रविवार, 8 जुलाई 2012

दर्द


दर्द 

मेरे आंगन में बरसों से पड़ी
खाली चारपाई पे कल
उनींदी सी पड़ी धूप को 
बाल सुखाते देखा.
थकी निढाल मलिन मुख...
मुझे पास देख खोल दी
क्लांत मन की पिटरिया,
बोली
आज हर कोई भाग रहा है
गगन चुंबी अट्टालिकाओ में रहने को
उसे अपना बनाने को
पहले होते थे
दूर तक फैले बड़े बड़े खेत खलिहान
दूर दूर फैले दो चार मकान
और तब मैं
रोज सूरज के साथ घर से निकलती
फैला देती अपना आंचल एक ही बार में
इस पार से उस पार तक
फिर सारा दिन बच्चों संग छुपन छुपाई
पेड़ पौधों पक्षियों संग आंख मिचोली,
थोडा ऊँघ भी लेती 
किसी दादी अम्मा की गोद में. 
शाम फिर अपना आंचल समेट
अपने प्रियतम संग लौट आती, 
कल फिर आने कि उंमग में. 
चाहती आज भी हूँ 
हर मन, घर, आंगन, खिड़की 
को रौशन करना 
इतनी सीढियाँ इतनी ऊँची इमारत 
चढ़ते चढ़ते ही बीत जाता है दिन
हर इंसान की ही तरह परेशान हूँ मैं भी.


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34 टिप्‍पणियां:

  1. शहरीकरण के कच्ची और गुनगुनी धूप को जाने कहाँ खो दिया है....

    बहुत सुन्दर रचना ..

    अनु

    जवाब देंहटाएं
  2. मेरे दिल का भी दर्द बह निकला और दर्द का चुभन कुछ कम हुआ ... !
    जाड़े में गुनगुनी धुप ना मिलने का दर्द .... उनी कपड़े ना सुखा पाने का दर्द .... अपार्टमेन्ट के पहली मंजिल पर आचार सुखाने के लिए धुप ना मिलने का दर्द .... !!

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  3. कंक्रीट के जंगलों में कहाँ सकून और चैन मिलेगा ......!

    जवाब देंहटाएं
  4. उनींदी सी धूप और उसके सूखते बाल ....... वह धूप मेरी आँखों में अटक गई

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  5. धूप भी अपनी पीड़ा कह गयी ... सुंदर अभिव्यक्ति

    जवाब देंहटाएं
  6. उनींदी सी पड़ी धुप को बाल सुखाते देखा ... वाह क्या सुन्दर पंक्तियाँ हैं ... बेहतरीन रचना ...

    जवाब देंहटाएं
  7. बहुत सुंदर !! धूप की पीड़ा दिल को छू गयी...

    जवाब देंहटाएं
  8. सहज भाव लिए अभिव्यक्ति...
    शहरीकरण में सुकून नहीं....
    :-)

    जवाब देंहटाएं
  9. आज ये परेशानी इतन बड कई है की कोई दूसरी चीज़ सूझती नहीं ... शहरीकरण भी तो बिमारी है अपने आप में ...

    जवाब देंहटाएं
  10. सहज भाव लिए लाजबाब रचना सुंदर अभिव्यक्ति.,,,,

    RECENT POST...: दोहे,,,,

    जवाब देंहटाएं
  11. सहज भाव लिए लाजबाब रचना सुंदर अभिव्यक्ति.,,,,

    RECENT POST...: दोहे,,,,

    जवाब देंहटाएं
  12. धूप हैं तो मुश्किल ....धूप ना हों तो मुश्किल ...हर किसी कि अपनी बाते हैं ...खूबसूरत प्रस्तुति

    जवाब देंहटाएं
  13. सच्चे और नाज़ुक एहसास ...
    शुभकामनाएँ!

    जवाब देंहटाएं
  14. दर्द
    आंगन में बरसों से पड़ी खाली चारपाई पे
    उनींदी सी पड़ी धूप को
    कल बाल सुखाते देखा.

    आज हर कोई भाग रहा है गगन चुंबी अट्टालिकाओ में रहने

    दूर तक फैले बड़े बड़े खेत खलिहान
    दूर दूर फैले दो चार मकान
    सूरज के साथ

    अपना आंचल एक ही बार
    इस पार से उस पार
    सारा दिन बच्चों संग छुपन छुपाई
    पेड़ पौधों पक्षियों संग आंख मिचोली,
    थोड़ी ऊँघ
    शाम

    अपने प्रियतम के संग
    कल फिर आने कि उंमग में.
    चाहती आज भी हूँ हर मन, घर, आंगन, खिड़की को रौशन करना

    इतनी सीढियाँ
    इतनी ऊँची इमारत
    चढ़ते चढ़ते ही बीत जाता है दिन

    हर इंसान की ही तरह परेशान हूँ मैं भी.


    बहुत सुन्दर

    जवाब देंहटाएं
  15. धूप का दर्द..हमारा दर्द ...बहुत सुन्दर अभिव्यक्ति..रचना जी..

    जवाब देंहटाएं
  16. the poem depicts about the culture that we are runafter there... we have forgotten our ... rural cultural.. civilzation....
    is there any way to return ?

    जवाब देंहटाएं
  17. नए प्रतीकों की मार्फ़त सब कुछ कह दिया .कुछ न कह कर भी .बढ़िया रचना .

    जवाब देंहटाएं
  18. नए प्रतीकों की मार्फ़त सब कुछ कह दिया .कुछ न कह कर भी .बढ़िया रचना .आखिर हांफती भागती ज़िन्दगी रास आए भी तो कैसे ?

    जवाब देंहटाएं
  19. शहरों की ऊंची ऊँची दीवारों और भवनों के बीच धूप जाने कहाँ गुम हो गयी है..बहुत मर्मस्पर्शी रचना..

    जवाब देंहटाएं
  20. hamesha ki tarah damdar prateeko dwara, shabdo k jangalon se nikalta, dil ko cheerta ek aur dard behtareen sa, sateek sa asar chhodta hua ek bar fir vahi asar kar gaya jise mehsoos kar dil aankh moond kar bhi kah sakta hai ho n ho yah rachna ravindr ki hi rachna ho sakti hai.
    clap.clap.
    bahut khoob.

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  21. ये आपाधापी तो लगी रहेगी, तब तक धूप भी सुस्ता ले।

    जवाब देंहटाएं
  22. धूप भी परेशान...थक जाती है बिचारी...लिफ्ट से भी तो झट से नहीं चढ़ पातीः)

    जवाब देंहटाएं
  23. इतनी सीढियाँ इतनी ऊँची इमारत चढ़ते चढ़ते ही बीत जाता है दिन हर इंसान की ही तरह परेशान हूँ मैं भी....

    सही कहा शायद हमारी करनियों se प्रकृति भी उतनी ही परेशां है जितने हम खुद .....

    बहुत अच्छी कविता ....!!

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  24. बढ़िया अंदाज।
    धूप की परेशानी को महसूस करना..... सब के बस की बात नहीं !

    जवाब देंहटाएं
  25. इस टिप्पणी को लेखक द्वारा हटा दिया गया है.

    जवाब देंहटाएं
  26. बहुत ही सुंदर तरीके से अपनी बात कही आपने ...

    जवाब देंहटाएं

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