बुधवार, 5 दिसंबर 2012

जंगल और रिश्ते


जंगल और रिश्ते


कभी यहाँ जंगल थे
पेड़ों की बाँहें
एक दूसरे के गले लगतीं
कभी अपने पत्ते बजाकर
ख़ुशी का इज़हार करतीं
कभी मौन हो कर
दुःख संवेदना व्यक्त करतीं
न जाने कैसे लगी आग
सुलगते रहे रिश्ते
झुलसते रहे तन मन
अब न वो जंगल रहे
न वो रिश्ते
जंगल की विलुप्त होती
विशिष्ठ प्रजातियों की तरह
अब अति विशिष्ट 
और विशिष्ट रिश्ते भी
सामान्य और साधारण की
परिधि पर दम तोड़ रहे हैं
रोक लो
संभालो इन्हें
प्रेरणा स्रो़त बनो
इन्हें मजबूर करो
हरित क्रांति लाने को
रिश्तों की फसल लहलहाने को
क्योंकि अब रिश्तों को
मिठास से पहले
अहसास की ज़रूरत है
कि कुछ रिश्ते 
और कुछ रिश्तों के बीज
अभी जीवित हैं.

27 टिप्‍पणियां:

  1. Incredible comparisions between relations and jungle.. as always impressive.. :)

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  2. दोनों लुप्त हो रहे हैं...रिश्ते भी जंगल भी...
    इन्हें नेह से सींचा जाय चलो...

    अनु

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  3. बहुत गहन भावनायें संजोयी हैं।

    जवाब देंहटाएं
  4. शब्दों की जीवंत भावनाएं... सुन्दर चित्रांकन.

    बहुत सुंदर भावनायें और शब्द भी ...बेह्तरीन अभिव्यक्ति ...!!शुभकामनायें.
    आपका ब्लॉग देखा मैने और कुछ अपने विचारो से हमें भी अवगत करवाते रहिये.

    जवाब देंहटाएं
  5. लुप्त होते रिश्तों और जंगल को बचाने की गुहार लगती सुंदर रचना ।

    जवाब देंहटाएं
  6. दोनों को मनुष्य का लालच लील गया . एक पेड़ लगायें , जंगल में और रिश्तों में.

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  7. दोनों को मनुष्य का लालच लील गया . एक पेड़ लगायें , जंगल में और रिश्तों में.

    जवाब देंहटाएं
  8. जंगल और रिश्तों के लुप्त होने पर एक कविता में पिरोते हुए आपने जिस प्रकार अपनी संवेदनाएं व्यक्त की हैं वो सचमुच ह्रदय को स्पर्श करती हैं!!
    रचना जी, आभार! आपको पढना हमेशा एक सुखद अनुभव से गुजारने जैसा होता है!!

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  9. रिश्तों को यदि ना बचाया गया तो संकट गहराएगा ही...जैसे पर्यावरण का संकट गहरा गया है..

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  10. सचेत करती बेहतरीन कविता।


    सादर

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  11. और उसे हर कीमत पर बचाना भी है..

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  12. चिंतन .आत्म मंथन की जरुरत है बहुत सुन्दर रचना

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  13. अब न वो जंगल रहे
    न वो रिश्ते
    जंगल की विलुप्त होती विशिष्ट प्रजातियों की तरह
    अब अति विशिष्ट और विशिष्ट रिश्ते भी सामान्य और साधारण की परिधि पर दम तोड़ रहे हैं
    बहुत भावपूर्ण !
    आदरणीया रचना दीक्षित जी

    बेहतरीन !
    आपकी संवेदनशीलता सदैव प्रभावित करती है !
    नमन !

    शुभकामनाओं सहित…

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  14. रिश्तों को भौतिकवाद खा गया और जंगल को शहरीकरण लील गया . अब राम ही बचाये .

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  15. रिश्तों की फसलों में दीमक लग गयी स्वार्थ की , प्रेम , विश्वास का कीटनाशी ही इन्हें बचाएगा !
    अच्छी रचना !

    जवाब देंहटाएं
  16. रोक लो
    संभालो इन्हें
    प्रेरणा स्रो़त बनो
    इन्हें मजबूर करो
    हरित क्रांति लाने को
    रिश्तों की फसल लहलहाने को
    क्योंकि अब रिश्तों को
    मिठास से पहले
    अहसास की ज़रूरत है
    कि कुछ रिश्ते
    और कुछ रिश्तों के बीज
    अभी जीवित हैं.
    BEAUTIFUL LINES WITH FEELIGS AND EMOTIONS HEART TOUCHING LINES

    जवाब देंहटाएं
  17. बहुत बढ़िया...लुप्तप्राय रिश्तों को बचाने की कोशिश होनी चाहिए|

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