इज़हारे- ख़याल
ये उम्र अपनी इतनी भी कम न थी,
अपनों को ढूंढने में गुजार दी दोस्तों.
पांव में छाले पड़े है इस कदर,
अपनों में, अपने को खो दिया दोस्तों.
कसमें वादों पे न रहा यकीं अब हमें,
बंद आँखों से सच को टटोलते हैं दोस्तों.
वो इश्क वो चाँद तारे जमीं पर,
सब किताबों की बाते है दोस्तों.
इस कदर मुफलिसी में कटी है जिंदगी,
इश्क कुबूल करने को, झोली उधार ली दोस्तों.
वो सिक्के सारी उम्र जोड़े थे हमने,
उनका चलन बंद हो गया दोस्तों.
यूँ तो जीने की चाहत बहुत है हमें,
पर अपनों ने तड़पाया बहुत दोस्तों.
वक्त आखिरी है ये जानते है हम,
इसलिए सबसे मुखातिब हैं दोस्तों.
कातिल करीब था खंजर लिए हुए,
शायद खंज़र में धार कम थी दोस्तों.
मेरी लाश के कांधों पर मेरा सर रख दो,
एक कांधे को सारी उम्र तरसी हूँ दोस्तों.
कफ़न मेरा, मुझे मिले, न मिले,
मेरे अपने सलामत रहें दोस्तों.
मेरी कब्र के बाहर मेरा हाथ रखकर,
वो गया कोई मेरा हमसफर दोस्तों.
ये उम्र अपनी इतनी भी कम न थी,
अपनों को ढूंढने में गुजार दी दोस्तों.
हर शेर लाजवाब है १
जवाब देंहटाएंbahut sundar
जवाब देंहटाएंधन्यवाद शास्त्री जी मेरी पोस्ट को स्थान देने के लिए
जवाब देंहटाएंकफ़न मेरा मुझे मिले न मिले ,
जवाब देंहटाएंमेरे अपने सलामत रहे दोस्तों...
बहुत सुन्दर अभिव्यक्ति, रचना जी....
lajavab gazal ..
जवाब देंहटाएंबढ़िया !
जवाब देंहटाएंउम्र जरूर गुज़ार दी अपनों को ढूँढने में पर आज अपने कहाँ मिलते हैं ... स्वार्थ में लिपटे इंसान मिलते हैं ...
जवाब देंहटाएंबहुत उम्दा सच लिखा है ...
बहुत उम्दा … वाह
जवाब देंहटाएंलाजवाब
जवाब देंहटाएंBahut khoob.
जवाब देंहटाएंबहुत खूब लिखा आपने.....
जवाब देंहटाएंदिल को छूँ लेने वाले शब्द
जवाब देंहटाएंबढ़िया
जवाब देंहटाएंदिल को गहराई तक छू गयी आपकी यह रचना ! बहुत डूब कर लिखा है आपने !
जवाब देंहटाएंबहुत ख़ूब
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