भविष्य
हर दिन सुबह सवेरे
बनाती हूँ जब चाय
देखती हूँ गर्म पानी के इशारे पे नाचती
चाय की पत्ती
उसका दिल जीतने का
हर संभव प्रयास करती
इतराती, इठलाती, बलखाती,
झूम झूम जाती
तब तक
जब तक बंद नहीं कर देती मैं आंच
जब तक खो नहीं जाता
उसका रूप, रंग, यौवन
सुडौल सुन्दर दानों की जगह
बेडौल थुल थुल काया
फिर बैठ जाता है
पत्तियों का झुण्ड
बर्तन की तली पर
बनाती हूँ जब चाय
देखती हूँ गर्म पानी के इशारे पे नाचती
चाय की पत्ती
उसका दिल जीतने का
हर संभव प्रयास करती
इतराती, इठलाती, बलखाती,
झूम झूम जाती
तब तक
जब तक बंद नहीं कर देती मैं आंच
जब तक खो नहीं जाता
उसका रूप, रंग, यौवन
सुडौल सुन्दर दानों की जगह
बेडौल थुल थुल काया
फिर बैठ जाता है
पत्तियों का झुण्ड
बर्तन की तली पर
थका, हारा, हताश,
फिर भी शांत.
दूर कर देती हूँ फिर मैं
पत्ती को उसी के पानी से.
सोचती हूँ कहीं
स्त्रीलिंग होने मात्र से
उसका भाग्य स्त्रियों से
जुड़ तो नहीं जाता
नहीं चाहती हूँ उसे
उसी की किस्मत पे छोड़ना
कूड़े के ढेर पर पड़े पड़े खत्म होना
उठाती हूँ बड़े जतन से उसे
ले जाती हूँ अपने सबसे प्यारे
और दुर्बल पौधे के पास
मिलाती हूँ उसकी
सख्त मिटटी में इसे
खिल उठती है वो मिटटी
भुर भुरी हो उठती है
आश्वस्त हूँ अब
जी उठेगा मेरा पौधा
जाते जाते कोई
जीवन दान जो दे गया है उसे.
उसी की किस्मत पे छोड़ना
कूड़े के ढेर पर पड़े पड़े खत्म होना
उठाती हूँ बड़े जतन से उसे
ले जाती हूँ अपने सबसे प्यारे
और दुर्बल पौधे के पास
मिलाती हूँ उसकी
सख्त मिटटी में इसे
खिल उठती है वो मिटटी
भुर भुरी हो उठती है
आश्वस्त हूँ अब
जी उठेगा मेरा पौधा
जाते जाते कोई
जीवन दान जो दे गया है उसे.
सोचती हूँ कहीं
जवाब देंहटाएंस्त्रीलिंग होने मात्र से
उसका भाग्य स्त्रियों से
जुड़ तो नहीं जाता नहीं चाहती हूँ उसे
उसी की किस्मत पे छोड़ना
कूड़े के ढेर पर पड़े पड़े खत्म होना
कोमल मन की अभिव्यक्ति ,बेमिसाल !!
bahut sundar ... aiksanvedansheel man hee itna bhavuk ho sakta hai chaay patti ke liye bhi.. aapka man jaan liya.. umda
जवाब देंहटाएंBahut,bahut sundar...
जवाब देंहटाएंओह...
जवाब देंहटाएंमंगलकामनाएं आपको
सुबह की चाय और आपका काव्य सर्जन - वाह - लाजवाब
जवाब देंहटाएंसुबह की चाय और आपका काव्य सर्जन - वाह - लाजवाब
जवाब देंहटाएंकोमल भाव की अति सुन्दर रचना..
जवाब देंहटाएं:-)
मिटने के बाद भी काम आती है ... जी उठती है फिर से नए रूप में ...
जवाब देंहटाएंवाह!! कमाल की रचना...जाते जाते भी कोई जीवन सन्देश दे जाए इससे बढ़कर क्या हो सकता है|
जवाब देंहटाएंबहुत गहन बात .... चाय की पट्टियाँ जाते जाते भी पौधे को जीवन दान दे गईं ...उसू तरह स्त्री भी जाते जाते न जाने दूसरों के लिए कितने काम कर जाती है .... सुंदर प्रस्तुति ...
जवाब देंहटाएंमरते-मरते बलिदान दे गयी
जवाब देंहटाएंकिसी को जीवन-दान दे गयी ....
गहरे अहसास !
मेहंदी की तरह चाय की पत्ती भी अपना रंग उस पानी को देकर स्वयं बैठ जाती है.. ताकि कोई उसे वहाँ से हटा दे... नारी ही क्यों, साधू प्रकृति इंसान, अपने सारे गुण इस जगत को देकर उसी मिट्टी में मिल जाते हैं जहाँ से वो आये थे. और दधीची की तरह वज्र बनाकर संहार का कारण बनते हैं... और नारी तो धरा की तरह सब धारण करती है!!
जवाब देंहटाएंअनूठे अन्दाज़ में कही आपकी बात, प्रभावशाली है!!
..किसी का मन जितने के लिए ये कैसी तड़प!..बहुत सुन्दर रचना!
जवाब देंहटाएंसुबह की चाय पर सुन्दर अभिव्यक्ति..आभार
जवाब देंहटाएंजीवन-दान मर कर भी.. बेहतरीन अभिव्यक्ति..
जवाब देंहटाएंकविता के माध्यम से सार्थक सन्देश देती सुन्दर रचना।
जवाब देंहटाएंचाय की पट्टी का खुबसूरत मानवीयकरण संवेदनाओं सहित
जवाब देंहटाएंजी उठेगा मेरा पौधा
जवाब देंहटाएंजाते जाते कोई
जीवन दान जो दे गया है उसे.,,
वाह बहुत खूब सार्थक उम्दा प्रस्तुति ,,,, बधाई।
recent post हमको रखवालो ने लूटा
ताजगी का अनुभव दे जाती है..
जवाब देंहटाएंऔरत और चाय की पत्ती .नशा दोनों में है और चक्रित होतीं है दोनों कायनात को चलाए भी रखतीं हैं .उत्पादक है .
जवाब देंहटाएंऔरत और चाय की पत्ती .नशा दोनों में है और चक्रित होतीं है दोनों कायनात को चलाए भी रखतीं हैं .उत्पादक है .अपने ही बिम्बों और तदानुभूत सत्यों को हर कोई अंजता है चलो चक्रण में आई ,खाद बनी चाय की पत्ती उर्वरक बनी स्त्री सी .
जवाब देंहटाएंऔरत और चाय की पत्ती .नशा दोनों में है और चक्रित होतीं है दोनों कायनात को चलाए भी रखतीं हैं .उत्पादक है .अपने ही बिम्बों और तदानुभूत सत्यों को हर कोई आंजता है चलो चक्रण में आई ,खाद बनी चाय की पत्ती उर्वरक बनी स्त्री सी .
जवाब देंहटाएंबहुत ही बढ़िया रचना।
जवाब देंहटाएंचाय की पत्ती की ये कहानी भी खूब है,अच्छा किया जो उसे कूड़े के ढेर से उठा लिया आपने ..
वही जीवन सार्थक है जो खत्म होते-होते भी किसी को कुछ दे जाए...
जवाब देंहटाएंबेहद खूबसूरत रचना...
कोमल मन की अभिव्यक्ति ,बेमिसाल !सुन्दर प्रस्तुति.मंगल कामनाएं !
जवाब देंहटाएंबहुत सुंदर ! :-)
जवाब देंहटाएंआपकी लेखनी ने एक छोटे से काम को कितना बड़ा कर दिया !:)
~सादर !!!
दूर कर देती हूँ फिर मैं पत्ती को उसी के पानी से. सोचती हूँ कहीं स्त्रीलिंग होने मात्र से उसका भाग्य स्त्रियों से जुड़ तो नहीं जाता
जवाब देंहटाएं...बहुत सुन्दर विम्ब..गहन अहसासों की बहुत सुन्दर और भावमयी अभिव्यक्ति..
चाय की पती के साथ साथ बहुत से विचार भी उबल रहें है ...सादर
जवाब देंहटाएंgaram chai ki pyali ho...:))
जवाब देंहटाएंbethareen.
वाह रचनाजी .....बहुत ही सुन्दर रचना ....वाकई .....:)
जवाब देंहटाएंbahut hi beharain bimbo se saji sunder kavita.
जवाब देंहटाएंसूक्ष्म अध्ययन. सुन्दर अभिव्यक्ति.
जवाब देंहटाएंअब हर दिन चाय बनाने का एक अलग नज़रिया होगा...सुंदर रचना।।।
जवाब देंहटाएंस्त्रियों से जुडे इस भाग्य से ही तो किसी और का जीवन संवारने का सौभाग्य उसे मिलता है । हमारे यहां तो गुलाब के पौधे लहलहाते हैं इसके संयोग से ।
जवाब देंहटाएंबहुत अच्छे भाव हैं इस कविता के।
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