रविवार, 10 जून 2012

जंगल और रिश्ते


जंगल और रिश्ते



कभी यहाँ जंगल थे
पेड़ों की बाँहें
एक दूसरे के गले लगतीं
कभी अपने पत्ते बजाकर
ख़ुशी का इज़हार करतीं
कभी मौन हो कर
दुःख संवेदना व्यक्त करतीं
न जाने कैसे लगी आग
सुलगते रहे रिश्ते
झुलसते रहे तन मन.
अब न वो जंगल रहे
न वो रिश्ते
जंगल की विलुप्त होती
विशिष्ट प्रजातियों की तरह.
अब अतिविशिष्ट और विशिष्ट रिश्ते भी
सामान्य और साधारण की
परिधि पर दम तोड़ रहे हैं.
रोक लो
संभालो इन्हें
प्रेरणा स्रो़त बनो
इन्हें मजबूर करो
हरित क्रांति लाने को
रिश्तों की फसल लहलहाने को
क्योंकि अब रिश्तों को
मिठास से पहले
अहसास की ज़रूरत है
कि कुछ रिश्ते 
और कुछ रिश्तों के बीज
अभी जीवित हैं.

31 टिप्‍पणियां:

  1. नेह से सिंचित करें......जिससे अंकुर फूटें बीजों में...

    सुन्दर भाव रचना जी.

    जवाब देंहटाएं
  2. जंगल की विलुप्त होती
    विशिष्ट प्रजातियों की तरह.
    अब अतिविशिष्ट और विशिष्ट रिश्ते भी
    सामान्य और साधारण की
    परिधि पर दम तोड़ रहे हैं.

    जंगल और रिश्तों के इन प्रासंगिक सन्दर्भों में दोनों की महता और संबंधों को बहुत बारीकी से रेखांकित किया है आपने इस कविता के माध्यम से .....! सच में आज रिश्ते अपनी महता खोते जा रहे हैं अपना पण और प्रेम का स्थान औपचारिकता ने ले लिया है ...!

    जवाब देंहटाएं
  3. रोकना है इस समापन के क़दमों को , बहुत ही गहनता से आपने कहा है ...

    जवाब देंहटाएं
  4. पेड़ दूर, बेलों ने लिपटना बन्द कर दिया है..

    जवाब देंहटाएं
  5. जंगल और रिश्ते दोनो के महत्व को बहूत
    सुंदरता और गहनता से व्यक्त किया है...
    बहूत हि बेहतरीन रचना...

    जवाब देंहटाएं
  6. इन रिश्तों के बीजों कों बचा के रखना चाहिए ... आने वाले समय में तो और जरूरत रहने वाली है इनकी ...

    जवाब देंहटाएं
  7. रिश्तो के बीज को अंकुरित रखना है..
    बस स्नेह के दो मीठे बोल चाहिए...

    जवाब देंहटाएं
  8. टूटे पर्यावरण की आग से रिश्तों की आंच बच नहीं पायेगी .रिश्ते बचाना है तो अपना आसपास माहौल पर्यावरण पारितंत्र सुधार लो .बढ़िया बिम्ब लिए आईं हैं रचना ,रचना जी .कृपया यहाँ भी पधारें -
    ram ram bhai
    रविवार, 10 जून 2012
    टूटने की कगार पर पहुँच रहें हैं पृथ्वी के पर्यावरण औ र पारि तंत्र प्रणालियाँ Environment is at tipping point , warns UN report/TIMES TRENDS /THE TIMES OF INDIA ,NEW DELHI,JUNE 8 ,2012,१९
    http://veerubhai1947.blogspot.in/

    जवाब देंहटाएं
  9. टूटे पर्यावरण की आग से रिश्तों की आंच बच नहीं पायेगी .रिश्ते बचाना है तो अपना आसपास माहौल पर्यावरण पारितंत्र सुधार लो .बढ़िया बिम्ब लिए आईं हैं रचना ,रचना जी .कृपया यहाँ भी पधारें -
    ram ram bhai
    रविवार, 10 जून 2012
    टूटने की कगार पर पहुँच रहें हैं पृथ्वी के पर्यावरण औ र पारि तंत्र प्रणालियाँ Environment is at tipping point , warns UN report/TIMES TRENDS /THE TIMES OF INDIA ,NEW DELHI,JUNE 8 ,2012,१९
    http://veerubhai1947.blogspot.in/

    जवाब देंहटाएं
  10. शानदार भावमय और सार्थक प्रस्तुति.

    आप मेरे ब्लॉग पर आईं, बहुत अच्छा लगा रचना जी.

    पिछले महीने अमेरिका गया हुआ था,नेट पर बहुत कम रहा.आपकी शिकायत शीघ्र ही पूरी करूँगा.

    मजबूरी के लिए क्षमा चाहता हूँ.

    जवाब देंहटाएं
  11. मिठास से पहले अहसास की ज़रूरत है कि कुछ रिश्ते और कुछ रिश्तों के बीज अभी जीवित हैं
    .....बहूत बेहतरीन रचना जी

    जवाब देंहटाएं
  12. प्रेरणा स्रो़त बनो
    इन्हें मजबूर करो
    हरित क्रांति लाने को
    रिश्तों की फसल लहलहाने को...

    बहुत सुन्दर ....रिश्तों का एहसास होगा तो मिठास भी लगने लगेगी

    जवाब देंहटाएं
  13. रिश्तों के अहसास मे ही रिश्तों की मिठास छुपी है।

    जवाब देंहटाएं
  14. बहुत गहन एह्सास देती ...एक पीड़ा से भरी ...बहुत सुंदर रचना ..सच बात है ...जंगल और इंसानी रिश्ते दोनो ही बचाने हैं ...
    शुभकामनायें...

    जवाब देंहटाएं
  15. रिश्तों के लिए ऐसी सोच आज के समय की आवश्यकता है , सुंदर रचना

    जवाब देंहटाएं
  16. शुभकामनायें इन बीजों के लिए ...
    आभार आपका

    जवाब देंहटाएं
  17. जंगल की विलुप्त होती
    विशिष्ट प्रजातियों की तरह.
    अब अतिविशिष्ट और विशिष्ट रिश्ते भी
    सामान्य और साधारण की
    परिधि पर दम तोड़ रहे हैं.

    .....उजडते जंगल और टूटते रिश्तों का बहुत सार्थक और गहन चित्रण...समय रहते इनको बचाना होगा...

    जवाब देंहटाएं
  18. रिश्तों को बिखरने ना दो ....संभालो इसे ..ये जिम्मेवारी हम सबकी हैं

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  19. काश,समय रहते लोग समझ पाते.

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  20. rishton ko hara rakhne sunder baat ati sunder kavita .
    badhai
    rachana

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  21. जंगल की विलुप्त होती
    विशिष्ट प्रजातियों की तरह.
    अब अतिविशिष्ट और विशिष्ट रिश्ते भी
    सामान्य और साधारण की
    परिधि पर दम तोड़ रहे हैं.
    सार्थकता लिए सशक्‍त अभिव्‍यक्ति ।

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  22. सामयिक कविता ... आज रिश्तों me आग ... जंगले के आग से कम नहीं .... सुंदर काव्य

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  23. wah jangal aur rshton ki tulna .....gajab ki rachana .....abhar rachana ji

    जवाब देंहटाएं
  24. कभी यहाँ जंगल थे
    पेड़ों की बाँहें
    एक दूसरे के गले लगतीं
    कभी अपने पत्ते बजाकर
    ख़ुशी का इज़हार करतीं
    कभी मौन हो कर
    दुःख संवेदना व्यक्त करतीं

    न जाने कैसे लगी आग
    सुलगते रहे रिश्ते
    झुलसते रहे तन मन.


    beautiful so nice

    जवाब देंहटाएं
  25. rachna ji
    bahut hi sundar vikalp chua hai aapne.sach me ye rishte aise hi hote ja ra hain.inhe banaye rakhna bahut hi jaruri hai.
    bahut bahut hi achhi lagi aapki post
    badhai
    poonam

    जवाब देंहटाएं

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