जलकुम्भी
सड़क के किनारे
कच्ची मिटटी में
ठहरे पानी और नमी में
फैली ऐ जलकुम्भी !
पसर जाओ, मेरी आँखों में भी.
फैलाओ
हरियाली का छद्मावरण.
सोख लो नमी.
इसके पहले कि इन आँखों से,
सीली दीवारों से झरती
चूने की पपड़ी की तरह,
वो सब कुछ झर जाये,
जिसे बस अपने तक ही,
सीमित रखने का प्रण लिया था कभी,
और दिखने लगे
पपड़ी झरने के बाद के,
वो बदनुमा धब्बे.
न होने दो अहसास किसी को
यहाँ भी कभी यौवन से परिपूर्ण पर्यावरण था.
जो लांछन, दोषारोपण और छिद्रान्वेषण
के प्रदूषण के चलते.
सूख कर,
खारे पानी की,
चंद बूंदों में सिमट कर रह गया है.
बहुत अच्छी लगी यह कविता....
जवाब देंहटाएंवाह , यौवन और हरियाली !
जवाब देंहटाएंपढ़कर दिल बाग़ बाग़ हो गया ।
सुन्दर ।
वाह! बहुत खूब ...!
जवाब देंहटाएंगहरे भावों की अभिव्यक्ति
Hi..
जवाब देंहटाएंAankhon main Jalkumbhi ka chhdmavaran..
Nami bhale saari har le..
Par aankhon ke sapne aakhir..jalkumbhi se nahi chhipen..
Rachna ji ki rachna adwiteeya hai..
Shubhkamnayen..
DEEPAK..
"न होने दो अहसास किसी को
जवाब देंहटाएंयहाँ भी कभी यौवन से परिपूर्ण पर्यावरण था.
जो लांछन, दोषारोपण और छिद्रान्वेषण
के प्रदूषण के चलते.
सूख कर,
खारे पानी की,
चंद बूंदों में सिमट कर रह गया है."
कहाँ से शुरू कहाँ पर ख़त्म - गहरा संदेश - आभार
पसर जाओ, मेरी आँखों में भी.
जवाब देंहटाएंफैलाओ
हरियाली का छद्मावरण.
bahut achhi lagi
jwalant mudda uthaya...vidhva dharti ab bas marne ko hi hai...
जवाब देंहटाएंहरियाली का छद्मावरण.
जवाब देंहटाएंसोख लो नमी.!!!
छद्म आवरण की पहचान करती हुई यह कविता अपने आप में बेजोड़ है !शुभ कामनाएं !
bahut khoob......shayad ham sab ko is jalkumbhi ki zaroorat hai
जवाब देंहटाएंन होने दो अहसास किसी को
जवाब देंहटाएंयहाँ भी कभी यौवन से परिपूर्ण पर्यावरण था.
जो लांछन, दोषारोपण और छिद्रान्वेषण
के प्रदूषण के चलते.
यथार्थ को कितने सुन्दर शब्दों में बाँधा है...बहुत खूब...जलकुम्भी से तुलना ...अद्भुत...बहुत पसंद आई आपकी रचना
bahut sunder kavita... hum sab jalkumbhi hi to hai... jiwan thehre paani ki tarah ho gaya hai...
जवाब देंहटाएंपसर जाओ, मेरी आँखों में भी.
जवाब देंहटाएंफैलाओ
हरियाली का छद्मावरण.
सोख लो नमी.
क्षद्म हरीतिमा के बाद का सूखापन
जलकुम्भी का चरित्र ही कुछ ऐसा ही है
सुन्दर रचना
क्या कविता लिख दी रचना जी ,छिद्रान्वेषण का तो जवाब नहीं
जवाब देंहटाएंसीधे दिल को छू गयी
--
www.sahitya.merasamast.com
अरे! कमाल है! क्या कह गईं आप??
जवाब देंहटाएंअपने नाम 'रचना' को परिपूर्णता देती है आपकी रचनाये. बहुत अच्छी लगी जल कुम्भी की तुलना. दिल को छू गयी आपकी रचना. बधाई.
जवाब देंहटाएंसीली दीवारों से झरती
जवाब देंहटाएंचूने की पपड़ी की तरह,
वो सब कुछ झर जाये,
जिसे बस अपने तक ही,
सीमित रखने का प्रण लिया था कभी,
यहाँ भी कभी यौवन से परिपूर्ण पर्यावरण था.
जो लांछन, दोषारोपण और छिद्रान्वेषण
के प्रदूषण के चलते.
सूख कर,
खारे पानी की,
चंद बूंदों में सिमट कर रह गया है.
बहुत सुन्दर अभिव्यक्ति..आक्रोश भी, प्रतिवाद भी ,उपालंभ भी
बहुत उम्दा रचना.
जवाब देंहटाएंमजा आ गया.
ना एहसास होने दो किसी को ..
जवाब देंहटाएंलांछन , दोषारोपण, छिद्रान्वेषण के चलते ...
खारे पानी की बूंदों में सिमट गया है ...
पसर जाओ जलकुम्भी मेरी आँखों में
हरियाली के छद्म आवरण में ...
मन को भीतर तक छो गयी ...
बहुत ही सुन्दर कविता ...सेव कर लिया है पेज ही ...बहुत बढ़िया ...!!
BAHUT KHUB
जवाब देंहटाएंBADHAI AAP KO IS KE LIYE
वाह!
जवाब देंहटाएंकही से कुछ भी सोचे कवी-मन,
वहीँ से भाव बहने लगेंगे शब्द बन,
बहुत बढ़िया जी,
कुंवर जी,
सीमित रखने का प्रण लिया था कभी,
जवाब देंहटाएंऔर दिखने लगे
पपड़ी झरने के बाद के,
वो बदनुमा धब्बे.
न होने दो अहसास किसी को
यहाँ भी कभी यौवन से परिपूर्ण पर्यावरण था.
बहुत ही गहरी संवेदना है,इन पंक्तियों में...सोचने को मजबूर करती रचना
जो लांछन, दोषारोपण और छिद्रान्वेषण
जवाब देंहटाएंके प्रदूषण के चलते.
सूख कर,
खारे पानी की,
चंद बूंदों में सिमट कर रह गया है.
बहुत खूब .....
रचना जी जल कुभी की तस्वीर देख हमें आज पता चला इसे जलकुम्भी कहते हैं ...चलिए तस्वीर लगाने का ये फायदा तो हुआ .....
और आज क्या बात है ये उदासी क्यों ......
रचना बहुत ही अच्छी है .....
गहरे भावों की अभिव्यक्ति
जवाब देंहटाएंbahut sundar abhivykti .
जवाब देंहटाएंRachnaki ati utkrusht rachna!
जवाब देंहटाएंनयनों के खारे जल की एक अनोखी व्यख्या प्रस्तुत की है आपने... जलकुम्भी से किया गया आग्रह सीता की अग्निपरीक्षा की व्यथा का वर्णन करता है...बहुत सुंदर!!
जवाब देंहटाएंवाह! यह कविता तो बहुत अच्छी है..जलकुम्भी का बिम्ब, कविता के भाव से इतना सटीक बैठ रहा है कि क्या कहने..ओह, हरियाली का छद्मावरण भी कितना जरूरी होता है जीवन में..!
जवाब देंहटाएं--बहुत-बहुत बधाई.
एक कवि ह्रदय द्वारा दर्द की सुंदर अभिव्यक्ति !
जवाब देंहटाएंBAHUT KHUB...APKI RACHNA BHI AUR AKPE APNE BARE ME LIKHA VAKTAVYA BHI.
जवाब देंहटाएंaapki rachna ki baat hi anokhi hai har baar naye andaaz me ,bha gayi tapti garmi me ye sheetalata pradan karti hui rachna .
जवाब देंहटाएंरचना जी,
जवाब देंहटाएंनमस्ते!
आपकी पोस्ट पढ़ के कई बार मोडर्न आर्ट की फीलिंग आती है!
आपको पता है, मेरी समझ भी कम है, कविता भी कम ही समझ आती है!
हा हा हा
साधुवाद!
जल कुंभी के माध्यम से गहरी बात कह दी है आपने ...
जवाब देंहटाएं"न होने दो अहसास किसी को
जवाब देंहटाएंयहाँ भी कभी यौवन से परिपूर्ण पर्यावरण था.
जो लांछन, दोषारोपण और छिद्रान्वेषण
के प्रदूषण के चलते.
सूख कर,
खारे पानी की,
चंद बूंदों में सिमट कर रह गया है."
आपके लेखन का जवाब नहीं ...इतने गहरे भाव और सबसे जुदा अंदाज -ए-बयां ..माँ सरस्वती का आशीर्वाद है
यहाँ भी कभी यौवन से परिपूर्ण पर्यावरण था.
जवाब देंहटाएंजो लांछन, दोषारोपण और छिद्रान्वेषण
के प्रदूषण के चलते.
सूख कर,
खारे पानी की,
चंद बूंदों में सिमट कर रह गया है.
क्या खूब प्रतीक गढ़ दिए आपने.........!
कुछ भी कह पाने में असमर्थ हूँ......!
सीली दीवारों से झरती
जवाब देंहटाएंचूने की पपड़ी की तरह,
वो सब कुछ झर जाये,
जिसे बस अपने तक ही,
सीमित रखने का प्रण लिया था कभी,
यहाँ भी कभी यौवन से परिपूर्ण पर्यावरण था.
जो लांछन, दोषारोपण और छिद्रान्वेषण
के प्रदूषण के चलते.
सूख कर,
खारे पानी की,
चंद बूंदों में सिमट कर रह गया है.
aapne to is rachna ke jariye bahut hi gahari abhivykti kesaath apne naam ko sarthakta de di hai.
poonam
ग़ज़ब की कविता ... कोई बार सोचता हूँ इतना अच्छा कैसे लिखा जाता है
जवाब देंहटाएं