वृत्त
एक वृत्त जिसकी त्रिज्या परिधि और व्यास
सतत गतिशील हैं
कभी फैल जाते हैं
अनंत दिशाओं तक
कभी सिमट कर समाहित जाते हैं
केंद्र बिंदु में
ये एक चमत्कारिक और अभिमंत्रित वृत्त है
अपने ही माथे पे एक लाल वृत्त संजोये
हमारे कहे अनकहे भय समझने की अद्भुत क्षमता
हमारे विस्थापन के साथ
पल पल घटता बढ़ता
उसका वात्सल्यमय परिधि सा आंचल
हमें पुकारती परस्पर विपरीत
दिशाओं में फैली व्यास सी बाहें
कभी अपनी बाँहों में भरने को तत्पर
कभी सामने उठी हुई समान्तर त्रिज्या सी
अर्ध वृत्त बनाते हुए भी
सम्पूर्णता की परिचायक बाहें
कभी अपने अंक में भर
सम्पूर्ण वृत्त को केन्द्रीभूत कर
सत्यापित करता अपने अस्तित्व को
मैं नत मस्तक हूँ उस प्रभु के आगे
जिसने हम सब को दिया है एक ऐसा वृत्त
जो हमसे शुरू हो हम पर ही समाप्त होता है
हाँ! मैंने हर वृत्त में एक माँ को पाया है.
चित्र गूगल से साभार
सच है, वात्सल्य की कोई सीमा नहीं है।
जवाब देंहटाएंमैं नत मस्तक हूँ उस प्रभु के आगे
जवाब देंहटाएंजिसने हम सब को दिया है एक ऐसा वृत्त
जो हमसे शुरू हो हम पर ही समाप्त होता है
हाँ! मैंने हर वृत्त में एक माँ को पाया है.
Kya kamaal ka likha hai aapne! Nishabd hun!
मैं नत मस्तक हूँ उस प्रभु के आगे
जवाब देंहटाएंजिसने हम सब को दिया है एक ऐसा वृत्त
जो हमसे शुरू हो हम पर ही समाप्त होता है
बहुत सुन्दर अहसास ।
बेहतरीन प्रस्तुति ।
रेखागणित में जीवन या जीवन का रेखागणित? इस रेखागणित का अंत बहुत सुन्दर बन गया है। एक तो हर वृत में मां को पाना और एसा वृत्त देने वाले के प्रति नतमस्तक होना । उत्तम रचना
जवाब देंहटाएंjindgi ke ise ganit me sab kuchh hai pyar vatsalya. Bahoot sunder...
जवाब देंहटाएंAdbhut... aap ek dum alag tereh ki upamayein dhundh laati hain.. yehi khubsoorti h aapki kavita ki...
जवाब देंहटाएंमैं नत मस्तक हूँ उस प्रभु के आगे
जवाब देंहटाएंजिसने हम सब को दिया है एक ऐसा वृत्त
जो हमसे शुरू हो हम पर ही समाप्त होता है
हाँ! मैंने हर वृत्त में एक माँ को पाया है.
bahut sundar ,mamta ka aasra sadaiv maa me hi khojte hai tabhi maa ki chhavi jhalkti hai .
हाँ! मैंने हर वृत्त में एक माँ को पाया है.
जवाब देंहटाएंऔर हर मान में एक वृत्त ...बहुत सुन्दर ..
बहुत ही सुन्दर रचना . बधाई
जवाब देंहटाएंहाँ! मैंने हर वृत्त में एक माँ को पाया है.
जवाब देंहटाएंबहुत सुन्दर कविता है रचना जी.
वात्सल्य की परिधि, एक ऐसी परिधि है जिसमें सम्पूर्ण सृष्टि समाहित है...
जवाब देंहटाएंबहुत ही ख़ूबसूरत रचना ...
जवाब देंहटाएंअंत भावुक कर गया....
मेरे ब्लॉग पर इस बार
एक और आईडिया....
उम्दा लेखन के लिए बधाई.
जवाब देंहटाएंधन्यवाद.
WWW.CHANDERKSONI.BLOGSPOT.COM
... bahut sundar ... behatreen !
जवाब देंहटाएंलाजवाब लिखे हो मैडम जी..
जवाब देंहटाएंतस्वीर के साथ आपकी कविता का आनंद कई गुना बढ़ गया है...
इस वात्सल्य भाव के आगे नमन हैं...
बहुत ही ख़ूबसूरत कविता है..
जवाब देंहटाएं...माँ ब
कभी फैल जाते हैं
अनंत दिशाओं तक
कभी सिमट कर समाहित जाते हैं
केंद्र बिंदु में
ये एक चमत्कारिक और अभिमंत्रित वृत्त है
बहुत ही ख़ूबसूरत कविता है..माँ का वात्सल्य एक वृत्त के समान ही तो है...कभी फैलाव देता हुआ...कभी केंद्र में समाहित करता हुआ
बहुत ही सुन्दर अभिव्यक्ति !
जवाब देंहटाएंजीवन की ज्योमिती को बहुत सुंदर तरीके से व्यक्त किया है आपने.. जीवन सच मुच वृत्त ही तो है.. विज्ञान के गूढ़ विषय को सहजता से व्यक्त करती है आप.. सुंदर कविता...
जवाब देंहटाएंबहुत सुंदर रचना. गहराई में डूब कर रचना का सृजन किया है.
जवाब देंहटाएंबहुत खूब ,... प्रेम को परिधि में कहाँ बाँधा जा सका है अब तक ... अछा प्रयोग है आपका इस रचनमें ...
जवाब देंहटाएंaapne geomatrical terms ko kavita mein istemaal kiya hai....lovely experiment.
जवाब देंहटाएंBahut khoob Define kiya hai aapne Maa ko
जवाब देंहटाएंmaa ko acha likha..u maa ko kai tarah se likha gya ..par jitna pado utan kam aur yaha kuch naya mila...
जवाब देंहटाएंbadhayee
बहुत अच्छी प्रस्तुति।
जवाब देंहटाएं"मैं नत मस्तक हूँ उस प्रभु के आगे
जवाब देंहटाएंजिसने हम सब को दिया है एक ऐसा वृत्त
जो हमसे शुरू हो हम पर ही समाप्त होता है
हाँ! मैंने हर वृत्त में एक माँ को पाया है."
रचना जी ,
आपकी रचना पढ़ी वाकई नतमस्तक हूँ हर उस वृत्त पर जिसकी परिधि पर हमलोग हैं और केन्द्रक में मां जो केंद्र से परिधि तक चलायमान है.बिम्ब-योजना और शिल्प भी कविता से साक्षात्कार में मददगार है. अत्यंत सुंदर रचना के लिए बधाई.
saraahneey kruti......
जवाब देंहटाएंAabhar
कोई 'कोर-कसर' नहीं.
जवाब देंहटाएंमातृत्व असीम है. सुंदर.
जवाब देंहटाएंबढ़िया भावपूर्ण रचना ....
जवाब देंहटाएंमैं नत मस्तक हूँ उस प्रभु के आगे
जवाब देंहटाएंजिसने हम सब को दिया है एक ऐसा वृत्त
जो हमसे शुरू हो हम पर ही समाप्त होता है
माँ का वात्सल्य एक वृत्त के समान ही है!
उत्तम रचना!
चमत्कारिक और अभिमंत्रित वृत्त को प्रणाम.
जवाब देंहटाएंइस रचना को पढ़ा नहीं महसूस किया.
जवाब देंहटाएंदशहरा की ढेर सारी शुभकामनाएँ!!