रविवार, 14 फ़रवरी 2010

इंसान

इंसान



कहते हैं लोग

इन्सान पत्थर हो गया

अगर ये सच है तो

दिखा दे अपनी सख्ती,

अपना खुरदरा, पथरीला, कंकरीलापन

अपनी जड़ता,

जा, छू जा, कभी किसी राम के चरणों से

दे दे किसी अहिल्या को जीवन दान

बन राम सेतु,

जीत ले लंका, मार गिरा कभी रावण,

बचा ले, अबला सीताओं की लाज,

बन पारस, कभी निर्धनता के लिए,

डट जा, चीन की दीवार बन, साम्प्रदायिकता के आगे

पीस दे आपने दो पाटों के बीच महंगाई कभी

गिर, भर भरा के, बिना सीमेंट की छत की तरह,

कर दे लहू लुहान भ्रष्टता को कभी,

जा गिर, मर और मार

एक उल्का पिंड की तरह निकृष्टता  को कभी

समा जा किसी देश द्रोही की आँखों, में किरकिरी बन

चुनवा दे अपनी दीवार में,

अनारकली की जगह, आतंकवाद कभी

पर अफ़सोस, ऐ इंसान

तू तो पूरा पत्थर भी न हुआ.




38 टिप्‍पणियां:

  1. सही कहा रचना जी।
    इंसान पत्थर तो हो गया मगर पूरा पत्थर भी न हुआ।
    जैसे आज के गुलाबों में खुशबू नहीं , उसी तरह इंसानी पत्थरों में न सख्ती है , न शक्ति।
    सुन्दर सामयिक रचना।

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  2. कुछ चीज़ें शायद यथावत बने रहने के लिए ही होती हैं.

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  3. समा जा किसी देश द्रोही की आँखों, में किरकिरी बन

    चुनवा दे अपनी दीवार में,

    अनारकली की जगह, आतंकवाद कभी

    पर अफ़सोस, ऐ इंसान

    तू तो पूरा पत्थर भी न हुआ.



    बहुत सुंदर पंक्तियाँ...... और सार्थक कविता....

    जवाब देंहटाएं
  4. बहुत सटीक अभिव्यक्ति.....सुन्दर रचना..

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  5. इंसान के वजूद को झंझोड़ती ...... बेहतरीन अभिव्यक्ति ....

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  6. पर अफ़सोस, ऐ इंसान

    तू तो पूरा पत्थर भी न हुआ.



    बहुत सुंदर पंक्तियाँ...... और सार्थक कविता....

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  7. आदमी पत्थर न हुआ हाँ पत्थर को भगवान बना दिया.
    ...अच्छे भाव. निक्रष्टता को ='निकृष्टता' कर लीजिए.

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  8. Badee sashakt rachana ...
    Bade hee prabhavshalee bhav.....

    sunder rachana.....

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  9. waah kya soch hai..kaha se uthaya aur kahan fenka....Maan gaye aapko rachna ji

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  10. सुंदर, सार्थक और सटीक, शुभकामनाएं.

    रामराम.

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  11. इन्सान ही कितने है...एक विलुप्त होती प्रजाति है ये..

    बहुत सुन्दर भाव..

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  12. दिल और दिमाग को झिंझोड़ देनेवाली प्रभावशाली रचना. Happy valentines' day.

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  13. sunder rachna... patharon se jiwat ta ki prakriti seekhi hai manushya ne ... sakth hona achha hai kintu samvedanheen hona achha nahi...

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  14. aah ek sateek rachna....rachna ke beech tak pahuchte pahuchte man utsaah se bhar gaya tha...aur such me apki is rachna par clap karne ka dil kar raha tha...lekin ant...aaaaah insan tu pathar bhi na ban saka ..to yeh padh kar mano apradhi ki tarah gardan jhuk gayi..

    rachna ji...bahut bahut acchhi rachna apki..mere paas shabd nahi hai tareef me..gr8 writing.

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  15. Different...really very different...i wonder why did v never c the qualities of pebbles n rocks...ur sight n ur way of seeing things is incredible...

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  16. रचना जी इस काव्य रचना के लिए आपकी जितनी प्रशंशा करूँ कम होगी...विलक्षण प्रयोग किये हैं और अपने शब्दों से झकझोर के रख दिया है आपने...वाह...इस अनूठी रचना के लिए बहुत बहुत बधाई...
    नीरज

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  17. सुन्दर भाव भरी रचना.

    अच्छी तुलना की है आपने इंसान और पत्थर की...सचमुच अधिकतर इंसान पत्थर ही है और वो भी ऐसे पत्थर जो सिर्फ़ दूसरे को चोट पहुंचाना ही जानते हैं... वर्ना क्या यह दुनिया स्वर्ग न बन जाती.. कोई भूखा क्यों सोता.

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  18. aapki ye rachna kabile tarif hai,aaj aadmi apne ko kuchh isi roop me dhaal raha hai

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  19. वाह रचना ! पूरी मनुष्यता पर प्रश्न चिन्ह लगा दी ....बहुत सही ! कही तो अपने होने को परिभाषित करे पत्त्थर के कलेजे वाला मानव !
    शुभ कामनाएं !

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  20. insaan ke hone
    aur
    na hone ki
    kash.m.kash par
    steek tippanee ki hai aapne

    abhivaadan .

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  21. रचना जी !
    हर बार आपकी रचना की बेहद शक्तिशाली अभिव्यक्ति के बीच यह जो आप अद्भुत अनुपम चित्र संलग्न करती हैं। मैं अभिभूत हो जाता हूं ।
    यह चित्र प्राकृतिक होकर भी ऐसा विभ्रम पैदा करता है कि जैसे किसी रचनात्मक प्रतिभा ने जाकर स्वयं गढ़ा है। जी हां आप की दृष्टि की तरह साफ और व्यापक है यह चित्र। एक अवाक् धन्यवाद।

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  22. अद्भुत रचना , अनूठा चित्र और कमाल यह है कि दोनों एक दूसरे के अनुपूरक।
    मैंने सुना है कि ब्रह्म ने सोचा और शब्द घोषित किए...सृश्टि में वह सब होता चला गया। आप लिखती पहले हैं और फिर क्या प्रकृति वैसी हो जाती है ?
    निशब्द हूं। बधाई।

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  23. 'पर अफ़सोस, ऐ इंसान
    तू तो पूरा पत्थर भी न हुआ.'

    बहुत ही सटीक अभिव्यक्ति ..


    इंसान पूरी तरह पत्थर भी तो नहीं हुआ.
    न इंसान ही रह पाया!

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  24. अद्‍भुत बिम्ब है, मैम। एकदम अनूठी और बिल्कुल नये अंदाज वाली कविता।

    ...और उतनी ही सुंदर तस्वीर भी!

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  25. पर अफ़सोस, ऐ इंसान

    तू तो पूरा पत्थर भी न हुआ.
    ्रचना जी हैरान हूँ कभी इस तरह तो सोचा ही नहीं । आपकी कल्पना शक्ती और गहरी नज़र की दाद देनी पडेगी। कविता कालजयी है। शुभकामनायें

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  26. सुन्दर भाव भरी रचना.अच्छी तुलना की है आपने इंसान और पत्थर की...सचमुच अधिकतर इंसान पत्थर ही है और वो…”

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  27. इंसानियत को आयना दिखाती लाजवाब तस्वीर के साथ "बेमिशाल" प्रस्तुति

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  28. बहुत बढ़िया रचना है....सामयिक रचना। बधाई स्वीकारें।

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  29. insaan poora kab huaa he jo patthar ho jaaye, rachna me aakrosh jyada jhalkta he..kaash ki insaan bas insaan ho jaaye.

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  30. भावनाओं से ओत प्रोत कविता बहुत अच्छी है रचना जी।

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  31. अपनों से भी अपनेपन की आस लगाती, मैं

    अपनों के बेगानेपन से यूँ तो अंजान नहीं थी, मैं

    अपनों ने जब रिश्ता तोड़ा तो हैरान हुई थी, मैं

    अपने ही घर में इक त्यक्ता सामान हुई थी, मैं
    Bahut sundar aur dil kee gaharayee se nikalee huyee panktiyan......
    Poonam

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  32. अपनों ने जब रिश्ता तोड़ा तो हैरान हुई थी, मैं

    अपने ही घर में इक त्यक्ता सामान हुई थी, मैं

    इतने बरसों बाद सही पर जान गई थी, मैं

    क्यों, अपनों में ही अपनों को ढूंढा करती थी, मैं

    Kitna sach hai!
    Holi kee dher saaree shubhkamnayen!

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  33. सुन्दर कवितायें बार-बार पढने पर मजबूर कर देती हैं.
    आपकी कवितायें उन्ही सुन्दर कविताओं में हैं.

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  34. बहुत सुंदर पंक्तियाँ...... और सार्थक कविता....

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