अभिशप्त
मैं चाँद हूँ
दागदार हूँ
अनिश्चितता मेरी पहचान है
कभी घटता कभी बढ़ता
कभी गुम कभी हाज़िर
मैं सूरज की तरह
चमकता नहीं
पर उसकी तरह
अकेला भी नहीं
मेरे साथ हैं अनगिनत
सितारों की चादर
मेरे न होने पर भी
टिमटिमाते हैं तारे
आने वाली है दीपावली
घुटने लगा हूँ
फिर एक बार
पूरी धरती जगमगाएगी
राम के स्वागत में नज़र आएगी
नहीं देख पाया
एक भी दीपावली
आज तक
हाँ
मैं एक दीपावली
के इंतज़ार में
अमावस का
अभिशप्त चाँद हूँ
आपकी लिखी रचना "पांच लिंकों का आनन्द में" सोमवार 09 नवम्बबर 2015 को लिंक की जाएगी............... http://halchalwith5links.blogspot.in पर आप भी आइएगा ....धन्यवाद!
जवाब देंहटाएंधन्यवाद यशोदा जी.
हटाएंअभिशप्त ? नहीं, चाँद तो दाता है दीवाली का..गर वह छुपे न तो दीवाली कैसे मने..और देने वाला तो सदा बड़ा होता है न..चाँद तो मन की तरह है और आत्मा सूरज की तरह..आत्मा सदा अकेला है पर मन हजारों विचारों के साथ..पर मन न हो आत्मा की शक्ति व्यक्त कैसे होगी...
जवाब देंहटाएंबहुत ही भावपूर्ण प्रस्तुति। धन्यवाद रचनाजी।
जवाब देंहटाएंअभिसप्त होते हुए भी लोगों की ख़ुशी में अपनी ख़ुशी ढूंढ़ लेता हूँ - वाह
जवाब देंहटाएंचांद की अपनी महिमा है, वो दिपावली नही देख सकता लेकिन फिर भी वो अभिक्षिप्त नही हो सकता। बढिया प्रस्तुती...
जवाब देंहटाएंजी हाँ , चाँद की अपनी महिमा है।
जवाब देंहटाएंबहुत उम्दा , शुभकामनाएं
जवाब देंहटाएंसुन्दर और भावपूर्ण। दीप पर्व की शुभकामनाएँ।
जवाब देंहटाएंदीदी आपका ब्लॉग बहुत अच्छा लगा अतः मैं इसका सदस्य बन गया। अगर मेरा ब्लॉग भी आपको पसंद ए तो कृपया सदस्य बनें।
जवाब देंहटाएंबहुत दिनों के बाद अच्छी रचना पढ़ने को मिली
जवाब देंहटाएंबधाई सुंदर सृजन के लिए
oh no ....
जवाब देंहटाएंमंगलकामनाएं आपको !
काश ऐसी भी किस्मत न हो किसी के ... लाजवाब गहरी सोच ...
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