करवा चौथ
इस करवा चौथ
नहीं महसूस हुई तुम्हारी कमी
एक रात पहले ही भर जो लिए थे
बहुत से टिमटिमाते तारे आँखों में
न भूख, न प्यास,
न व्यथा, न प्रतीक्षा.
महसूस करती रही
हर टिमटिमाते तारे में तुम्हें
दिन भर जगमगाती रही
उसी प्रकाश में मैं
तारों ने भी अच्छी दोस्ती
कर ली थी एक दूसरे से
जानते हो फिर क्या हुआ
शाम होते ही एक दूसरे का हाथ थाम
आपस में मिल गए सब
और मेरे लिए मात्र मेरे लिए
बना दिया एक बड़ा सा चाँद
फिर क्या था
भरपूर निहारा उसे, पूजा उसे,
गले से लगाया उसे
अब आसमान में चाँद
निकले न निकले...