चारों तरफ फैला दुःख अवसाद और क्षोभ. रिश्तों पर ढ़ीली होती पकड़. अतीत के धूमिल होते पल क्षिन. वर्तमान में उन्हें एक बार फिर जी लेने की प्रबल उत्कंठा. कभी शब्दों के माध्यम से होती रचना की अभिव्यक्ति. कभी रचना के माध्यम से अभिव्यक्त होते कुछ शब्द.
रविवार, 13 नवंबर 2011
रविवार, 6 नवंबर 2011
चाँद
चाँद
इस करवा चौथ
मैंने भी व्रत रखा
मैंने भी व्रत रखा
निर्जला औरों की तरह.
रात सबने चाँद को पूजा
रात सबने चाँद को पूजा
और चली गयीं
अपने अपने चाँद के साथ
अपने अपने चाँद के पास.
अकेला रह गया
आस्मां का वह चाँद और
मैं...
मैंने उसे बुलाया
अपनी दोनों हथेलियों के बीच
कस कर उसे भींचा
दोहरा किया और छुपा लिया
तकिये के नीचे.
सोने की नाकाम कोशिश
पर न जाने कब
चाँद सरक गया
रह गयी तो बस
गीली हथेलियाँ और तकिया.
नहीं जानती
मेरी आँखों के समंदर में
सैलाब आया था
या रात चाँद बहुत रोया था
हाँ पर सूरज
जरुर मुस्कुरा रहा था.
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