शुक्रवार, 21 अगस्त 2009

अनबुझे प्रश्न

तुम मुझे बहुत याद आते हो,

 
मेरी तनहाइओं में, सुनसान वीरानों में,

मेरे अनबुझे से प्रश्न।

क्यों होते हैं कुछ रिश्ते,

कांच से नाज़ुक, कुछ ढाल से मजबूत,

कुछ रौशनी में परछाई, कुछ कागज़ पर रोशनाई।

तुम मुझे बहुत याद आते हो, मेरे अनबुझे से प्रश्न।

क्यों नाज़ुक रिश्ता दरज़ता है।

क्यों मजबूत रिश्ता खड़ा रहता है।

क्यों परछाई रोशनी का नहीं छोडती साथ।

क्यों कागज़ पर लिखा रिश्ता नहीं होता आबाद।

तुम मुझे बहुत याद आते हो, मेरे अनबुझे से प्रश्न।

6 टिप्‍पणियां:

  1. ज़िंदगी ऐसे ही अनबुझे प्रश्नों के उत्तर की तलाश में खत्म हो जाति है ..सुन्दर भावाभिव्यक्ति

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  2. बेहद खूबसूरत अभिव्यक्ति. आभार.
    सादर,
    डोरोथी.

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  3. बहुत ही खूबसूरती से लिखी गयी रचना

    जवाब देंहटाएं

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