वारे- न्यारे
धरती पे हम हैं भारी
और अंबर पे बदरा कारे.
अब तो अंबर भी चल रहा है,
आतंक के सहारे!!!
लूट, हत्या और फिरौती बिन,
अब वो भी हैं बेसहारे.
वाह!!! हमसे ही है सीखा
और हमारे ही वारे न्यारे.
तुम्हें किसने दी सुपारी ?
ये किसके हैं इशारे.
क्यों अगवा किये हैं तुमने
मेरे सूरज, चाँद, तारे?
छुपते फिरते हैं तुमसे
रश्मि, किरण, चांदनी बेचारे
विस्फोटकों से भरे घन ने
धरती पे घर उजाड़े
है क्या गुनाह उनका
क्यों बेगुनाह मारे?
शपथ
लौटा दो मेरा सूरज
तुम जो कहो वो करेंगे
फिरौती में जो तुम मांगो
तुम्हारे आगे वो धरेंगे
प्रकृति का अनादर
माँ! अब हम न करेंगे
लेंगे जो भी तुमसे
उसे वापस भी करेंगे.
प्रकृति को धयान में रकह्ते हुए दोनों ही सुन्दर रचनाएँ ...अच्छी लगीं
जवाब देंहटाएंबहुत गूढ़ बातें कहीं हैं । प्रकृति का अनादर , यानि जिन्दगी का खात्मा ।
जवाब देंहटाएंइतनी खूबसूरत तस्वीरें आप कहाँ से लाती हैं रचना जी ? बेहतरीन ।
Thoughtful poems...
जवाब देंहटाएंगहरी बात कही है ... प्राकृति का जब तक अनादर होगा ... तकलीफ़ बढ़ती ही जाएगी ....
जवाब देंहटाएंRachana adbhut lekhan shakti kee dhanee hai aap.......
जवाब देंहटाएंBbahut hee pyaree sarthak rachana......
Ek sandesh detee aur sath hee prakruti ko bhee
aashvasan detee ye rachana bhee asar chod
gayee.......man aur mashtik par....
Aabhar
bahut hi khubsurat rachnayein.....
जवाब देंहटाएंbadhai...
देख तेरे इस देश की हालत, क्या हो गयी भगवान।
जवाब देंहटाएं... sundar rachanaayen !!!
जवाब देंहटाएंसमसामयिक समस्याओं को प्रकृति से जोड़कर लिखी गई कविता एक अनुकरणीय संदेश देती है.
जवाब देंहटाएंरचना जी आकी विशेषता है ... बहुत गंभीर बातों को सहजता से कहना.. आप पर्यावरण जैसे गंभीर मुद्दे को भी सहजता और सरलता से काव्य में कह जाती है.. बहुत सुंदर.. खास तौर पर सूरज को लौटने वाली बात...
जवाब देंहटाएंएक अनुकरणीय संदेश देती है कविता..
जवाब देंहटाएंsapth bahut hi aham hai ,rachna laazwaab hai .
जवाब देंहटाएंलौटा दो मेरा सूरज
तुम जो कहो वो करेंगे
फिरौती में जो तुम मांगो
तुम्हारे आगे वो धरेंगे
प्रकृति का अनादर
माँ! अब हम न करेंगे
लेंगे जो भी तुमसे
उसे वापस भी करेंगे
Hmmm manama to padega prakriti ko.. ab manna na manna uski marzi.. waise jab hum kisi ko aasani se maaf nahi karte to prakriti bhala kyu lar karegi? maa h isliye shayad...
जवाब देंहटाएंबहुत नया प्रयोग है यह । अच्छा लगा ।
जवाब देंहटाएंज़बरदस्त !
जवाब देंहटाएंपढ़ कर अच्छा लगा
bahut hi khubsurat ahsaas....
जवाब देंहटाएंwww.amarjeetkaunke.blogspot.com
बहुत ही सहजता से इतनी गंभीर बात कह दी है..दोनों ही कविताएँ बहुत कुछ सोचने पर विवश करती हैं
जवाब देंहटाएंबहुत अच्छा सन्देश देती पर्करती की एहमियत समझती सुंदर रचनाएँ. आभार.
जवाब देंहटाएंवाह क्या बेहतरीन कविता... अनूठे रूप बादल के सितारे चाँद ..प्रकृति पे इस तरह से रची अद्भुत रचना..बहुत खूब.
जवाब देंहटाएंउम्दा प्रयोग...
जवाब देंहटाएंboth the poems are very beautiful !
जवाब देंहटाएंबहुत सुन्दर !
जवाब देंहटाएंबहुत अच्छी तरीके से आपने अपने भाव प्रगट किये है...
जवाब देंहटाएंliked it too much.
जवाब देंहटाएंthanks.
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वाह!!! हमसे ही है सीखा
जवाब देंहटाएंऔर हमारे ही वारे न्यारे.
तुम्हें किसने दी सुपारी ?
ये किसके हैं इशारे.
क्यों अगवा किये हैं तुमने
मेरे सूरज, चाँद, तारे?
छुपते फिरते हैं तुमसे
रश्मि, किरण, चांदनी बेचारे
वह वह क्या बात है..सुंदर अभिवयक्ति
ये किसके हैं इशारे.
जवाब देंहटाएंक्यों अगवा किये हैं तुमने
मेरे सूरज, चाँद, तारे?
छुपते फिरते हैं तुमसे
रश्मि, किरण, चांदनी बेचारे
सुन्दर और अर्थवान कविता...
किन्तु,
बहुत दिलफरेब चित्र...
ये किसकी आंखें हैं जो गहरे उतर रहीं हैं
मेरे पेरहन को हर सिरे से कुतर रहीं हैं
किसने प्रकुति को फिर ‘वही’ बना दिया ...
शपथ बहुत ही प्रभावी लगी.
जवाब देंहटाएंRachna jee,
जवाब देंहटाएंBehad samvedansheel rachna.khaskar prakriti ak anadar na karne ki sapath aik sakaratmak soch hai.