पतन
सुना है गिरना बुरा है
देखती हूँ आसपास
कहीं न कहीं,
कुछ न कुछ
गिरता है हर रोज़.
कभी साख गिरना
कभी इंसान का गिरना
इंसानियत का गिरना
मूल्यों का गिरना
स्तर गिरना
कभी गिरी हुई मानसिकता
गिरी हुई प्रवृत्तियां.
अपराध का स्तर गिरना
नज़रों से गिरना
और कभी
रुपये का गिरना
सोने का गिरना
बाज़ार का गिरना
सेंसेक्स गिरना
और यहाँ तक
कि कभी तो
सरकार का गिरना
समझ नहीं पाती
ये इनकी चरित्रहीनता है
या
गुरुत्वाकर्षण.
बहुत सुंदर .
जवाब देंहटाएंनई पोस्ट : तेरियां ठंढियां छावां
धन्यवाद दिग्विजय जी मेरी कविता को पांच लिंकों का आनन्द में स्थान देने के लिए
जवाब देंहटाएंधन्यवाद दिग्विजय जी मेरी कविता को पांच लिंकों का आनन्द में स्थान देने के लिए
जवाब देंहटाएंwaah bht hi badhiya likhha
जवाब देंहटाएंवाह वाह - अद्भुत
जवाब देंहटाएंबहुत सुंदर प्रस्तुति...
जवाब देंहटाएंज्योति जी आपकी इस टिप्पणी और मेरे ब्लॉग में शामिल होने के लिए बहुत बहुत धन्यबाद.
हटाएंधन्यबाद शास्त्री जी मेरी रचना को चर्चामंच में स्थान देने के लिए.
जवाब देंहटाएंग्रुत्वकर्षण तो एक बहाना लगता है ... इन सब चीजों के साथ मानवता भी गिर रही है ...
जवाब देंहटाएंमजा आया आपके इस अंदाज पे ...
सामयिक सवाल , बेहतरीन रचना
जवाब देंहटाएंसुन्दर भावाभिव्यक्ति, सोचनीय !
जवाब देंहटाएंबहुत ख़ूब... उम्दा रचान
जवाब देंहटाएंबहुत ख़ूब... उम्दा रचान
जवाब देंहटाएंबेहद सटीक और लाजबाब रचना ।
जवाब देंहटाएंकविता की प्रत्येक पंक्ति में अत्यंत सुंदर भाव हैं.... संवेदनाओं से भरी बहुत सुन्दर कविता...
जवाब देंहटाएंये पतन उलझाता भी है और बहुत कुछ समझाता भी है . सुन्दर रचना ,रचना जी .
जवाब देंहटाएंबहुत सटीक प्रश्न...प्रभावी अभिव्यक्ति...
जवाब देंहटाएंसुंदर, सटीक
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