पत्थर
मैं हूँ पत्थर
खुशबू, ख़ुशी और
सुर्ख रंग का सौदागर.
पीसता हूँ,
पिसता हूँ,
देखता हूँ,
सुनता हूँ,
समझता हूँ
मौन रहता हूँ
नहीं बजती
शहनाई
किसी घर
मेरे बिना
हर दुल्हन की
हथेलियों को
सजाता हूँ,
मैं ही,
हर सजनी को
उसके साजन से
मिलाता हूँ
मैं ही
मैं हूँ पत्थर
खुशबू, ख़ुशी और
सुर्ख रंग का सौदागर.
दूसरों की जिंदगी में
रंग भरता
अपनी जिंदगी में
गम भरता
नहीं आती
मेरे लिए
मेरे पास
कोई ख़ुशी.
नहीं आती
मेरे लिए
मेरे पास
सुर्ख़ हथेलियाँ ,
सुर्ख़ जोड़ा
और सजनी.
नहीं चढ़ता
मुझ पर
कोई सुर्ख़ रंग कभी.
मेरे पास रहती है
बस उसकी सुगंध
मैं वो पत्थर हूँ
रंग लाती है
हिना जिस पर
पिस जाने के बाद.
मैं हूँ पत्थर
खुशबू, ख़ुशी और
सुर्ख रंग का सौदागर.
पत्थर के भी दिल होता है???
जवाब देंहटाएंबहुत सुन्दर रचना.....................
मेरे अन्दर तुम्हें ईश्वर मिलेगा .... दर्द , ख़ुशी , प्रकृति .... हर पड़ाव
जवाब देंहटाएंबेचारा पत्थर...अपनी व्यथा सुना ही गया !!!
जवाब देंहटाएंपत्थर ,जिसे लोगों ने अनदेखा कर दिया .....उसकी अकथ कहानी को सामने लाने के लिये आभार
जवाब देंहटाएंपत्थर तो आखिर पत्थर है,,,निर्जीव,,
जवाब देंहटाएंमनोभाव का सुंदर सम्प्रेषण,,,,,
RECENT POST,,,,,काव्यान्जलि ...: आश्वासन,,,,,
एकदम सही बात...
जवाब देंहटाएंबहूत हि सुंदर रचना...
:-)
बहुत ही सुन्दर भाव है !
जवाब देंहटाएंबहुत सुन्दर रचना.
पत्थर के भावों को सुंदरता से कहा है .... अच्छी प्रस्तुति
जवाब देंहटाएंपत्थर का हाल भी डॉक्टर के हाल जैसा है . खुद घिसकर ही दूसरों को रंग देता है .
जवाब देंहटाएंअति सूक्ष्म दृष्टि से गहरे भाव उभरे हैं रचना में . बढ़िया जी .
इतनी व्यथा ओके बाद भी खुशी देता है ये ....शायद इसी लिए उसके दिल मे हिरा पाया जाता है!
जवाब देंहटाएंजख्म खा के न रोने की आदत भी पत्थर में ही होती है ... बेचारा पत्थर ...
जवाब देंहटाएंबेहद गहन रचना
जवाब देंहटाएंबहुत सुन्दर, बधाई.
जवाब देंहटाएंवाह बहुत सुंदर भाव ....कितना ही पत्थर दिल क्यों ना हो ....कुछ भावना सभी मे होती है ....
जवाब देंहटाएंपत्थर का आधार तो आवश्यक ही है सबको, रोचक प्रस्तुति..
जवाब देंहटाएंपत्थर के दर्द को मार्मिक ढंग से उकेरा है रचना जी आप ने कभी हमें भी पत्थर बनना पड़ता है ऐसे दुसरे की खुशियों के लिए ...बहुत खूब
जवाब देंहटाएंभ्रमर ५
पत्थर का सुन्दर आत्मकथ्य!
जवाब देंहटाएंकुछ अलग सी , अर्थपूर्ण भाव लिए रचना
जवाब देंहटाएंखूबसूरत रचना.....बहुत खूब
जवाब देंहटाएंइस टिप्पणी को लेखक द्वारा हटा दिया गया है.
जवाब देंहटाएंरचना जी,
जवाब देंहटाएंअच्छी रचना।
महंदी पीसनेवाले पत्थर से धन्यवाद प्राप्त करें और मशरूफ निगाहें जरा उस तरफ भी डालें..कुछ और पत्थर आपकी सशक्त लेखनी का इंतजार कर रहे हैं..यथा
मसाले के पत्थर, मील के पत्थर, नींव के पत्थर, घाट के पत्थर, कुएं के हमामी पत्थर, पिस कर गिट्टी हो जानेवाले पत्थर, गुलेल के पत्थर...आशिकों के सर फोड़नेवाले पत्थर, गुनहगारों पर बरसनेवाले पत्थर............आदि अनादि और इत्यादि।
सुन्दर सम्प्रेषण....
जवाब देंहटाएंअलग ही तरह की रचना....
सादर बधाई.
पत्थर भी दिल रखते हैं , बस हर एक को महसूस नहीं होता ...
जवाब देंहटाएंपत्थर के भावों को सुंदरता से कहा है खूबसूरत रचना
जवाब देंहटाएंये वो पत्थर है तकदीर बनाती है यदि इसे देव समझकर इस पर सर रखो, वरना सर फोड़ सकती है, अगर इस पर सर पटके तो।
जवाब देंहटाएंबहुत खूबसूरत शब्द रचना
जवाब देंहटाएंयह कविता मगर भावनाओं और अर्थ को समेटे हुए हैं. पत्थरों की दास्ताँ अच्छी है
जवाब देंहटाएंमन के भावों की सुंदर प्रस्तुति,
जवाब देंहटाएंपत्थर की संवेदना को आपने बखूबी सुंदर शब्दों और भावों में संजो दिया है।
जवाब देंहटाएंबहुत बढ़िया।
पत्थर को भी इंसान बनाया आपने |
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