रविवार, 6 सितंबर 2015

कश्ती

कश्ती

आम बच्चों की तरह
कागज की कश्ती बनाना
उसे पानी में तैराना
तैरते देखना
खुश होना
तालियाँ बजाना
मैंने भी किया था
ये सब कभी.
पर मैंने बह जाने नहीं दी
कश्ती अपनी कभी.
आज भी सहेजी है.
सोचती हूँ
कभी तो फिर तैरेगी
बचपन की तरह.
अंतर इतना है
कभी मीठे
सोंधे पानी में
उबड खाबड
रास्तों से जाने वाली
मेरी कश्ती
जाने कबसे
तैरने लगी है
सीधे सपाट रास्तों पर
अनवरत,
निरंकुश,
अविरल
मात्र खारे पानी में
खारा पानी फिर चाहे
प्याज के होने का हो
या न होने का
या ......

14 टिप्‍पणियां:

  1. सुंदर अभिव्यक्ति...जीवन में समय के साथ उम्र, समझ और संबंधों के स्तर पर निरंतर बदलाव होते रहते हैं।

    जवाब देंहटाएं
  2. बचपन रूप बदल बदल कर ही सही ताउम्र साथ रहता है..

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  3. आपकी लिखी रचना "पांच लिंकों का आनन्द में" मंगलवार 08 सितम्बर 2015 को लिंक की जाएगी............... http://halchalwith5links.blogspot.in पर आप भी आइएगा ....धन्यवाद!

    जवाब देंहटाएं
    उत्तर
    1. धन्यबाद यशोदा जी मेरी कविता को पांच लिंकों के आनन्द में स्थान देने के लिए.

      हटाएं
  4. sundar bhaav bhari kavita .. jeevan me hote hue badlaav ko darshati hui ..

    mujhe to bahutpasand aayi .

    shurkiya

    जवाब देंहटाएं
  5. समय के साथ बदलता सच , बहुत अच्छी कविता है ।

    जवाब देंहटाएं
  6. जीवन की भाग दौड़ में बचपन पीछे छूट कर भी कहाँ छूट पाता है...बहुत सुन्दर और भावपूर्ण रचना...

    जवाब देंहटाएं
  7. सुन्दर शब्द रचना
    http://savanxxx.blogspot.in

    जवाब देंहटाएं
  8. गहरी ... कश्ती तो पहले भी साहस से तैरती थी आज भी साहस से ही तैरेगी ...
    शायद अज्दाज़ बदल जाएगा या म्हणत ज्यादा लगेगी ...

    जवाब देंहटाएं
  9. बेहतरीन कविता वाह दी रचना बहुत सशक्त और सुन्दर रची है आपने...

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