अनबुझे प्रश्न
तुम मुझे बहुत याद आते हो,
मेरी तनहाइओं में,
सुनसान वीरानों में,
मेरे अनबुझे से प्रश्न।
क्यों होते हैं कुछ रिश्ते,
कांच से नाज़ुक,
कुछ ढाल से मजबूत,
कुछ रौशनी में परछाई,
कुछ कागज़ पर रोशनाई।
तुम मुझे बहुत याद आते हो,
मेरे अनबुझे से प्रश्न।
क्यों नाज़ुक रिश्ता दरज़ता है।
क्यों मजबूत रिश्ता खड़ा रहता है।
क्यों परछाई रोशनी का
नहीं छोडती साथ।
क्यों कागज़ पर लिखा
रिश्ता नहीं होता आबाद।
तुम मुझे बहुत याद आते हो,
मेरे अनबुझे से प्रश्न।
सच है, बहुत कुछ अन्बुझ रह जाता है ...
जवाब देंहटाएंबेहतरीन!
सादर
मधुरेश
सरे पर्श्नो के जवाब हमेशा नहीं मिलते कुछ न कुछ के नहीं मिल जवाब नहीं मिल पाते
जवाब देंहटाएंजीवन-पथ प्रश्नों का उत्तर,
जवाब देंहटाएंएक मिल गया दूजा पथ पर।
ये अनबुझे प्रश्न ही तो शायद जीवन का मकसद होते हैं....
जवाब देंहटाएंएक खोज को प्रेरित करते...
बेहतरीन रचना..
अनु
बहुत ही उम्दा
जवाब देंहटाएंअनबुझे प्रश्न अनिउत्तरित रह जाते हैं कभी-कभी
सादर !!
अबूझे प्रश्न..
जवाब देंहटाएंजिसका उत्तर और भी तकलीफ देता है..
जवाब देंहटाएंये अनबुझे प्रश्न ही तो जीवन को गतिशील बनाते हैं..
जवाब देंहटाएंअनसुलझे प्रश्न के उतर पाने में जिंदगी गुजर जाती है फिर भी...आशा रहती है.बेहतरीन प्रस्तुति.
जवाब देंहटाएंसच कहो तो ये बुझा हुआ ही है सब कुछ ... अनबुझा तो मन की एक स्थिति है जो समजने नहीं देना चाहती ...
जवाब देंहटाएंगहरे भाव लिए है रचना ...
क्यों नाज़ुक रिश्ता दरज़ता है। क्यों मजबूत रिश्ता खड़ा रहता है। क्यों परछाई रोशनी का नहीं छोडती साथ। क्यों कागज़ पर लिखा रिश्ता नहीं होता आबाद।,,,,यही अनबुझे प्रश्न है जों सुलझ नही पाते जीवन भर ,,,,
जवाब देंहटाएंबहुत उम्दा प्रस्तुति,आभार
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jivan jatil prashno me ukjha khud kabhi sawal to kabhi jawab bhatakta rahta hai, sundar
जवाब देंहटाएंकितनी सुन्दर कविता!!
जवाब देंहटाएंअबूझ रिश्तों को बुझाने की और सवालों के दायरे में लाने की बेहतरीन कोशिश!!
जवाब देंहटाएंजीवन में प्रेम की अपनी एक जगह होती है
जवाब देंहटाएंउस जगह को तलाशती गहन अर्थ पूर्ण रचना
भावपूर्ण
उत्कृष्ट प्रस्तुति
क्यू कागज़ पे लिख रिश्ता नही होता आबाद
जवाब देंहटाएंइन पंक्तियों पर अब क्या कहूं
शायद रिश्ते वही होते हैं जो मन पर लिखें हो ।।
आपको भी नवसंवत्सर कु अनेकानेक बधाई ।।।।
क्यू कागज़ पर लिखा रिश्ता नही होता आबाद
जवाब देंहटाएंइन पंक्तियों पर अब क्या कहूं।।
शायद रिश्ता मन पर लिखा होता है।
आपको भी नवसंवत्सर की बधाई
क्यू कागज़ पर लिखा रिश्ता नही होता आबाद
जवाब देंहटाएंइन पंक्तियों पर अब क्या कहूं।।
शायद रिश्ता मन पर लिखा होता है।
आपको भी नवसंवत्सर की बधाई
गहरी अभिव्यक्ति...दस्तक देते रहते हैं कितने ही ऐसे प्रश्न
जवाब देंहटाएंSundar Prastuti,
जवाब देंहटाएंबेहद की खूबसूरत अनुभूत अभिव्यक्ति -
जवाब देंहटाएंये दुनिया तो मायावी है ,माया से भला कैसी यारी ,
अपने तो दो ही ठिकाने हैं ,वैकुंठ दुनिया निराकारी ,
धुंधला सा अंधियारा है ,दीपक से उजियारा होगा ,
ये आँख भी तब का दीपक है ,ये ज्ञान जीवन दीपक होगा .
यहाँ (लैकिक दुनिया में )हमारा तन होगा ,और वहां (पारलैकिक दुनिया ,परमधाम )हमारा मन होगा ,
अरे! शिव की याद रहेगी तब ,आँखों में समाया होगा ,
हम धन्य तभी बन पायेंगे ,जब ऐसा प्रिय जीवन होगा .ॐ शान्ति .
जवाब देंहटाएंये आँख भी तन का दीपक है ,ये ज्ञान जीवन दीपक होगा .
ज़िन्दगी में बहुत सारे प्रश्नों के उत्तर ही नहीं मिलते .....
जवाब देंहटाएंक्यूँ,कहाँ ... किसी भी बात का उत्तर सहज नहीं
जवाब देंहटाएंइन्ही अनबुझे सवालों का नाम जिंदगी है।
जवाब देंहटाएंबेहतरीन प्रस्तुति।
बहुत सुन्दर....बेहतरीन प्रस्तुति
जवाब देंहटाएंपधारें "आँसुओं के मोती"
बहुत सुंदर ....
जवाब देंहटाएंबहुत ख़ूबसूरत प्रस्तुति...
जवाब देंहटाएंबहुत अच्छी रचना ...
जवाब देंहटाएंबहुत से प्रश्नों का कोई जवाब नहीं होता
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