रविवार, 27 मार्च 2011

क्षणिकाएं

क्षणिकाएं  
 [1]
सीली हवा
अनवरत सिसकियों की आवाज़
अलमारी में रखी
किताबों के
जिल्द सिसक रहे थे
किताबों को माउस कुतर गए थे.
[2]
अपनी चिकनी देह पर
मेरे  चिर परिचित हाथों का
कोमल स्पर्श पाने की  जिद्द
वर्षों का अनशन
आखिर दम तोड़ ही दिया
कल मेरी कलम ने. 

[3]

अंगूठे और तर्जनी में
आजकल ठनी है
अंगूठे का स्पर्श
न मिल पाने के कारण
वो अनमनी है  
कभी घंटों का साथ
अब जन्मों की दूरी....
कम भी कैसे हो
मध्यस्थता करने वाला
कलम भी तो न रहा अब.

रविवार, 20 मार्च 2011

पिटारा

पिटारा  


रंगों का अजब फुहारा हूँ मैं.
खुशिओं का पिटारा हूँ मैं.
रह जाऊं अन्दर तो गुमसुम.
बिखर जाऊं तो नज़ारा हूँ मैं.
बढ़ जाये मन का समंदर कितना ही क्यों ना. 
उसको बांधे  इक मजबूत किनारा हूँ मैं.
बांध लूँ  दूब की पाजेब जिस पल.
मखमली गलियारा हूँ मैं.
पहनूं अनगिनत कलियों का नीला घाघरा ऐसे.
कि आसमां सारा हूँ मैं.
कभी बरसती कभी तरसती कभी बिफरती.
कुदरत का इशारा हूँ मैं.
मन में बसा लो तो शबनम.
निकालो तो शरारा हूँ मैं.
ओढ़ लूँ श्वेत चूनर तो संगेमरमर.
लाल हो जाऊं तो प्यार तुम्हारा हूँ मैं.
रंगों का अजब फुहारा हूँ मैं.
न्द्रनु सारा का सारा हूँ मै.

रविवार, 13 मार्च 2011

गो ग्रीन

गो ग्रीन
 


वो कुरिअर ब्वाय से
फूलों की डिलीवरी
तुम्हरे ऍस एम् ऍस
वो मुहब्बत भरे ई मेल
कितने पुराने ख्यालों
के हो तुम आज भी,
छोड़ो ये सब 
आ जाओ आज मेरे सामने 
थमा दो मुझे 
अपनी आँखों में लिखा 
मेरे नाम एक प्रेम पत्र 
मैं सीने से लगा उसे पढूं 
तुम मुझे नज़र भर निहारो
पूरी शाम औ रात
आओ शामिल हो जाएँ 
आज की नई धारा में 
चलो प्यार में ग्रीन हो जाएँ .

रविवार, 6 मार्च 2011

रुमाल


रुमाल
 

पुरानी फ़िल्में...
वो नायक नायिका का रूठना मनाना.    
नायिका के आंचल का उड़ना, 
नायक का उसे पकड़ना और फिर मान जाना.   
नायिका का रोना.
नायक का रुमाल निकालना,
आंसू पोंछना. 
रुमाल का कभी नायक के पास,
कभी नायिका के पास रह जाना.   
सारी उम्र उसे पास रखना.
सहेजना, प्यार करना, कभी उलाहना देना.
मैं भी तो तुम्हारे जीवन की नायिका हूँ. 
जब भी रूठी हूँ ,
उठा लाते हो कुछ पेपर नेपकिन. 
मेरे गालों के भीगने से भी पहले,
भीग जाते हैं वो, 
कहाँ सहेजूं, कैसे सहेजूं,
उन्हें दोनों हाथों के बीच गोल गोल घुमाते हो
फैंक देते हो डस्ट बिन में.
कई बार सोचती हूँ पूछूं तुमसे,
क्यों नहीं रखते हो इक रुमाल बस मेरे लिए. 
पर डरती हूँ कहीं  पूंछ न बैठो तुम,
तुम भी तो कहाँ रखती हो आंचल आज कल.

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