आसरा
दूर से निहारती हूँ तुम्हें.
सुना है,
गुणों का अकूत भंडार हो तुम.
वैसे, हूँ तो मैं भी.
तुम में भी एक दोष है,
और मुझ में भी.
तुम्हारा असह्य कड़वापन,
जो शायद तुम्हारे लिए राम बाण हो
और मेरा, दुर्बल शरीर.
मुझे चाहिए,
एक सहारा सिर्फ रोशनी पाने के लिए.
सोचती हूँ फिर क्यों न तुम्हारा ही लूँ.
अवगुण कम न कर सकूँ तो क्या,
गुण बढ़ा तो लूँ.
आओ हम दोनों मिलकर
कुछ नया करें.
किसी असाध्य रोग की दवा बनें.
दूर से निहारती हूँ तुम्हें,
जानती हूँ, मैं अच्छी हूँ,
पर बहुत अच्छी बनना चाहती हूँ.
कहते हैं,
नीम पर चढ़ी हुई गुर्च बहुत अच्छी होती है.
बोलो! क्या दोगे मुझे आसरा,
अपने चौड़े विशाल छतनार वक्षस्थल पर?
ऊपर के चित्र में नीम के पेड़ से लटकती जड़ें गुर्च की हैं. गुर्च को अंग्रेजी में टिनोस्पोरा कहते हैं. नीचे का चित्र गुर्च का है. यह एक औषधीय पौधा है. इसके कुछ और नाम इस प्रकार हैं:
छिन्ना chinna, छिन्नरूहा chinnaruha, गिलोय giloy, गुड़च gudach, गुलञ्च gulancha, गुलुञ्च guluncha, गुलबेल gulbel, गुर्च gurch, जीवन्ती jivanti, जीवन्तिका jivantika, पित्ताग्नी pittagni, तिक्तपार्वण tiktaparvan, वज्रा वज्र.
(दोनों चित्र गूगल से लिए गए हैं)
:) ye to mast h ek dum.. aap bahut alag tereh se sochti hain aur is alag soch ko sanwaarne me behad mehnat bhi karti hain.. i liked the poem n pics as well..
जवाब देंहटाएंबढ़िया तुलनात्मक कविता .... नीम कड़वा ज़रूर है पर उस कड़वापन के पीछे छुपा है असंख्य गुण ...
जवाब देंहटाएंअरे वाह क्या ख़ूबसूरत अभिव्यक्ति है..यह तो केवल आप ही कर सकती हैं....वाह...
जवाब देंहटाएंऐसा क्यूँ मेरे मन में आता है..
आओ हम दोनों मिलकर
जवाब देंहटाएंकुछ नया करें.
किसी असाध्य रोग की दवा बनें.
सिम्बायोसिस में किसी तीसरे का भला भी हो सकता है , यह तो आपने खूब पहचाना ।
बहुत बुद्धिमानी से लिखी गई रचना ।
सृजन का एक नया रूप तुलनात्मक , बहुत सुंदर , बधाई
जवाब देंहटाएंसमाज की सीधी व सच्ची सीख देती कविता।
जवाब देंहटाएंक्या तुलना की है आपने, बहुत सुन्दर.
जवाब देंहटाएंविजयादशमी की अनन्त शुभकामनायें.
ati sundar mel hoga...jaisa ki hona chaahiye...ek doosare kepoorak ban kar hi naye aavishkaar ki rah par aage badhaa jaa sakta hai!...sundar rachna!
जवाब देंहटाएंएक नया
जवाब देंहटाएंऔर अलग तरह का प्रतीक लिए
एक बहुत ही अच्छी
और पठनीय रचना
अनोखा मेल देखनेको मिला आज फिर आपकी कविता में... मनुष्य का वनस्पति के साथ सम्वाद और यह आग्रह कि दोनों मिलकर एक औषध बन सकें. एक अद्भुत दर्शन प्रस्तुत करती कविता तथा अनुकरणीय संदेश!!
जवाब देंहटाएंशीर्षक भी अच्छा है आसरा । रचना की भावना भी श्रेष्ठ। नाम तो सुना परन्तु देखी नहीं ।कहते हैं मलेरिया की रामवाण दवा होती है गिलोय । चिरायता और गिलोय ही ज्यादा कडवे होते है और उतने ही लाभ दायक । पहले इसी से बुखार की दवायें तैयार होती थी सुगर कोटेड का ज्ञान तो था नही ंतो यही कडवी दवा पीते थे ।शायद इसी लिये कहा होगा कि ’’बुरे लगत सिख के बचन हिये बिचारे आप , कडबी भेषज बिन पिये मिटे न तन की ताप ’’
जवाब देंहटाएंबिम्ब का खूबसूरत प्रयोग। गुड़िच तो अमृता है। बहुत बीमारियों के लिए रामबाण। बहुत अच्छी प्रस्तुति।
जवाब देंहटाएंसर्वस्वरूपे सर्वेशे सर्वशक्तिसमन्विते।
भयेभ्यस्त्राहि नो देवि दुर्गे देवि नमोsस्तु ते॥
विजयादशमी के पावन अवसर पर आपको और आपके परिवार के सभी सदस्यों को हार्दिक शुभकामनाएं और बधाई!
काव्यशास्त्र
masttttttt.
जवाब देंहटाएंthanks.
WWW.CHANDERKSONI.BLOGSPOT.COM
... bahut badhiyaa !
जवाब देंहटाएंआपकी रचनाओं में एक अलग अंदाज है,
जवाब देंहटाएंबहुत अच्छी प्रस्तुति। राजभाषा हिन्दी के प्रचार-प्रसार में आपका योगदान सराहनीय है।
जवाब देंहटाएंबेटी .......प्यारी सी धुन
स्वयं के अवगुणों को पहचानना प्रायः लोगों के लिए कठिन होता है. और जो पहचान लेता है वह कबीर हो जाता है. फिर वह राम रुपी नीम की तलाश में लग जाता है. और दोनों के सानिध्य से समाज के रोगों का कितना अच्छा उपचार तैयार होता है यह जग विदित है.
जवाब देंहटाएंबहुत सुन्दरता से आपने अपनी कविता में इस विचार को प्रस्तुत किया है. साधुवाद !
bahut sunder likha hai.
जवाब देंहटाएंकहते हैं,
नीम पर चढ़ी हुई गुर्च बहुत अच्छी होती है.
बोलो! क्या दोगे मुझे आसरा,
अपने चौड़े विशाल छतनार वक्षस्थल पर?
रचना जी ,
जवाब देंहटाएंये कविता में बांध कर क्या नुस्खा पेश किया है, अंत तक पहुंचाते पहुंचाते पता चला की ये तो वैद्य जी हमें कुछ सिखा रहेहैं.
इस बार मेरे नए ब्लॉग पर हैं सुनहरी यादें...
जवाब देंहटाएंएक छोटा सा प्रयास है,उम्मीद है आप जरूर बढ़ावा देंगे...
कृपया जरूर आएँ...
सुनहरी यादें ....
आओ हम दोनों मिलकर
जवाब देंहटाएंकुछ नया करें.
किसी असाध्य रोग की दवा बनें.
सम्पूर्ण कोई भी नहीं..पर एक दूसरे के पूरक तो बन सकते हैं....बहुत ही सच्चा और सुन्दर सन्देश देती रचना...
खूबसूरती से भावों को उकेरा गया , बधाई ।
जवाब देंहटाएंबहुत अच्छी लगी
जवाब देंहटाएंऔषधीय गुणों से युक्त वनस्पतियों का मिलकर असाध्य रोग की दवा बनने की अभिलाषा कविता के भाव में श्रीगुणात्मक वृद्धि कर रही है।
जवाब देंहटाएंऐसा विश्वास बहुत कम लोग जुटा पाते हैं .....
जवाब देंहटाएंये दोषारोपण न हों तो कड़वाह्टें न हों और कड़वाह्टें न हों तो हर तरफ रौशनी हो .....!!
नीम पर चढ़ी हुई गुर्च बहुत अच्छी होती है.
जवाब देंहटाएंबोलो! क्या दोगे मुझे आसरा,
अपने चौड़े विशाल छतनार वक्षस्थल पर?
adwitiye rachna
खूबसूरत बिम्बो से सजाया हें रचना को.
जवाब देंहटाएंसुंदर सन्देश देती रचना.
विस्तृत और गहरे भाव लिए अपनी कलम से तराशा हुआ एक और नगीना पढवाने के लिए आभार
जवाब देंहटाएंरचना जी प्रकृति को इतनी गहराई से समझती हैं आप कि कभी हवा, कभी पानी, कभी धुआं, कभी गुरुत्वाकर्षण बल पर नए विम्ब प्रयोग के साथ कविता रच डालती हैं.. इस बार.. प्रकृति के दो अनमोल उपहारों के बीच का संवाद प्रस्तुत कर आधुनिक समाज, मानव को प्रकृति के करीब ले जा रही हैं.. कविता अपने उद्देश्य में सफल रही है.. एक सकारात्मक चिंतन को जन्म दे रही है.. उत्कृष्ट रचना
जवाब देंहटाएंखुद की तुलना ..नीम पर चढ़ी हुई गुर्च ..से करना काफी अच्छा लगा।
जवाब देंहटाएंक्या दोगे मुझे आसरा,
जवाब देंहटाएंअपने चौड़े विशाल छतनार वक्षस्थल पर?
sunder vimb prayog.
प्रकृति के इतने नजदीकी सम्बन्ध को आपने खूबसूरती से दर्शाया...अच्छा लगा इसे पढना
जवाब देंहटाएंबहुत सुन्दर भाव और अभिव्यक्ति के साथ आपने लाजवाब रचना लिखा है जो प्रशंग्सनीय है! बधाई!
जवाब देंहटाएंrachna ji bahut hi achhi post .main monali ji ki baat se ek dam sahmat hun .meri bhi aapke baare me yahi rai hai.yah atishyokti nahi hain .vastav me aapki kalam me dam hai ,manana padegga.
जवाब देंहटाएंpoonam
अरे क्या बात कही है रचना जी ..आखिरी पंक्तियाँ तो बस आश्चर्यजनक रूप से कमाल हैं .बहुत अच्छी लगी आपकी ये रचना.
जवाब देंहटाएंगुर्च को प्रतीक बना कर कमाल की रक़्चना प्रस्तुत की है बधाई।
जवाब देंहटाएंaashaa aur vishwas ka anupam mel ,uttam kriti jisme achchhaiyo ko badi khoobsurati ke saath nichoda gaya hai .aap rachna har dafe anokhi hoti hai .
जवाब देंहटाएंकुछ टिप्पणियाँ सचमुच मन को उठा कर जाती हैं , उखड़ें हों जमीं से कितने भी , हौले से सहला जाती हैं . ये तो जबाब है आपकी दी गयी टिप्पणी के लिए ...
जवाब देंहटाएंआप ने बेल को वजूद दिया ...पेड़ की भी शोभा में चार चाँद लगे ...
किसी असाध्य रोग की दवा बनें !! ये समर्पण जनहित में बहुत कीमती है ! यही तो भारतीय संस्कृति की पहचान है ! और गिलोय को मै ढूंढ़ रही थी ! बहुत बहुत धन्यवाद !
जवाब देंहटाएंबहुत सुन्दर जी
जवाब देंहटाएंविज्ञान को रचनात्मकता से जोड़ कर बहुत प्रभावी लिखा है ..
जवाब देंहटाएंतुम्हारा असह्य कड़वापन,
जवाब देंहटाएंजो शायद तुम्हारे लिए राम बाण हो
और मेरा, दुर्बल शरीर.
मुझे चाहिए,
एक सहारा सिर्फ रोशनी पाने के लिए.
सोचती हूँ फिर क्यों न तुम्हारा ही लूँ.
अवगुण कम न कर सकूँ तो क्या,
गुण बढ़ा तो लूँ.
बहुत सुन्दर रचना बधाई!!
अंतरद्वन्द्व को बहुत स्पष्टता के साथ अभिव्यक्ति मिली है।