जंगल और रिश्ते
कभी यहाँ जंगल थे
पेड़ों की बाँहें
एक दूसरे के गले लगतीं
कभी अपने पत्ते बजाकर
ख़ुशी का इज़हार करतीं
कभी मौन हो कर
दुःख संवेदना व्यक्त करतीं
न जाने कैसे लगी आग
सुलगते रहे रिश्ते
झुलसते रहे तन मन
अब न वो जंगल रहे
न वो रिश्ते
जंगल की विलुप्त होती
विशिष्ठ प्रजातियों की तरह
अब अति विशिष्ट
और विशिष्ट रिश्ते भी
सामान्य और साधारण की
परिधि पर दम तोड़ रहे हैं
रोक लो
संभालो इन्हें
प्रेरणा स्रो़त बनो
इन्हें मजबूर करो
हरित क्रांति लाने को
रिश्तों की फसल लहलहाने को
क्योंकि अब रिश्तों को
मिठास से पहले
अहसास की ज़रूरत है
कि कुछ रिश्ते
और कुछ रिश्तों के बीज
अभी जीवित हैं.
Incredible comparisions between relations and jungle.. as always impressive.. :)
जवाब देंहटाएंदोनों लुप्त हो रहे हैं...रिश्ते भी जंगल भी...
जवाब देंहटाएंइन्हें नेह से सींचा जाय चलो...
अनु
aapse sahmat,
जवाब देंहटाएंsach kaha
बहुत गहन भावनायें संजोयी हैं।
जवाब देंहटाएंअनुपम भावों का संगम ...
जवाब देंहटाएंशब्दों की जीवंत भावनाएं... सुन्दर चित्रांकन.
जवाब देंहटाएंबहुत सुंदर भावनायें और शब्द भी ...बेह्तरीन अभिव्यक्ति ...!!शुभकामनायें.
आपका ब्लॉग देखा मैने और कुछ अपने विचारो से हमें भी अवगत करवाते रहिये.
लुप्त होते रिश्तों और जंगल को बचाने की गुहार लगती सुंदर रचना ।
जवाब देंहटाएंदोनों को मनुष्य का लालच लील गया . एक पेड़ लगायें , जंगल में और रिश्तों में.
जवाब देंहटाएंदोनों को मनुष्य का लालच लील गया . एक पेड़ लगायें , जंगल में और रिश्तों में.
जवाब देंहटाएंबहुत उम्दा सुंदर प्रस्तुति,,,
जवाब देंहटाएंrecent post: बात न करो,
बहुत ही सुन्दर कविता..
जवाब देंहटाएंरिश्ते भी जंगल हो गए. दोनों ही न रहे
जवाब देंहटाएंजंगल और रिश्तों के लुप्त होने पर एक कविता में पिरोते हुए आपने जिस प्रकार अपनी संवेदनाएं व्यक्त की हैं वो सचमुच ह्रदय को स्पर्श करती हैं!!
जवाब देंहटाएंरचना जी, आभार! आपको पढना हमेशा एक सुखद अनुभव से गुजारने जैसा होता है!!
आपकी किसी नयी -पुरानी पोस्ट की हल चल बृहस्पतिवार 06-12 -2012 को यहाँ भी है
जवाब देंहटाएं....
सफ़ेद चादर ..... डर मत मन ... आज की नयी पुरानी हलचल में ....संगीता स्वरूप
. .
रिश्तों को यदि ना बचाया गया तो संकट गहराएगा ही...जैसे पर्यावरण का संकट गहरा गया है..
जवाब देंहटाएंसचेत करती बेहतरीन कविता।
जवाब देंहटाएंसादर
सोचने को मजबूर करती रचना
जवाब देंहटाएंrachna ji namaskaar
जवाब देंहटाएंbaut acchi sarthak rachna , badhai aapko
वाह , सुंदर !- शब्द सक्रिय हैं
जवाब देंहटाएंऔर उसे हर कीमत पर बचाना भी है..
जवाब देंहटाएंचिंतन .आत्म मंथन की जरुरत है बहुत सुन्दर रचना
जवाब देंहटाएंअब न वो जंगल रहे
न वो रिश्ते
जंगल की विलुप्त होती विशिष्ट प्रजातियों की तरह
अब अति विशिष्ट और विशिष्ट रिश्ते भी सामान्य और साधारण की परिधि पर दम तोड़ रहे हैं
बहुत भावपूर्ण !
आदरणीया रचना दीक्षित जी
बेहतरीन !
आपकी संवेदनशीलता सदैव प्रभावित करती है !
नमन !
शुभकामनाओं सहित…
रिश्तों को भौतिकवाद खा गया और जंगल को शहरीकरण लील गया . अब राम ही बचाये .
जवाब देंहटाएंरिश्तों की फसलों में दीमक लग गयी स्वार्थ की , प्रेम , विश्वास का कीटनाशी ही इन्हें बचाएगा !
जवाब देंहटाएंअच्छी रचना !
रोक लो
जवाब देंहटाएंसंभालो इन्हें
प्रेरणा स्रो़त बनो
इन्हें मजबूर करो
हरित क्रांति लाने को
रिश्तों की फसल लहलहाने को
क्योंकि अब रिश्तों को
मिठास से पहले
अहसास की ज़रूरत है
कि कुछ रिश्ते
और कुछ रिश्तों के बीज
अभी जीवित हैं.
BEAUTIFUL LINES WITH FEELIGS AND EMOTIONS HEART TOUCHING LINES
बेहतरीन .......
जवाब देंहटाएंबहुत बढ़िया...लुप्तप्राय रिश्तों को बचाने की कोशिश होनी चाहिए|
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