लक्ष्मण रेखा
मेरे लक्ष्मण मस्तिष्क ने
मेरे चहुँ ओर
खींच रखे हैं
कुछ रंगीन टेढ़े - मेढ़े से घेरे.
मेरे रावण मन की
लोलुप निगाहों ने
बार बार प्रलोभन भी दिया.
शायद, मैं
लखन के घर की कैद
से बाहर आ भी गई होती.
पर दशानन मन के
अस्फुट संवाद
घुलने लगे कानों में.
कौन बचायेगा इन्हें
राम...................???
आज के युग की
लुप्तप्राय प्रजाति !!!
कभी मन में
राम बसा करते थे
पर अब सिर्फ मैं !!!
एक मौन अट्टहास
गुंजायमान कर गया
दसों दिशाओं को
कंपायमान हो उठा
रोम रोम
मेरी अंतर्निहित रघुबर भावनाएं
एक बार फिर हतोत्साहित हो उठी.
सच ही तो है,
आज
भावनाओ के लिए
जगह ही कहाँ है...???
और सीता....!!!!
कहीं अगर कोई होगी भी वो
तो कहीं वनवास, कहीं अग्निपरीक्षा दे
राख का ढेर हो चुकी होगी.
मैं अपनी लक्ष्मण रेखाओं
के घेरे मे खुश हूँ.
मै जान चुकी हूँ
मन मस्त्षिक और भावनाओं
की जंग मे
मस्तिष्क की रेखाओं
के पास ही है
सुरक्षाकवच.
आज के युग की
जवाब देंहटाएंलुप्तप्राय प्रजाति !!!
अच्छा ही हुआ जो लुप्त हो गई अन्यथा ना जाने कितनी और सीताओं की अग्निपरीक्षा लेते
एक सांस में पढता गया , बहुत बढ़िया बन पड़ी है कविता ।
जवाब देंहटाएं"पुरातन सन्दर्भों का बेहतरीन उपयोग;सामयिक भी"
जवाब देंहटाएंऔर सीता....!!!!
जवाब देंहटाएंकहीं अगर कोई होगी भी वो
तो कहीं वनवास, कहीं अग्निपरीक्षा दे
राख का ढेर हो चुकी होगी.
Kitna saty hai!
इस रचना पर " रचना " को वाह...
जवाब देंहटाएंबहुत सुन्दर अभिव्यक्ति.....सारे रूपक सटीक..
सीता के रूप में नारी अग्निपरीक्षा ही देती आई है...
अच्छा है मस्तिष्क की रेखाओं से बाँध रखा है मन और भावनाएं..
waah rachna ji kya khub kaha hai aapne...
जवाब देंहटाएंbahut khub....
aur haan ....
जवाब देंहटाएंmere blog ka bhi kabhi rukh karein......
बहुत सुन्दर अभिनव उपमाएं ली हुई कविता ..
जवाब देंहटाएंकविता दिल को छू जाती है. बदलते युग सन्दर्भ मे लक्ष्मण रेखा नारी को खुद ही खीचनी होगी क्योकि खतरा राम से भी है और रावन से भी.
जवाब देंहटाएंसार्थल लेखन को बढावा दे और ऊल जुलूल पोस्टो पर प्रतिक्रिया से बचे.
सादर
हरि शर्मा
http://hariprasadsharma.blogspot.com/
http://koideewanakahatahai.blogspot.com/
http://sharatkenaareecharitra.blogspot.com
उम्दा प्रस्तुती ,सराहनीय /
जवाब देंहटाएंwaah adbhut...laksman raavan sab hai raam hi vilupt ho gaye...
जवाब देंहटाएंVery Good......
जवाब देंहटाएंसच ही तो है,
जवाब देंहटाएंआज
भावनाओ के लिए
जगह ही कहाँ है...???
और सीता....!!!!
कहीं अगर कोई होगी भी वो
तो कहीं वनवास, कहीं अग्निपरीक्षा दे
राख का ढेर हो चुकी होगी.
लाजवाब पंक्तियाँ .......पूर्ण रचना बहुत ही बेहतरीन .
Laxman rekha ki kaid me rehna hi shreyaskar hai...sundar kavita
जवाब देंहटाएं"कौन बचायेगा इन्हें
जवाब देंहटाएंराम...................???
आज के युग की
लुप्तप्राय प्रजाति"
waah kya prwaah tha bhaavnaao ka...
sahi kaha ji!
dilip bhai se sahmat...
kunwar ji,
नमस्कार॥
जवाब देंहटाएंमन में राम बसे हैं सबके,
मर्यादा लक्ष्मण रेखा है॥
जिसने भी ये रेखा लांघी,
उसने इक रावण देखा है॥
सुन्दर कविता...
दीपक शुक्ल...
Raamaayan ke paatron ko rachna ka mool bana kar .. bahut hi gahri rachna hai ...
जवाब देंहटाएं"मैं अपनी लक्ष्मण रेखाओं के घेरे मे खुश हूँ.
जवाब देंहटाएंमै जान चुकी हूँ मन मस्त्षिक और भावनाओं की जंग मे मस्तिष्क की रेखाओं के पास ही है सुरक्षाकवच."
puri kavita badhiy bahi hain.. sabhi paatron se ek naya vimb ban raha hai... aur anitm panktiya naari man ke samarpan bhav ko sudridh karti hui... aapki anya rachaaon ke tarah hi sasakt !
आपकी रचनाएँ स्तरीय व साहित्यिक निधि हैं । अन्तर्द्वन्द व अन्तरसंवाद की उत्कृष्ट अभिव्यक्ति ।
जवाब देंहटाएंबहुत खूब । भावनाओं की अत्यंत खूबसूरत अभिव्यक्ति ।
जवाब देंहटाएंबेशक , आपकी रचनाओं का ज़वाब नहीं जी ।
और सीता....!!!!
जवाब देंहटाएंकहीं अगर कोई होगी भी वो
तो कहीं वनवास, कहीं अग्निपरीक्षा दे
राख का ढेर हो चुकी होगी.
..... ....भावपूर्ण यथार्थ चित्रण के लिए लिए बहुत धन्यवाद...
सुंदर रचना के लिए फिर से बधाई
जवाब देंहटाएंअब समय आ रहा है जब यह स्थिति बदल सकती है। सबको साझा प्रयास करना होगा। ऐसी ही जागरूक करने वाली कविता लिखॆं। यथास्थितिवाद अब पुरानी बात हो गयी है।
जवाब देंहटाएंमन में रावण...
जवाब देंहटाएंमन सुनता दशानन मन की बात...!
मै जान चुकी हूँ
जवाब देंहटाएंमन मस्त्षिक और भावनाओं
की जंग मे
मस्तिष्क की रेखाओं
के पास ही है
सुरक्षाकवच.
बहुत सुन्दर कविता. कमाल की उपमाएं.
बहुत सुन्दर अभिव्यक्ति है, सारे रूपक का सटीक प्रयोग किया है।
जवाब देंहटाएंye aaj ki ourt ki hi abhivykti ho skti hai jo khul ke bolti hai .apni asmita ko bchaye our bnaye rkhne ke liye aisi hi soch apekshit hai
जवाब देंहटाएं-----------------------------------
जवाब देंहटाएंmere blog par meri nayi kavita,
हाँ मुसलमान हूँ मैं.....
jaroor aayein...
aapki pratikriya ka intzaar rahega...
regards..
http://i555.blogspot.com/
अरुणेश मिश्र ने bahut sahi कहा…
जवाब देंहटाएं" आपकी रचनाएँ स्तरीय व साहित्यिक निधि हैं । अन्तर्द्वन्द व अन्तरसंवाद की उत्कृष्ट अभिव्यक्ति ।
बेहतरीन प्रस्तुति।
जवाब देंहटाएंबहुत सुन्दर भाव और अभिव्यक्ति के साथ आपने शानदार रचना लिखा है! बधाई!
जवाब देंहटाएंसच ही तो है,आज भावनाओ के लिए जगह ही कहाँ है...???और सीता....!!!!कहीं अगर कोई होगी भी वोतो कहीं वनवास, कहीं अग्निपरीक्षा देराख का ढेर हो चुकी होगी.....सुंदर भाव
जवाब देंहटाएंरचना जी आज ये युग की रामायण की एक झलकी प्रस्तुत की आपने आज की सच्चाई यही हैं बहुत सुंदर भावपूर्ण रचना पढ़ने को मिला...बहुत बहुत धन्यवाद...
आपकी यह रचना मंगलवार की चर्चा में शामिल की है चर्चा मंच पर ....शुक्रिया
जवाब देंहटाएंnice poetry
जवाब देंहटाएंमै जान चुकी हूँ
जवाब देंहटाएंमन मस्त्षिक और भावनाओं
की जंग मे
मस्तिष्क की रेखाओं
के पास ही है
सुरक्षाकवच.
behtrin upma hai jo rachna ki sundarata badha gayi .abhi bahar hoon is karan nahi baith pa rahi .
लक्ष्मण मस्तिष्क
जवाब देंहटाएंरावण मन
राम...................???
लुप्तप्राय प्रजाति !!!
और सीता....!!!!
राख का ढेर हो चुकी होगी.
मैं अपनी लक्ष्मण रेखाओं
के घेरे मे खुश हूँ.
मै जान चुकी हूँ
मन मस्त्षिक और भावनाओं
की जंग मे
मस्तिष्क की रेखाओं
के पास ही है
सुरक्षाकवच.
Nice depiction
सच ही तो है,
जवाब देंहटाएंआज
भावनाओ के लिए
जगह ही कहाँ है...???
अक्षरशः सत्य रचना जी.... आज के समय में भावनाओं के लिए कोई जगह नहीं है. भावुकता तो बस कोरा पागलपन है