चारों तरफ फैला दुःख अवसाद और क्षोभ. रिश्तों पर ढ़ीली होती पकड़. अतीत के धूमिल होते पल क्षिन. वर्तमान में उन्हें एक बार फिर जी लेने की प्रबल उत्कंठा. कभी शब्दों के माध्यम से होती रचना की अभिव्यक्ति. कभी रचना के माध्यम से अभिव्यक्त होते कुछ शब्द.
... मेरे शहर में अब रफूगर नहीं मिलता.... अगर मिल भी जाए तो झरते बारूद के परिणाम चीथड़े चीथड़े अरमानों को रफू करेगा भी कैसे... बहुत मर्मस्पर्शी अभिव्यक्ति रचना जी... सादर...
गिरह खुल जाए रिश्तों की, दिल की कभी, सीवन उधड़ जाये दिल के दरों दीवार की, घर की फेंक दो, दफन कर दो, मेरे शहर में अब रफूगर मिलता नहीं. Kya baat kahee hai! Wah!
गिरह खुल जाए रिश्तों की, दिल की कभी, सीवन उधड़ जाये दिल के दरों दीवार की, घर की फेंक दो, दफन कर दो, मेरे शहर में अब रफूगर मिलता नहीं.
बहुत सुन्दर रचना... सही कहा अपने आजकल ज़िंदगी में जो उधड़ जाये उसे रफू करने वाले कहाँ रहे.. आज तो बस तोड़ने, और दफ़्न करने का ही रिवाज चल निकला है... बहुत दिनों के बाद जो दिल को छू जाये ऐसा कुछ पढ़ने को मिला.. धन्यवाद..
बहुत सुन्दर और भावपूर्ण रचना! शानदार प्रस्तुती! दुर्गा पूजा पर आपको ढेर सारी बधाइयाँ और शुभकामनायें ! मेरे नए पोस्ट पर आपका स्वागत है- http://seawave-babli.blogspot.com http://ek-jhalak-urmi-ki-kavitayen.blogspot.com/
आदरणीय रचना दीक्षित जी ..बहुत सुन्दर रचना सच में बारूद के ढेर पर ही हम बैठ गए हैं सो रहे हैं उस पर खेल रहे हैं ..राम ही बचाए बधाई आप को लाजबाब ... धन्यवाद और आभार ..अपना स्नेह और समर्थन दीजियेगा भ्रमर ५
सीवन उधड़ जाये दिल के दरों दीवार की, घर की फेंक दो, दफन कर दो, मेरे शहर में अब रफूगर मिलता नहीं.
उड़ती हैं धज्जियां अरमानों की यहां हर दिन चिथड़े कोई यहां गिनता नहीं… … … … मेरे शहर में अब रफूगर मिलता नहीं बहुत मार्मिक भाव होते हैं आपकी रचनाओं में होते हैं मेरे साथ भी ऐसे हादसे ! कहूंगा घायल की गत घायल जाने … जे कोई घायल होय …
नवरात्रि एवं दुर्गा पूजा की बधाई और शुभकामनाओं सहित -राजेन्द्र स्वर्णकार
उड़ती हैं धज्जियां अरमानों की यहां हर दिन चिथड़े कोई यहां गिनता नहीं… … … … मेरे शहर में अब रफूगर मिलता नहीं बहुत मार्मिक भाव होते हैं आपकी रचनाओं में होते हैं मेरे साथ भी ऐसे हादसे ! कहूंगा घायल की गत घायल जाने … जे कोई घायल होय …
नवरात्रि एवं दुर्गा पूजा की बधाई और शुभकामनाओं सहित -राजेन्द्र स्वर्णकार
विजया दशमी की हार्दिक शुभकामनाएं। बुराई पर अच्छाई की विजय का प्रतीक यह पर्व, सभी के जीवन में संपूर्णता लाये, यही प्रार्थना है परमपिता परमेश्वर से। नवीन सी. चतुर्वेदी
बहुत -२ बधाई जी , आपको ममस्पर्शी रचना ....सम्मान योग्य .
जवाब देंहटाएंना कोई जोड़ने वाला सब तोड़ने में लगे । विध्वंस हर तरफ । बहुत मर्मस्पर्शी अभिव्यक्ति ।
जवाब देंहटाएंसच , इस शहर में रफूगरों की बहुत ज़रुरत है ।
जवाब देंहटाएंएक और अच्छी रचना ।
दीवार तेजी से गिर रही है, कोई बनाने वाला चाहिये।
जवाब देंहटाएंखूबसूरत कविता
जवाब देंहटाएंग़ज़ल पसंद आए तो कृपया LIKE करें
यथार्थ को कहती अच्छी अभिव्यक्ति ... रफूगर जैसे कारीगर नहीं मिलते ..जो रिश्तों को सी सकें
जवाब देंहटाएंअब रफूगरों की जरुरत महसूस करने का समय भी कहाँ किसी को !!!
जवाब देंहटाएंअथ आमंत्रण आपको, आकर दें आशीष |
जवाब देंहटाएंअपनी प्रस्तुति पाइए, साथ और भी बीस ||
सोमवार
चर्चा-मंच 656
http://charchamanch.blogspot.com/
मन की वेदना व्यक्त करती एक सुंदर रचना ...
जवाब देंहटाएंबधाई!
शुभकामनाएं !
समय हो तो ... एक नज़र इधर भी
मेरे शहर में अब रफूगर मिलता नहीं.
जवाब देंहटाएंइस इक पंक्ति ने हिला कर रख दिया....निःशब्द हूं.
दिल के दरों दीवार की, घर की
जवाब देंहटाएंफेंक दोए दफन कर दो,
मेरे शहर में अब रफूगर मिलता नहीं
भावों की सुंदर अभिव्यक्ति।
आपकी किसी नयी -पुरानी पोस्ट की हल चल कल 03-10 - 2011 को यहाँ भी है
जवाब देंहटाएं...नयी पुरानी हलचल में ...किस मन से श्रृंगार करूँ मैं
सीने में जलन, आँखों में तूफान सा क्यों है,
जवाब देंहटाएंइस शहर में हर शख्स परेशाँन सा क्यों है।
सच कहा आपने रचना जी,शहर की हवाओं में भी आंच सी आती है।
... मेरे शहर में अब रफूगर नहीं मिलता....
जवाब देंहटाएंअगर मिल भी जाए तो झरते बारूद के परिणाम चीथड़े चीथड़े अरमानों को रफू करेगा भी कैसे...
बहुत मर्मस्पर्शी अभिव्यक्ति रचना जी...
सादर...
गिरह खुल जाए रिश्तों की,
जवाब देंहटाएंदिल की कभी,
सीवन उधड़ जाये
दिल के दरों दीवार की, घर की
फेंक दो, दफन कर दो,
मेरे शहर में अब रफूगर मिलता नहीं.
Kya baat kahee hai! Wah!
मेरे शहर में अब रफूगर मिलता नहीं.
जवाब देंहटाएंबहुत सुन्दर !
मेरे शहर में अब रफूगर मिलता नहीं.
जवाब देंहटाएंओह!! बहुत ही गहरी बात कह दी...
पूरी नज़्म ही कुछ सोचने को मजबूर कर देती है.
मेरे शहर में अब रफूगर मिलता नहीं
जवाब देंहटाएंक्या गज़ब पंक्ति कह दी आपने....छू गई.
मेरे शहर में अब रफूगर मिलता नहीं.
जवाब देंहटाएंबहुत ही मर्मस्पर्शी रचना
बहुत सुन्दर तथा सार्थक रचना , आभार
जवाब देंहटाएंबहुत सुन्दर तथा सार्थक रचना , आभार
जवाब देंहटाएंफिर एक बेहतरीन रचना,आभार.
जवाब देंहटाएंRACHNA JI , AAPKEE RACHNA MEIN
जवाब देंहटाएंYTHAARTH KEE ABHIVYAKTI KHOOB HAI !
MUBAARAK .
वर्तमान हालात का बहुत मार्मिक चित्रण किया है आपने अपनी रचना में.
जवाब देंहटाएंबधाई आपको.
गिरह खुल जाए रिश्तों की,
जवाब देंहटाएंदिल की कभी,
सीवन उधड़ जाये
दिल के दरों दीवार की, घर की
फेंक दो, दफन कर दो,
मेरे शहर में अब रफूगर मिलता नहीं.
बहुत सुन्दर रचना... सही कहा अपने आजकल ज़िंदगी में जो उधड़ जाये उसे रफू करने वाले कहाँ रहे.. आज तो बस तोड़ने, और दफ़्न करने का ही रिवाज चल निकला है... बहुत दिनों के बाद जो दिल को छू जाये ऐसा कुछ पढ़ने को मिला.. धन्यवाद..
यह सही है कि शहर से 'रफ़ूगर' नदारद है.
जवाब देंहटाएंसुन्दर शब्दों से सजी अच्छी रचना के लिए बधाई |
जवाब देंहटाएंआशा
एक रफूगर की कमी खलती तो है ...
जवाब देंहटाएंबढ़िया भावाभिव्यक्ति !
सचमुच आज विनाश जारी है पर निर्माण की बात कहीं कहीं ही दिखाई पडती है...दिल को छू लेने वाली रचना के लिए बधाई!
जवाब देंहटाएंशहर की मार्फ़त बेदिल निरपेक्ष ज़िन्दगी पर कटाक्ष .मार्मिक यथार्थ बुनती रचना .
जवाब देंहटाएंबहुत सुन्दर और भावपूर्ण रचना! शानदार प्रस्तुती!
जवाब देंहटाएंदुर्गा पूजा पर आपको ढेर सारी बधाइयाँ और शुभकामनायें !
मेरे नए पोस्ट पर आपका स्वागत है-
http://seawave-babli.blogspot.com
http://ek-jhalak-urmi-ki-kavitayen.blogspot.com/
वाह ...बहुत ही अच्छी अभिव्यक्ति ।
जवाब देंहटाएंमेरे शहर में अब रफूगर मिलता नहीं
जवाब देंहटाएंगज़ब की पंक्ति
लाजवाब रचना
वर्तमान व्तवस्था को प्रदर्शित करती हुई बहुत सशक्त रचना के लिए वधाई।
जवाब देंहटाएंडा० व्योम
rachna ji khud hi training lijiye rafugar banNe ki....warna baki to sab tamaashbeen hain.
जवाब देंहटाएंyatharth ki dhara par katu saty ukerti rachna.
sacchi sacchi...khari khari behtarin rachna... mere blog per bhi aapka swagat hai
जवाब देंहटाएंआदरणीय रचना दीक्षित जी ..बहुत सुन्दर रचना सच में बारूद के ढेर पर ही हम बैठ गए हैं सो रहे हैं उस पर खेल रहे हैं ..राम ही बचाए
जवाब देंहटाएंबधाई आप को लाजबाब ...
धन्यवाद और आभार ..अपना स्नेह और समर्थन दीजियेगा
भ्रमर ५
सीवन उधड़ जाये
दिल के दरों दीवार की, घर की
फेंक दो, दफन कर दो,
मेरे शहर में अब रफूगर मिलता नहीं.
मेरे शहर में अब रफूगर नहीं मिलता...
जवाब देंहटाएंवाह ! बिल्कुल ही नया अंदाज.
गिरह खुल जाए रिश्तों की,
जवाब देंहटाएंदिल की कभी,
सीवन उधड़ जाये
दिल के दरों दीवार की, घर की
फेंक दो, दफन कर दो,
मेरे शहर में अब रफूगर मिलता नहीं.
वाह शानदार
मेरे शहर में अब रफूगर मिलता नहीं.
जवाब देंहटाएंवाह क्या बेहतरीन कविता !
हृदयस्पर्शी , सार्थक रचना
जवाब देंहटाएं♥
जवाब देंहटाएंआदरणीया रचना दीक्षित जी
सादर सस्नेहाभिवादन !
उड़ती हैं धज्जियां अरमानों की यहां हर दिन
चिथड़े कोई यहां गिनता नहीं…
… …
… मेरे शहर में अब रफूगर मिलता नहीं
बहुत मार्मिक भाव होते हैं आपकी रचनाओं में
होते हैं मेरे साथ भी ऐसे हादसे !
कहूंगा घायल की गत घायल जाने … जे कोई घायल होय …
नवरात्रि एवं दुर्गा पूजा की बधाई और शुभकामनाओं सहित
-राजेन्द्र स्वर्णकार
♥
जवाब देंहटाएंआदरणीया रचना दीक्षित जी
सादर सस्नेहाभिवादन !
उड़ती हैं धज्जियां अरमानों की यहां हर दिन
चिथड़े कोई यहां गिनता नहीं…
… …
… मेरे शहर में अब रफूगर मिलता नहीं
बहुत मार्मिक भाव होते हैं आपकी रचनाओं में
होते हैं मेरे साथ भी ऐसे हादसे !
कहूंगा घायल की गत घायल जाने … जे कोई घायल होय …
नवरात्रि एवं दुर्गा पूजा की बधाई और शुभकामनाओं सहित
-राजेन्द्र स्वर्णकार
सच में अब रफूगर कहाँ मिलते हैं..बहुत मार्मिक प्रस्तुति...आभार
जवाब देंहटाएंसुंदर अभिव्यक्ति है ।बहुत ही गहरी ..
जवाब देंहटाएंगहन अभिव्यक्ति ...हृदयस्पर्शी
जवाब देंहटाएंबहुत बढ़िया शब्द चुने..बधाई
जवाब देंहटाएंबहुत खूब ... अब रफूगर नहीं मिलते ... सच है शब्दों का बारूद उगलना ठीक नहीं ...
जवाब देंहटाएंविजया दशमी की हार्दिक शुभकामनाएं। बुराई पर अच्छाई की विजय का प्रतीक यह पर्व, सभी के जीवन में संपूर्णता लाये, यही प्रार्थना है परमपिता परमेश्वर से।
जवाब देंहटाएंनवीन सी. चतुर्वेदी
विजयदशमी की आपको और आपके परिवार को भी हार्दिक शुभकामनायें,रचना जी.
जवाब देंहटाएंविजयादशमी पर आपको सपरिवार हार्दिक शुभकामनाएं।
जवाब देंहटाएंआपको एवं आपके परिवार को दशहरे की हार्दिक बधाइयाँ एवं शुभकामनायें !
जवाब देंहटाएंमेरे शहर में अब रफूगर मिलता नहीं....
जवाब देंहटाएंपता नहीं क्यूँ जिंदगी यूँ ही पैबंद लगी होती जा रही है और जीवन्तता गुम हो गयी है कहीं....
..मेरे शहर में अब रफूगर मिलता नहीं.
जवाब देंहटाएं..वाह!
भावों की सुंदर अभिव्यक्ति!
जवाब देंहटाएं