दस्तक
रोती बिलखती हर गली मोहल्ले में,
सांकल अपना पुराना घर ढूंढती है.
सजी थी कभी मांग में जिसकी,
वो चौखट वो दीवार ओ दर ढूंढती है.
डाले बांहों में बांहे, किवाड़े किवडियाँ,
आज भी अपना वो घर ढूंढती हैं.
जहाँ छत ओ मुंडेरें थी सखी सहेली,
आंगन पनाले वाला घर ढूंढती हैं.
छोटे ओ गहरे घरों की लंबी कतारे,
अपना पुराना शहर ढूंढती हैं.
थकी हारी टूटी हुई दस्तक,
खुले दरों वाला घर, शहर ढूंढती है.
बहुत खूब!
जवाब देंहटाएंदस्तक सुनाई पड़ी, खोज पूरी हुई!
वाह बहुत बढिया...
जवाब देंहटाएंबहुत खूब .. वो सांकल वो कुण्डी अब कहां होती हैं घरों में ...
जवाब देंहटाएंदर भी नहीं खुले रहते आज ...
मन की भाव लिखे हैं .... लाजवाब ...
वाह !!! बहुत सुंदर उम्दा प्रस्तुति ,,,
जवाब देंहटाएंRECENT POST : जिन्दगी.
वाह !!! बहुत सुंदर उम्दा प्रस्तुति ,,,
जवाब देंहटाएंRECENT POST : जिन्दगी.
वाह ! बहुत सुंदर प्रस्तुति !
जवाब देंहटाएंlatest post नेताजी सुनिए !!!
latest post: भ्रष्टाचार और अपराध पोषित भारत!!
बहुत सुन्दर.....
जवाब देंहटाएंथकी हारी दस्तक को दर मिलेगा ज़रूर....
सादर
अनु
इस सच्चाई पर कमेंट क्या करूँ
जवाब देंहटाएंसादर
गहरी अभिव्यक्ति
जवाब देंहटाएंसब कुछ पराया सा हो गया है .... बहुत गहन अभिव्यक्ति ।
जवाब देंहटाएंसमय के साथ साथ सब बदल जाता है..सांकल भी अब बेगानी हुई..
जवाब देंहटाएंDEEP HEART TOUCHING EMOTIONS AND FEELINGS
जवाब देंहटाएंथकी हारी टूटी हुई दस्तक,
जवाब देंहटाएंखुले दरों वाला घर, शहर ढूंढती है.
Kya gazab kee rachana hai....!Wah!
इस टिप्पणी को लेखक द्वारा हटा दिया गया है.
जवाब देंहटाएंबहुत सुंदर रचना.... रचना जी !
जवाब देंहटाएंशायद हर दिल इसी तरह... अपने दिल की धड़कन ढूँढता है...
गहरी अभिव्यक्ति..... बहुत सुंदर
जवाब देंहटाएंवाकई हर दस्तक खुले दर वाले घर शहर ढूंढती है
जवाब देंहटाएंबेहतरीन रचना. वाकई बहुत कुछ बदल चुका है.
जवाब देंहटाएंसांकल अपना पुराना घर ढूंढ़ती है ...
सजी थी कभी मांग में जिसकी
वो चौखट वो दीवार-ओ-दर ढूंढ़ती है ...
वाऽहऽऽ… !आदरणीया रंजना जी !
कविता का मूल स्वर मार्मिक है ।
आपकी रचना से कुछ पंक्तियां याद हो आईं -
कुछ ऐसे बंधन होते हैं जो बिन बांधे बंध जाते हैं
जो बिन बांधे बंध जाते हैं वो जीवन भर तड़पाते हैं
कुछ ऐसे बंधन होते हैं
जाने ये कैसा नाता है जो बिन जोड़े जुड़ जाता है
इक दिन मन का पागल पंछी बिन पंख लगे उड़ जाता है
सूरज छूने की कोशिश में पंछी के पर जल जाते हैं
कुछ ऐसे बंधन होते हैं जो बिन बांधे बंध जाते हैं
:)
हार्दिक बधाई और शुभकामनाएं !
-राजेन्द्र स्वर्णकार
वाह, बहुत खूब, बेहतरीन रचना।
जवाब देंहटाएंबहुत ही अच्छी रचना ....सुंदर प्रस्तुतिकरन!थोड़ी मार्मिक कटु सत्य युक्त रचना |
जवाब देंहटाएंनई पोस्ट-“प्रेम ...प्रेम ...प्रेम बस प्रेम रह जाता हैं|”
लाजवाब रचना...बहुत बहुत बधाई...
जवाब देंहटाएंprabhavshali kavita
जवाब देंहटाएंवाह .... बेहतरीन
जवाब देंहटाएंसुन्दर ,सरल और प्रभाबशाली रचना। बधाई। कभी यहाँ भी पधारें।
जवाब देंहटाएंसादर मदन
http://saxenamadanmohan1969.blogspot.in/
http://saxenamadanmohan.blogspot.in/
बहुत सुन्दर रचना @ हिंदी ब्लॉगर्स चौपाल {चर्चामंच} के शुभारंभ पर आप को आमंत्रित किया जाता है। कृपया पधारें आपके विचार मेरे लिए "अमोल" होंगें | आपके नकारत्मक व सकारत्मक विचारों का स्वागत किया जायेगा |
जवाब देंहटाएंबहुत खूब ... भावमय
जवाब देंहटाएंबहुत सुंदर
जवाब देंहटाएंबहुत सुंदर
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