जंगल और रिश्ते
कभी यहाँ जंगल थे
पेड़ों की बाँहें
एक दूसरे के गले लगतीं
कभी अपने पत्ते बजाकर
ख़ुशी का इज़हार करतीं
कभी मौन हो कर
दुःख संवेदना व्यक्त करतीं
न जाने कैसे लगी आग
सुलगते रहे रिश्ते
झुलसते रहे तन मन.
अब न वो जंगल रहे
न वो रिश्ते
जंगल की विलुप्त होती
विशिष्ट प्रजातियों की तरह.
अब अतिविशिष्ट और विशिष्ट रिश्ते भी
सामान्य और साधारण की
परिधि पर दम तोड़ रहे हैं.
रोक लो
संभालो इन्हें
प्रेरणा स्रो़त बनो
इन्हें मजबूर करो
हरित क्रांति लाने को
रिश्तों की फसल लहलहाने को
क्योंकि अब रिश्तों को
मिठास से पहले
अहसास की ज़रूरत है
कि कुछ रिश्ते
और कुछ रिश्तों के बीज
अभी जीवित हैं.
नेह से सिंचित करें......जिससे अंकुर फूटें बीजों में...
जवाब देंहटाएंसुन्दर भाव रचना जी.
जंगल की विलुप्त होती
जवाब देंहटाएंविशिष्ट प्रजातियों की तरह.
अब अतिविशिष्ट और विशिष्ट रिश्ते भी
सामान्य और साधारण की
परिधि पर दम तोड़ रहे हैं.
जंगल और रिश्तों के इन प्रासंगिक सन्दर्भों में दोनों की महता और संबंधों को बहुत बारीकी से रेखांकित किया है आपने इस कविता के माध्यम से .....! सच में आज रिश्ते अपनी महता खोते जा रहे हैं अपना पण और प्रेम का स्थान औपचारिकता ने ले लिया है ...!
रोकना है इस समापन के क़दमों को , बहुत ही गहनता से आपने कहा है ...
जवाब देंहटाएंपेड़ दूर, बेलों ने लिपटना बन्द कर दिया है..
जवाब देंहटाएंजंगल और रिश्ते दोनो के महत्व को बहूत
जवाब देंहटाएंसुंदरता और गहनता से व्यक्त किया है...
बहूत हि बेहतरीन रचना...
Aapne bahut sundar rachna likhi hai
जवाब देंहटाएंइन रिश्तों के बीजों कों बचा के रखना चाहिए ... आने वाले समय में तो और जरूरत रहने वाली है इनकी ...
जवाब देंहटाएंवाह रचना जी बहुत सुंदर
जवाब देंहटाएंरिश्तो के बीज को अंकुरित रखना है..
जवाब देंहटाएंबस स्नेह के दो मीठे बोल चाहिए...
टूटे पर्यावरण की आग से रिश्तों की आंच बच नहीं पायेगी .रिश्ते बचाना है तो अपना आसपास माहौल पर्यावरण पारितंत्र सुधार लो .बढ़िया बिम्ब लिए आईं हैं रचना ,रचना जी .कृपया यहाँ भी पधारें -
जवाब देंहटाएंram ram bhai
रविवार, 10 जून 2012
टूटने की कगार पर पहुँच रहें हैं पृथ्वी के पर्यावरण औ र पारि तंत्र प्रणालियाँ Environment is at tipping point , warns UN report/TIMES TRENDS /THE TIMES OF INDIA ,NEW DELHI,JUNE 8 ,2012,१९
http://veerubhai1947.blogspot.in/
टूटे पर्यावरण की आग से रिश्तों की आंच बच नहीं पायेगी .रिश्ते बचाना है तो अपना आसपास माहौल पर्यावरण पारितंत्र सुधार लो .बढ़िया बिम्ब लिए आईं हैं रचना ,रचना जी .कृपया यहाँ भी पधारें -
जवाब देंहटाएंram ram bhai
रविवार, 10 जून 2012
टूटने की कगार पर पहुँच रहें हैं पृथ्वी के पर्यावरण औ र पारि तंत्र प्रणालियाँ Environment is at tipping point , warns UN report/TIMES TRENDS /THE TIMES OF INDIA ,NEW DELHI,JUNE 8 ,2012,१९
http://veerubhai1947.blogspot.in/
शानदार भावमय और सार्थक प्रस्तुति.
जवाब देंहटाएंआप मेरे ब्लॉग पर आईं, बहुत अच्छा लगा रचना जी.
पिछले महीने अमेरिका गया हुआ था,नेट पर बहुत कम रहा.आपकी शिकायत शीघ्र ही पूरी करूँगा.
मजबूरी के लिए क्षमा चाहता हूँ.
मिठास से पहले अहसास की ज़रूरत है कि कुछ रिश्ते और कुछ रिश्तों के बीज अभी जीवित हैं
जवाब देंहटाएं.....बहूत बेहतरीन रचना जी
प्रेरणा स्रो़त बनो
जवाब देंहटाएंइन्हें मजबूर करो
हरित क्रांति लाने को
रिश्तों की फसल लहलहाने को...
बहुत सुन्दर ....रिश्तों का एहसास होगा तो मिठास भी लगने लगेगी
रिश्तों के अहसास मे ही रिश्तों की मिठास छुपी है।
जवाब देंहटाएंबहुत गहन एह्सास देती ...एक पीड़ा से भरी ...बहुत सुंदर रचना ..सच बात है ...जंगल और इंसानी रिश्ते दोनो ही बचाने हैं ...
जवाब देंहटाएंशुभकामनायें...
बेहतरीन अभिव्यक्ति सुंदर रचना,,,,, ,
जवाब देंहटाएंMY RECENT POST,,,,काव्यान्जलि ...: ब्याह रचाने के लिये,,,,,
रिश्तों के लिए ऐसी सोच आज के समय की आवश्यकता है , सुंदर रचना
जवाब देंहटाएंशुभकामनायें इन बीजों के लिए ...
जवाब देंहटाएंआभार आपका
बहोत खूब
जवाब देंहटाएंhttp://Hindi Dunia Blog (New Blog)
बहोत खूब
जवाब देंहटाएंhttp://Hindi Dunia Blog (New Blog)
जंगल की विलुप्त होती
जवाब देंहटाएंविशिष्ट प्रजातियों की तरह.
अब अतिविशिष्ट और विशिष्ट रिश्ते भी
सामान्य और साधारण की
परिधि पर दम तोड़ रहे हैं.
.....उजडते जंगल और टूटते रिश्तों का बहुत सार्थक और गहन चित्रण...समय रहते इनको बचाना होगा...
रिश्तों को बिखरने ना दो ....संभालो इसे ..ये जिम्मेवारी हम सबकी हैं
जवाब देंहटाएंकाश,समय रहते लोग समझ पाते.
जवाब देंहटाएंrishton ko hara rakhne sunder baat ati sunder kavita .
जवाब देंहटाएंbadhai
rachana
जंगल की विलुप्त होती
जवाब देंहटाएंविशिष्ट प्रजातियों की तरह.
अब अतिविशिष्ट और विशिष्ट रिश्ते भी
सामान्य और साधारण की
परिधि पर दम तोड़ रहे हैं.
सार्थकता लिए सशक्त अभिव्यक्ति ।
सामयिक कविता ... आज रिश्तों me आग ... जंगले के आग से कम नहीं .... सुंदर काव्य
जवाब देंहटाएंwah jangal aur rshton ki tulna .....gajab ki rachana .....abhar rachana ji
जवाब देंहटाएंकभी यहाँ जंगल थे
जवाब देंहटाएंपेड़ों की बाँहें
एक दूसरे के गले लगतीं
कभी अपने पत्ते बजाकर
ख़ुशी का इज़हार करतीं
कभी मौन हो कर
दुःख संवेदना व्यक्त करतीं
न जाने कैसे लगी आग
सुलगते रहे रिश्ते
झुलसते रहे तन मन.
beautiful so nice
mere dono post par comment gaayab ho gaye hain...isliye me comment nahi dungi. huh.
जवाब देंहटाएंrachna ji
जवाब देंहटाएंbahut hi sundar vikalp chua hai aapne.sach me ye rishte aise hi hote ja ra hain.inhe banaye rakhna bahut hi jaruri hai.
bahut bahut hi achhi lagi aapki post
badhai
poonam