहती हैं. फिर तो चाल की जगह हम - 'भूचाल' देखेंगे.
वैसे बुलडोज़र का प्रयोग अब घोड़ी की जगह भी किया जाने लगा है.
अभी हाल ही में एक इंजिनियर दूल्हा बुलडोज़र पर सवार हो कर अपनी दुल्हनिया लेने गया था.
हम तो योगी बाबा के राज्य में रहते हैं. हमारे अरमानों पर तो रोज़ ही बुलडोज़र चलता है.
आपकी उत्साहवर्धक प्रतिक्रिया से अभिभूत हूं।🤗
हटाएं"ले आएंगे ले आएंगे योगी बाबा बुलडोजर ले आएंगे
रह जायेंगे रह जायेंगे पैसे वाले देखते रह जायेंगे"
देरी के लिए क्षमा प्रार्थी हूं🙆🙆अपना स्नेह यूं ही बनाएं रखें🙏🙏
आप सभी गुणी जनों का हृदय से आभार 🙏🙏
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